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Kargil Vijay Diwas : झारखंड के सपूतों ने देश को गौरवान्वित किया

Kargil Vijay Diwas : टाइगर हिल में हमारे तीन जवान शहीद हो गये. उसके बाद हमलोग 1075 पोस्ट के पास पहुंच पाये. वहां लगातार फायरिंग होती रही. वहां भी दो जवान शहीद हो गये. हमलोगों ने बंकर घ्वस्त करने के लिए तोप के 105 गोले छोड़े.

26 जुलाई, करगिल विजय दिवस. इस दिन को याद कर पूरा देश रोमांचित हो उठता है. इस युद्ध में झारखंड के भी सात सपूतों ने शहादत देकर गौरवान्वित किया है. उनमें रांची के एक, गुम के तीन, पलामू के दो और हजारीबाग के एक सपूत ने अपनी शहादत दी है. साथ ही कई ऐसे करगिल हीरो हैं, जो उस युद्ध के हिस्सा रहे हैं. आज भी आपबीती सुनाते गर्व महसूस करते हैं.

लेफ्टिनेंट कर्नल पीके झा : घायल सिपाहियों को निकालना अलग किस्म का रोमांच था

लेफ्टिनेंट कर्नल प्रदीप कुमार झा. रांची निवासी़ करगिल युद्ध के दौरान श्रीनगर में 663 आर्मी एविएशन स्क्वाड्रन में पोस्टेड थे. उस समय अपनी यूनिट में पायलट की ड्यूटी में कई तरह ऑपरेशन संचालित कर रहे थे. सबसे बड़ा रोमांच यह रहा कि जान की बाजी लगाकर उड़ान भरते हुए घायला जवानों को बचाना. तोप और गोले के बीच हेलीकॉप्टर निकाल लाये. आज उस हेलीपैड को प्रदीप हैलीपैड के नाम से जाना जाता है, जो द्रास सेक्टर में है. लेफ्टिनेंट कर्नल प्रदीप झा कहते हैं : 13 मई 1999, जब हमें यह भी पता नहीं था कि दुश्मन कहां बैठा है. जान हथेली पर रख कर द्रास हैलीपैड पर उतरा था. कुछ ही देर बाद दुश्मनों की तरफ से गोली-बारी शुरू हो गयी. हेलिकॉप्टर को दुश्मनों की फायरिंग से बचाकर ”जोजिला” घाटी के नजदीक ले गया. यह एरिया दुश्मन की फायरिंग से दूर था. इतना ही नहीं युद्ध के दौरान खाने-पीने की चीजों को ऊंची पहाड़ियाें पर पहुंचाया. ऊंचाई पर उड़ान भरते हुए दुश्मनों पर बम बरसाये और कईयों को मार गिराया.

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कारपोरल एके झा : लगता था दुश्मन का सफाया कर कैसे देश का विजयी झंडा लहाराएं

वायुसेना के पूर्व कारपोरल अशोक कुमार झा (बूटी मोड़ निवासी) करगिल विजय के हीरो रहे हैं. वे कहते हैं : शहीदों को देखकर खून खौल उठता था. लगता था कि हमें कब मौका मिलेगा. आखिरकार 26 जुलाई 1999 को हमने विजय पायी. उस दिन पूरे देश ने दिवाली मनायी. वे थल सेना की मदद के लिए 221 स्क्वाड्रन हलवारा, लुधियाना में मिग-23 बॉम्बर एयर क्राफ्ट के टेक्नीशियन के रूप में थे.

युद्ध के दौरान हर तरह से थल सेना की सहायता करने का आदेश था. उसके लिए हमलोग हमेशा उड़ान भरते थे. आदेश मिला कि करगिल युद्ध में हमारे ग्रुप को थल सेना के सपोर्ट के लिए जाना है. तबीयत ठीक नहीं थी. मौसम भी विपरीत था, जिस कारण हमेशा नाक से खून निकलता रहता था. लेकिन युद्ध में जाने की बात सुन कर मन में जोश भर गया. हमारा पूरा ग्रुप रोमांचित हो उठा. तबीयत की परवाह न करते हुए हम युद्ध में शामिल हुए. करगिल युद्ध को नाम ऑपरेशन विजय रखा गया था. इसमें कई सैनिक शहीद हो गये. इस दौरान एक अन्य बॉम्बर एयर क्राफ्ट लेकर फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता गये थे. उनके एयर क्राफ्ट को पाकिस्तानियाें ने घेर लिया था. उन्हें युद्ध बंदी बना लिया था. उनकी तलाश में स्क्वाड्रन लीडर आहूजा गये थे. उन पर भी पाकिस्तानियों ने गोले बरसाये. इतना होने के बाद भी हमारा ग्रुप थल सेना के सपोर्ट में बमबारी करता रहा. अंतत: 26 जुलाई को हम विजयी हुए. करगिल विजय पर पूरे देश को हमेशा गर्व रहेगा. कारपोरल एके झा रांची के बूटी मोड़ के समीप के निवासी हैं.

