Bharat Sharma Vyas : भरत शर्मा व्यास भोजपुरी गायिकी के शिखर पुरुष माने जाते हैं. उन्होंने भोजपुरी में निर्गुन गायिकी से जो विशेष पहचान बनायी है, उससे ही उन्हें यह सम्मान हासिल है. पिछले साल महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार भी मिल चुका है. भरत जी ने अपनी गायिकी से कभी समझौता नहीं किया और हमेशा से भोजपुरी माटी की खूबसूरती को बरकरार रखा. भरत जी कहते हैं कि ‘‘मैं मिलियन व्यू के लिए नहीं गाता, ना ही सिर्फ पैसों के लिए गाता हूं, मैं गाता हूं अपने प्यारे श्रोताओं के लिए. वैसे लोगों के लिए जो भोजपुरी माटी से अपनी मां की तरह प्यार करते हैं.’’ होली के अवसर पर बेहद सहज, सरल दिल वाले और अपनी माटी से जुड़े रहने वाले भरत शर्मा व्यास ने प्रभात खबर से खास बातचीत की.
भरत जी, वर्षों पुराने आपके गाये कई होली गीत आज भी उतने ही प्यार से सुने जाते हैं. आप अपना कौन-सा होली गीत आज भी गुनगुनाते हैं?
होली पर मैंने दर्जनों गीत गाये हैं. उनमें से एक का नाम लेना तो मुश्किल है. अब तो यूट्यूब का जमाना है. आपको मेरे कई होली के वीडियो एलबम भी मिल जायेंगे. आप एक गीत की बात कर रहे हैं, तो मुझे याद आ रहा है-
‘खेले मशाने में होरी दिगंबर…
खेले मशाने में होरी दिगंबर…
भूत-पिशाच बटोरी दिगंबर खेले मशाने में होरी…’
इसी तर्ज पर लोकप्रिय एक और होली गीत है- ‘बाबा हरिहरनाथ सोनपुर में होरी खेले… बाबा हरिहरनाथ…. बाबा हरिहरनाथ सोनपुर में होरी खेले…’
जैसे छठ गीतों की विशेष धुन है, वैसे ही होली के गीत की अलग ही धुन है. इसका ख्याल रखना होता है. तभी इसकी भी पहचान बनी रहेगी.
होली पर भोजपुरी के द्विअर्थी गानों की बहार आ जाती है, जिसे घर-परिवार के साथ नहीं सुना जा सकता. बिहार सरकार ने द्विअर्थी व भद्दे गानों पर सार्वजनिक रूप से रोक लगा दी है. इस पर आप क्या कहेंगे?
ऐसे गानों व ऐसे गायकों पर भी रोक लगना ही चाहिए. इन्हीं की वजह से माताओं व बहनों को कई बार शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है. खास कर होली पर तो ऐसे गीत गाने वाले दर्जनों गायक कहां से पैदा हो जाते हैं. भोजपुरी में अगर कोई शुद्ध गाने वाला था, तो वे शारदा सिन्हा जी थीं. वे चली गयीं, मगर सबके दिलों में अमर हैं. उनके गीतों को सब आज भी सुनते हैं. छठ गीत तो खास कर उन्हीं के सुने जाते हैं. इसी तरह एक नयी लड़की मैथिली ठाकुर भी बढ़िया गाती है. मदन राय, विष्णु ओझा जी, विनय मिश्रा आदि भोजपुरी में अच्छे गाने वाले हैं. द्विअर्थी गाने से हमारी बहू-बेटियों पर गलत असर पड़ता है, जिसकी वजह से आज भोजपुरी बदनाम है. ये दुर्भाग्य है कि आज के युवा यही पसंद कर रहे हैं और इन लोग का गाना मिलियन में व्यू जाता है. हमलोग से ज्यादा इनका श्रोता है. भोजपुरी की सभ्यता-संस्कृति को ताक पर रख कर अश्लील गाने वाले ऐसे गायकों का एक पूरा ग्रुप है. ये मानने वाले नहीं हैं. ये बेशर्मी की सारी सीमाएं लांघ चुके हैं. कहां भोजपुरी भिखारी ठाकुर, महेंद्र मिसिर के लिए जाना जाता था और आज कहां आ गया. स्तर कितना गिर गया. आज उ लोग जिंदा रहते तो भोजपुरी का इ दुर्दशा देखकर उन्हें रोना आता!
चूंकि गायिकी को मैं पूजता हूं, तो इसमें शुद्धता का भी उतना ही ख्याल रखता हूं, क्योंकि शुरुआत ही मेरी रामायण गायिकी से हुई है. आज लोगों को रातोंरात स्टार बनना है. किसी तरह मिलियन व्यू पाने की होड़ है. मैं मिलियन व्यू के लिए नहीं गाता, ना ही सिर्फ पैसों के लिए गाता हूं, मैं गाता हूं अपने प्यारे श्रोताओं के लिए. वैसे लोगों के लिए जो भोजपुरी माटी से अपनी मां की तरह प्यार करते हैं.
