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Janmashtami special: जीवन राग सिखाते हैं घनश्याम

श्रीकृष्ण हम सब में हैं और श्रीकृष्ण हम सबके हैं. बस जरूरत है अपने अंदर झांककर उन्हें देखने, समझने और महसूस करने की. मानवीय जीवन की पाठशाला में उनसे क्या नहीं सीखा जा सकता है. उनकी कथाएं व संदेश सदियों बाद भी मानवता की मार्गदर्शक हैं.

Janmashtami special: सुख-दुख, उतार-चढ़ाव, संघर्ष-संतापों से भरे हुए मानवीय जीवन में समस्याओं का समाधान भी हैं. ज्ञान चाहिए तो कृष्ण से लीजिए. मित्रता सीखनी हो, तो भी कृष्ण से सीखें. प्रेम जानना हो, तो कृष्ण के पास जायें और पथ-प्रदर्शक की तलाश हो, तो महाभारत के महानायक कृष्ण से बेहतर कोई हो ही नहीं सकता. इस जन्माष्टमी हम सभी श्रीकृष्ण के जीवन संदेश को खुद में उतारें, जिससे सारा जीवन सरल और सुगम बन जाये…

कृष्ण का सारा व्यक्तित्व मानवीय जीवन के हर क्षेत्र में संतुलित सामाजिक व्यवहार के भाव से जुड़ा हुआ है. कृष्ण ज्ञान के अधिष्ठाता हैं ही, प्रेम के अनंत भाव भी हैं, उनमें मित्रता की पराकाष्ठा भी है और जीवन रथ के संतुलित हांकने वाले सारथी भी. लौकिक जगत के रिश्ते-नाते, धर्म, नीति, पराक्रम, योग, अध्यात्म, क्षमा, न्याय सभी आदर्श रूप में गुंथे हुए हैं घनश्याम के पूरे जीवन चरित्र में. बेशक कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं, परंतु उनके जीवन का हर प्रसंग इस बात का आदर्श है कि सामाजिक जीवन में मनुष्य को कैसा होना चाहिए.

घनश्याम हमें जीवन राग सिखाते हैं. वे सिखाते हैं कि जीवन में हमें रिश्ते कैसे निभाने चाहिए. अपने पूरे परिवेश को प्रेम से कैसे भरा जा सकता है और जीवन के उतार-चढ़ाव का सामना मुस्कुराते हुए कैसे किया जा सकता है. इस जन्माष्टमी हम श्रीकृष्ण के जीवन-प्रसंगों का पुनर्पाठ कर स्वयं के जीवन को पुनर्परिभाषित कर सकते हैं. यही भाव हमें सर्व समाज का प्रिय व श्रेष्ठ नागरिक बना सकता है.

प्रकृति के संरक्षक हैं श्रीकृष्ण

कालिया नाग के दमन और गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर धारण करने का प्रसंग श्रीकृष्ण कथा का वह अध्याय है, जहां श्रीकृष्ण प्रकृति का संरक्षण करते दिखाई पड़ते हैं. बगैर धरती के मानव जीवन का कोई अस्तित्व नहीं हो सकता, इस सत्य का बोध वे कराते हैं. जहां एक तरफ, कालिया नाग यमुना में प्रदूषण का प्रतीक है, जिसके विष के प्रभाव से नदी का जल पीने योग्य नहीं रह गया था, वहीं कालिया का दमन स्वच्छता का अभियान का उदाहरण स्वरूप है, जिसके बाद यमुना का जल निर्मल हो गया. दूसरी तरफ, गोवर्धन पर्वत को उठाकर प्राकृतिक आपदा से मानवता की रक्षा के लिए प्रकृति के शरण में ही समाधान खोजने की शिक्षा स्वयं श्रीकृष्ण देते हैं. श्रीकृष्ण स्वयं मोर पंख, वनमाला, बांसुरी धारण करते हैं, जो उनके प्रकृति के संग स्नेह और प्रेम का ही उदाहरण हैं. यह श्रीकृष्ण का प्रकृति के साथ मानवीय जीवन में प्रेम की स्थापना का प्रयास ही तो है, जो बताता है कि मानवीय जीवन में सामाजिक समरसता प्रकृति के साथ मानवीय संबंध स्थापित करके ही आ सकती है.

कर्मक्षेत्र में सफल नेतृत्व करने का देते हैं सूत्र

श्रीकृष्ण बाल-लीला में माखन चोरी का प्रसंग रच कर एक बेहतर टीम लीडर का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं. ब्रजवासियों के लिए वह माखन चोर, मटकी फोड़ने वाले नटखट कन्हैया हैं, परंतु माखन चोरी कर सबों की सारी आलोचना अपने ऊपर लेते हैं और माखन सभी बाल सखाओं के बीच बराबर बांटते हैं. यह उदाहरण बताता है कि हर मनुष्य को अपने कर्म क्षेत्र में सफलता अपने सहयोगियों के सही सामंजस्य और लोकतांत्रिक व्यवहार से ही मिल सकती है. श्रीकृष्ण यहां हर इंसान को जीवन में सफलता पाने की कला सिखाते हैं. वे इस लीला के जरिये जीवन जीने की लोकतांत्रिक शैली सिखाते हैं.