सूबेदार मेजर एमपी सिन्हा : कंपकंपाती ठंड, लगातार फायरिंग, अंधेरे से घिरा रास्ता
दुश्मन ऊंचाई पर तैयार बैठा हो, अवसर हमारे विपरीत हो और इलाका संवेदनशील. करगिल युद्ध की परिस्थितियां कुछ ऐसी ही थीं. रांची के निवासी सूबेदार मेजर एमपी सिन्हा ने बताते हैं : उन दिनों आठ माउंटेन डिवीजन श्रीनगर के 508 एएससी बटालियन शरीफाबाद से सटे ओल्ड एयरफील्ड के लोकेशन में पोस्टेड था. 1999 के करगिल युद्ध के बीच 26 जून को कनवाई कमांडर के रूप में करगिल कूच करने का आदेश मिला था. मेरे साथ 21 फौजी गाड़ियां थीं, जिनमें खाना-पीने की चीजें थीं. 49 जवानों के साथ निकल पड़ा. 140 किमी रास्ता तय करने के बाद जब द्रास से पहले गुमरी (दुनिया के सबसे ठंडे इलाके में शुमार) पहुंचा, तो पाकिस्तानियों ने फायरिंग शुरू कर दी. समय करीब रात 11:30 बजे. कंपकपाती ठंड के बीच फायरिंग. अंधेरे से घिरा रास्ता. डेढ़ घंटे लगातार फायरिंग के बीच चींटी की चाल में आखिर करगिल पहुंच ही गया. जब वहां पहुंचा, तो उसका दृश्य अजीब था. चारों तरफ तोप और गोलियों की बौछार थी.

शहीद युगंबर दीक्षित, पलामू : दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिये थे
अमर शहीदों के इतिहास में पलामू में वीर योद्धा युगंबर दीक्षित ने भी अपना नाम दर्ज करा लिया है. ऊंटारी रोड थाना क्षेत्र के भदुमा गांव के युगंबर दीक्षित 1997 में सेना में भर्ती हुए थे. 23 जून 1999 को अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए शहीद हो गये. युद्ध के दौरान अपनी वीरता का परिचय देते हुए दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिये थे. करगिल शहीद युगंबर दीक्षित के परिजनों को उनकी वीरता और शहादत पर गर्व है. हालांकि पत्नी उषा दीक्षित और इकलौते पुत्र युद्धजय दीक्षित आज भी सरकारी सुविधाओं के इंतजार में हैं. शहीद युगंबर के परिजनों की माली हालत अच्छी नहीं है. शहीद की पत्नी उषा दीक्षित को पेंशन मिलती है, जिसके सहारे परिवार का गुजारा हो रहा है. पुत्र युद्धजय फिलहाल नीलांबर पीतांबर विवि से स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहा है.

नायब सूबेदार कामाख्या सिंह: पाकिस्तान को हमेशा याद रहेगा यह युद्ध
प लामू निवासी पूर्व सैनिक नायब सूबेदार कामाख्या नारायण सिंह करगिल युद्ध के गवाह रहे हैं. वे बताते हैं : 1999 करगिल युद्ध में हिंदुस्तान के सैनिकों ने पाकिस्तानी सैनिकों को करारा जवाब दिया था. यह युद्ध पाक को हमेशा याद रहेगा. पाकिस्तान ने करगिल की तोलोलिंग पहाड़ी पर कब्जा कर रखा था. तब देश के जवानों ने दुश्मनों का डटकर मुकाबला किया और पहाड़ी को पाक के कब्जे से मुक्त कराया था. वे कहते हैं : सैनिकों के लिए हर पल चुनौतियों से भरा था. लेकिन दिल में देश सेवा व मातृभूमि की रक्षा का जज्बा कूट-कूट कर भरा हुआ था. श्री सिंह वर्तमान में पूर्व सैनिकों की समस्या के निदान के लिए काम कर रहे हैं. पलामू जिले के पाटन प्रखंड नौडीहा का रहने वाले हैं. फिलहाल मेदिनीनगर शहर के हमीदगंज में रहते हैं.

सूबेदार गयानंद पांडेय, मेदिनीनगर : पाकिस्तान के मिशन को ध्वस्त कर दिया
करगिल युद्ध में शामिल आर्टलरी के सूबेदार गयानंद पांडेय ने बताया : वे 1999 के अप्रैल माह में छुट्टी पर अपने पैतृक गांव पलामू जिले के पांडू थाना क्षेत्र के भटवलिया आये थे. इस दौरान कमांडिंग ऑफिसर ने टेलीग्राम के माध्यम से श्रीनगर कैंप बुलाया, लेकिन उन्हें किसी तरह की जानकारी नहीं दी गयी. वे अपने कर्तव्य का निर्वहन करने श्रीनगर कैंप पहुंचे. रास्ते में मिलिट्री पुलिस ने सैनिकों का स्वागत भी किया. श्री पांडेय बताते हैं : विपरीत परिस्थितियों से जूझते हुए भारतीय सैनिकों ने दुश्मनों का डटकर मुकाबला किया. श्रीनगर से सैनिकों की टुकड़ी सोनामार्ग, गुमारी होते हुए दराज पहुंची. इस दौरान पूरी सावधानी बरतते हुए सैनिक आगे बढ़े. करगिल की टोलोलीन पहाड़ी पर दुश्मनों ने कब्जा किया था. उसे मुक्त कराने के लिए कई दिनों तक युद्ध चला. इन्फेंट्री रेजीमेंट एवं आर्टलरी रेजीमेंट के संयुक्त सैन्य कार्रवाई से 26 जुलाई को उस पहाड़ी को मुक्त कराया गया.