अपने समय की कुछ बात बताएं कि आप बचपन में किस तरह होली और होलिका दहन की तैयारी करते थे?
हमलोग जब होलिका दहन (संभत) की तैयारी करते थे, रातोंरात लकड़ी का जुगाड़ कर लिया करते थे. गांव में हम लड़कों की टोली तय कर लेती थी कि किसका चौकी, किसका पलानी गायब कर देना है. वहीं घर-घर जाकर हमलोग गोइठा मांगते थे. हफ्तों पहले से ये सारा प्रकरण चलता रहता था. कई बार डांट-मार भी पड़ती थी. याद आता है तब हमारे गांव के चौपाल पर गाया जाता था-
‘होरी खेलत रघुबीर अवध में
होरी खेलत रघुबीर अवध में…
भरत पिचकारी…’
यही सब गाना आज भी गांव में गाये जाते हैं. होली के दिन तो पुआ-पुड़ी, गुलौरा आदि मां बनाया करती थीं. आज जमाना बदल गया है. लोग सबकुछ रेडीमेड बाजार से ही मंगा लेते हैं. हमलोग तो इसके लिए सालभर इंतजार करते थे. वहीं सालभर अगर किसी से मनमुटाव, द्वेष रहा है, तो उस दिन सब भुल कर लोग गले मिल लेते थे. सब ठीक हो जाता था. अब वो सुनहरा दौर बीत चुका है, जो आज कहीं नजर नहीं आता. पहले जो आदमी से आदमी का प्रेम था, वो सब खत्म हो गया. आज होली के नाम पर महज औपचारिकता रह गयी है.
होली पर आपका एक गीत आज भी खूब देखा-सुना और गाया जाता है- ‘कान्हा करे बलजोरी’. यह गीत हमें भी सुनाएं और इसके बारे में कुछ बताएं.
‘कान्हा करे बलजोरी ऐ मइया,
कान्हा करे बलजोरी….
जब हम जाई ला पनिया भरन के
देलन मटुकिया फोड़ी
ऐ मइया कान्हा करे बलजोरी
यह गाना कान्हा और राधा के सुंदर प्रेम पर प्रस्तुत है. राधिका से कान्हा का प्यार इतना सच्चा है कि वे बंशी की एक धुन पर खीची चली आती हैं. चाहे वो समय कोई भी हो. राधिका ही नहीं, सारी गोपियां चल आती थीं. राधिका जब पानी भरने यमुना में जाती हैं, तो कान्हा भी पीछे-पीछे वहां पहुंच जाते हैं. कभी उनकी मटकी पर कंकड़ मारते हैं, तो कभी उनका आंचल पकड़ लेते हैं, तो कभी उनसे तरह-तरह से छेड़छाड़ करते हैं. यही ओरहन (शिकायत) लेकर राधिका जी उनकी मइया यशोदा जी के पास पहुंचती हैं. राधिका कहती हैं कि ऐ मइयां, आपका लड़का कान्हा बड़ा ढीठ हो गया है. हम गोपियों को बराबर तंग करता है. हमारी मटकी फोड़ देता है. इसी प्रसंग को बड़ी ही खूबसूरती से इस वीडियो एलबम में फिल्माया गया है, जिसे मैंने गाया है.
इसी तरह एक सुंदर लोकगीत है, जिसमें पति-पत्नी के सुंदर प्रसंग को दर्शाया गया है –
‘पटना से पाजेब बलम जी…. अरे आरा से होठलाली,
मंगाई द छपरा से चुनरिया छींटवाली…’
इस लोकगीत में एक पत्नी बाजार जा रहे अपने पति से मांग करती है कि शहर से आते हुए मेरे लिए ये चीजें लेते आइएगा. वह किस प्यार और मनुहार से अपनी मांग पति के सामने रखती है, यही इसकी सुंदरता है.
क्या होली पर आपको अपना वो गांव याद आता है? इस बार होली में कहां रहने की योजना है?
होली में हर साल हम गांव ही बिताते हैं. आज गाते हुए 54 साल हो गया. एक भी साल ऐसा नहीं गया जब होली पर हम अपने गांव (बक्सर जिले के सिमहरी प्रखंड के नगपुरा) में नहीं रहे हों. होली के परब को अपनी माटी, अपने लोगों संग ही मनाना पसंद है. यही एक जगह है, जहां आज भी आकर उन पुरानी यादों को इसी बहाने फिर से जीने का मौका मिलता है, फिर उ कइसन होली जउन आपन लोग, आपन माटी में ना मनाइल जाये (वो होली कैसी, जो अपनों संग, अपनी मिट्टी में न मनायी जाये)! होली और छठ, यही वो त्योहार हैं, जिसके लिए लोग दूर-दूर से अपने घरों की ओर लौटते हैं. यही तो इसकी खूबसूरती है.
अपने चाहने वालों को होली पर क्या संदेश देना चाहेंगे?
प्रभात खबर के पूरे परिवार को, सभी दर्शकों को भरत शर्मा व्यास की तरफ से होली की बहुत-बहुत शुभकामना आ बधाई बा! होली शांति, सादगी अउरी खुशी से मनाइल जा!
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