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Lord Ganesh Success Funda : गणेश परिक्रमा क्या है सफलता का नुस्खा ? सियासत में क्यों चमचागिरी के मायने

गणेश चतुर्थी पर जानिए, क्या पराक्रम, पुरुषार्थ और मेहनत से रोकती है गणेश परिक्रमा

Lord Ganesh Success Funda : अभी झारखंड में विधानसभा चुनाव है, टिकट लेना है तो नेताजी की गणेश परिक्रमा कीजिए…

यूनिवर्सिटी में टॉप करना है तो प्रोफेसर की गणेश परिक्रमा कीजिए….

नौकरी में तरक्की करनी है तो बॉस की गणेश परिक्रमा कीजिए…

इस तरह के जुमले आए दिन आप जरूर सुनते होंगे. दरअसल यहां बोला या लिखा गया शब्द भले ही गणेश परिक्रमा है, लेकिन सुनने या पढ़ने वाला इसे चमचागिरी के रूप में ग्रहण करता है. सच तो यह है कि सियासत या नौकरी ही नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में गणेश परिक्रमा चमचागिरी, चाटुकारिता और चापलूसी का पर्याय बन गया है. 

Lord Ganesh Success Funda : आगे बढ़ने के लिए गणेश परिक्रमा जरूरी?

अधिकतर लोग औसत बुद्धि, औसत क्षमता और औसत कौशल के होते हैं. इन्हें सफलता की अंंधी दौड़ भी दौड़नी होती है. इस दौड़ में कोई सफल होता है. कोई फिसलता है. कोई चूकता है, कोई हार कर भी जीतता है और कभी-कभी हाथ आई बाजी भी पलट जाती है. जब इसका आकलन किया जाता है तो जानकार सलाह देते हैं कि आपका सबकुछ ठीक था, केवल गणेश परिक्रमा में कमी रह गई थी.

गणेश परिक्रमा को सफल बनाने के लिए कुछ नुस्खे भी आजमाए जाते हैं. नेटवर्किंग विशेषज्ञों की सेवाएं ली जाती हैं. जिस व्यक्ति की गणेश परिक्रमा करनी है, उसके अतीत, उसके संबंधों तथा उसके मजबूत और कमजोर पक्षों की जानकारी जुटाई जाती है. गणेश परिक्रमा की राह के धोखे और बाधाओं को भी जाना जाता है. 

फिर स्पष्ट उद्देश्य के साथ गणेश परिक्रमा की पूरी कार्ययोजना तैयार होती है. सैद्धांतिक दस्तावेजीकरण नहीं होने के बावजूद यह स्पष्ट मान्यता हो चुकी है कि भगवान गणेश ने ब्रह्मांड की परिक्रमा करने की जगह माता-पिता की परिक्रमा कर जो सफलता की युक्ति निकाली, वह हर देश और काल के लिए मानक है. औसत क्षमता वालों के लिए तो यह सक्सेस फंडा बन चुका है. 

Lord Ganesh Success Funda : आखिर क्या है गणेश परिक्रमा, क्यों मानते हैं सफलता का शॉर्टकट

शिवपुराण में है कि देवताओं में इस बात को लेकर विवाद छिड़ा कि प्रथम पूज्य कौन होगा. तय हुआ कि जो  ब्रह्मांड की परिक्रमा कर सबसे पहले वापस आ जाएगा, वह प्रथम पूज्य होगा. सभी देवता गण अपनी सवारी पर सवार होकर ब्रह्मांड की परिक्रमा करने निकल पड़े. 

गणेश जी का भारी-भरकम शरीर और उसमें भी चूहे की सवारी, उस रेस को कैसे जीत सकते थे. उन्होंने दार्शनिक अधिष्ठान से इसकी युक्ति निकाली.अपने मां-पिता यानी महादेव-पार्वती की परिक्रमा कर सबसे पहले नियत स्थान पर पहुंच गए. गणेश जी को प्रथम पूज्य घोषित कर दिया गया. 

ब्रह्मांड की परिक्रमा की जगह केवल माता-पिता की परिक्रमा कर सफल होने के कारण सफलता का शॉर्टकट चाहने वाले लोगों के लिए यह कहानी आदर्श बन गई है.  बिना उचित मेधा और मेहनत के अधिक सफलता चाहने वालों के लिए गणेश परिक्रमा की धुरी की तलाश चाहत बन गई है. धुरी के स्थान पर मां-पिता या महादेव-पार्वती की जगह सियासत या किसी भी क्षेत्र में सफलता दिलाने वालों को बैठाया जाना ऐसे लोगों के लिए आम हो गया है.