सूबेदार एचएन यादव, रामगढ़ : कुछ भी पता नहीं था कि कौन सी मुसीबत कब हमारे सामने आ जाये
03 मई 1999 का दिन सबसे बड़ी खुशी का दिन था. मुझे पता चला कि मुझे करगिल मिशन के लिए चुना गया है. हमारी यूनिट समय से पहले ही सोनमार्ग गुमरी द्रास होते हुए मास्को घाटी पहुंच गयी. हमें समझाया गया कि जंग जीतने के लिए जोश, जुनून के साथ होश भी जरूरी है. एक बेहतरीन रणनीति के साथ आगे बढ़ना है. मास्को घाटी पहुंचने के बाद युद्ध के संबंध में केवल जानकारी दी गयी. कुछ भी पता नहीं था कि कब कौन सी मुसीबत सामने आ जाये. खबर थी कि हमारी पोस्ट पर हमें धोखा देने की नीयत से पाकिस्तानी सैनिक हमारी तरह की वर्दी पहनकर बैठा है. रेकी के दौरान काफी ऊंचाई पर एक पोस्ट दिखा. जहां हमारी ही तरह वर्दी पहने हुए बंदे ने जय हिंद बोला. पानी पीने और फिर आगे बढ़ने को कहा. पहाड़ी में ऊपर चढ़ते समय उसने एलएमजी से फायरिंग शुरू कर दी. इसमें हमारे कुछ साथी मारे गये. मंजर देखकर ऐसा महसूस हुआ. करगिल की इस पूरी लड़ाई में दिन में मुर्दा, रात में जिंदा जैसी स्थिति बनी हुई थी. दिन के समय कोई एक्टिविटी नहीं थी.

नायब सूबेदार रामरतन महतो: टाइगर हिल का 1075 पोस्ट, जिसे घ्वस्त करने का बड़ा जिम्मा मिला था
नायब सूबेदार रामरतन महतो (सिमडेगा)करगिल युद्ध के हीरो हैं. गोला के स्पिलिंटर ने उनका एक पैर खराब कर दिया. करगिल युद्ध के दौरान उन्होंने 18 जून 1999 को अकेले कई दुश्मनों को अपनी एलएमजी राइफल से मार गिराया था. 1889 लाइट रेजीमेंट के नायक सूबेदार रामरतन महतो बताते हैं : हमलोग एक जून से 18 जून तक लड़ते रहे. हमें टाइगर हिल भेजा गया था. वहां 1075 पोस्ट (नागा पोस्ट) था, जिसे घ्वस्त करने का जिम्मा मिला था. वह काफी ऊपर था. पोस्ट को ध्वस्त करने लिए हमलोग ने काफी फायरिंग की, लेकिन बंकर काफी मजबूत था. इसलिए वह घ्वस्त नहीं हो रहा था. वहां हमें दो ग्रुप में बांट दिया गया था. 1075 पोस्ट, टाइगर हिल के काफी ऊपर था. दुश्मन हमें ऊपर से पूरी तरह से देख सकते थे. यही कारण है कि वे लगातार फायरिंग करते रहे. टाइगर हिल में हमारे तीन जवान शहीद हो गये. उसके बाद हमलोग 1075 पोस्ट के पास पहुंच पाये. वहां लगातार फायरिंग होती रही. वहां भी दो जवान शहीद हो गये. हमलोगों ने बंकर घ्वस्त करने के लिए तोप के 105 गोले छोड़े. इसके बाद भी बंकर तो नहीं टूटा, लेकिन चट्टान गिरने से दुश्मनों का रास्ता बंद हो गया. ‘

प्रभात खबर ने करगिल युद्ध के शहीदों के सम्मान में लिया था हिस्सा
करगिल युद्ध के शहीदों के सम्मान में प्रभात खबर भी पीछे नहीं था. प्रभात खबर की अपील पर पाठकों ने भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था और प्रभात खबर पर विश्वास करते हुए फंड जमा करने में सहयोग दिया था. तत्कालीन एसएसपी अमिताभ चौधरी की मदद से प्रभात खबर ने 7,75,86,245 रुपये पंजाब रेजीमेंटल सेंटर रामगढ़ के तत्कालीन ब्रिगेडियर राजेंद्र माेहन शर्मा को सौंपे थे. जब भी करगिल के शहीदों के सम्मान की बात आयी, प्रभात खबर हमेशा सबसे आगे रहा है. प्रभात खबर के इस सामाजिक कार्य की चारों ओर प्रशंसा की गयी. इससे पहले जब शहीद नागेश्वर महतो का शव रांची लाया गया था, तब एयरपोर्ट से लेकर कांके तक शहीद के सम्मान में सड़क के दोनों ओर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था.
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Kargil Vijay Diwas

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