आज हम सबों के अपने-अपने कर्मक्षेत्र में लोकतांत्रिक और समरसता की भावना से काम करने की आवश्यकता सबसे अधिक है. समरसता की यही भावना हमें सफल नेतृत्वकर्ता बना सकती है. इस मूल मंत्र के जरिये हम अपने-अपने कर्मक्षेत्र में कामयाबी हासिल कर सकते हैं.

सिखाते हैं स्त्रियों का सम्मान व रक्षा करना

श्रीकृष्ण के जीवन चरित्र से हम स्त्री-पुरुष संबंधों में बढ़ रही दूरियों को कम करने का प्रयास कर सकते हैं. श्रीकृष्ण सिखाते हैं कि जिस घर-समाज में स्त्री को सम्मान मिलता हो और उसकी रक्षा होती हो, वही मंगलमय उन्नति कर पाता है. स्त्रियों के प्रति श्रीकृष्ण के विचार वर्तमान प्रगतिशील विचारों से कहीं अधिक ईमानदार और प्रभावी हैं. भाई के वास्तविक स्नेह और कर्तव्य को निभाते हुए श्रीकृष्ण अपनी बहन सुभद्रा का विवाह उनकी इच्छानुसार अर्जुन से कराते हैं, तो नरकासुर को मारकर बंधक स्त्रियों को उस समय पत्नी के रूप में स्वीकारते हैं, जब समाज उन्हें स्वीकारने को तैयार नहीं था. चीरहरण के समय द्रौपदी की करुण पुकार पर उसके सम्मान की रक्षा करते हैं. जब द्रौपदी वनपर्व के समय अपमान का बदला लेने की प्रार्थना करती है, तो श्रीकृष्ण कहते हैं- ‘‘कृष्णे! आसमान फट पड़े, हिमालय टूट जाये, पृथ्वी के टुकड़े हो जायें या समुद्र ही क्यों न सूख जाये, मगर मेरी यह बात मिथ्या नहीं होगी कि तुम राजरानी बनोगी’’.


श्रीकृष्ण यहां बताते है कि मन, वचन, कर्म से स्त्री की रक्षा करनी चाहिए. साथ ही वे पारिवारिक जीवन को भी संतुलित रखने की शिक्षा देते हैं कि जीवन की तमाम कठिनाइयों के बीच जो दांपत्य को साध लेता है, उसका जीवन नीरस नहीं रह जाता.

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प्रस्तुत करते हैं सच्ची मित्रता का अनुपम उदाहरण

श्रीकृष्ण सिखाते हैं संकट में मित्र की सहायता करो, भ्रम में मार्गदर्शन और आवश्यकता पर सहयोग निस्वार्थ हो और कर्ता भाव से रहित हो, तभी वह सच्ची मित्रता है. श्रीकृष्ण की मैत्री अर्जुन और सुदामा से जगत प्रसिद्ध है. सुदामा बाल्यकाल व गुरुकुल के मित्र हैं और अर्जुन द्रौपदी स्वयंवर के समय पहली मुलाकात से अंतिम सांस तक के मित्र रहे हैं. गुरुकुल में सुदामा के मुट्ठी भर अन्न को कृष्ण ने किस तरह कृतज्ञता पूर्वक याद रखा और द्वारिकाधीश बनने के बाद सुदामा को धन-धान्य देकर उस मैत्री का मान रखा. अर्जुन से अपने अथाह प्रेम में वह शांतिदूत बनकर कौरव सभा में गये, फिर ईश्वर होकर भी महायुद्ध में मित्र के सारथी, संरक्षक और मार्गदर्शक बने. अर्जुन कर्मपथ से विचलित हुए, तो उन्हें गीता का उपदेश दिया और युद्ध के बाद मित्र कहीं अहंकारी न हो जाये, इसलिए युद्ध के बाद अनुगीता सुनायी. जीवन के संघर्ष पथ पर मित्रता को प्रगाढ़ बनाने का जो पाठ श्रीकृष्ण सिखाते हैं, वह युगों-युगों तक प्रतिमान बन जाती है.


स्पष्ट है कि श्रीकृष्ण के जीवन की प्रत्येक घटना एक मूल्य और आदर्श को स्थापित करती है. श्रीकृष्ण जन्मोत्सव जनसामान्य में समता और समरसता का रस घोलता है. साथ ही हमें जगत कल्याण के लिए प्रेरित करता है.

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