Lord Ganesh Success Funda : क्या गणेश जी ने गलत परंपरा कायम की?

गणेश परिक्रमा की कहानी आम जनमानस और शास्त्रकारों के बीच झूलती है. इसमें लाख टके का सवाल यह है कि क्या  गणेश परिक्रमा पराक्रम, पुरुषार्ष, उद्यम और कर्तव्य करने से रोकती है? भगवान गणेश ने गलत परंपरा दी या सनातन आदर्श कायम किया ?  इसका जवाब तलाशने के लिए प्रभात खबर संवाददाता ने हिंदू धर्मशास्त्रों के गहन अध्येता और स्तंभकार अमिय भूषण से बात की. 

अमिय भूषण प्रभात खबर से कहते हैं कि हिंदू धर्मशास्त्रों के आख्यान मूढ़मति और कुढ़मगज लोगों के अपने मतलब की बात निकालने के लिए नहीं हैं. उन्होंने कहा कि हर आख्यान की सीख स्थान, काल और परिस्थिति सापेक्ष है. 

अगर कहीं अहिंसा परमो धर्मः कहा गया है तो कहीं वीर भोग्या वसुंधरा भी कहा गया है. आम जन दोनों संदेशों को किस परिस्थिति में ग्रहण करे, इसके लिए पर्याप्त दिशा-निर्देश भी दिए गए हैं. यही कारण है कि हमारे यहां हर ग्रंथ के अलग-अलग भाष्य और हर भाष्य की अलग-अलग टीकाएं भी लिखी गई हैं. यहां तक कि हर टीका के भी अलग-अलग एक्सप्लेनर विद्वानों ने अलग-अलग कालखंड में लिखे हैं. ताकि हिंदू शास्त्रों के शाश्वत संदेश लोगों को हर काल खंड में स्पष्ट होते रहे. यहां तक कि शास्त्र के हर पहलू के गुण-दोष के विवेचन की भी परंपरा रही है. 

जहां तक गणेश परिक्रमा की कहानी का तात्पर्य है, यह बुद्धिमता सिखाती है, चालबाजी नहीं. यहां साफ संदेश है कि माता-पिता की भक्ति को प्रधानता देने वाला  प्रथम पूज्य हुआ. यह एक नि:स्वार्थ भावना थी. अगर कोई चुनाव में टिकट लेने या नौकरी में तरक्की पाने के लिए चमचागिरी हेतु गणेश परिक्रमा का बहाना ढूंढ़ता है तो भगवान उस व्यक्ति को सुबुद्धि दे. दूसरी ओर, गणेश जी ऋद्धि और सिद्धि के देवता हैं. यानी शुभ और पूर्णता के. ऐसा बिना पुरुषार्थ के संभव नहीं है. उसमें भी गणेेश जी की पूरी गाथा पुरुषार्थ और पराक्रम से भरी है. 

Lord Ganesh Success Funda : सियासत में सफलता बिना गणेश परिक्रमा(चमचागिरी) के संभव नहीं?

यह साफ है कि गणेश परिक्रमा का चमचागिरी से कोई लेना-देना नहीं है. फिर भी चमचागिरी करने को गणेश परिक्रमा के नाम पर जिस क्षेत्र में सबसे अधिक आवश्यक बताया जाता है, वह क्षेत्र सियासत है. आम जन से लेकर शीर्ष पर  पहुंचे राजनेताओं के बीच ऐसे उदाहरण भी दिए जाते है. सियासत में गणेश परिक्रमा कही जाने वाली चमचागिरी को साधने के लिए जातीय ध्रुवों से लेकर पैेसे समेत अलग-अलग हथकंडे आजमाए जाते हैं. 

राजनीतिक विश्लेषक चंदन मिश्रा कहते हैं कि शीर्ष पर पहुंचे राजनेताओं को अगर देखें तो यह बात गलत साबित होती है. बड़े राजनेताओं में से अधिकतर जनांदोलनों के माध्यम से या किसी वैचारिक निष्ठा का प्रदर्शन कर आए हैं. अधिकतर का जीवन आदर्श है. जो लोग सियासत में सफलता सेवा की जगह अपनी तरक्की की सीढ़ी के रूप में पाना चाहते हैं, उनके लिए जरूर चमचागिरी को साधन के रूप में स्वीकार किया जाता है. इस गलत कृत्य को सही करार देने के लिए उसे गणेश परिक्रमा की कहानी से बेढब रूप में तर्कसंगत साबित करने की कोशिश की जाती है.

Lord Ganesh Success Funda : गणेश जी को अहसास था कि लोग इसे गलत अर्थों में ग्रहण करेंगे ?

अखिल भारतीय संत समिति के सचिव स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती कहते हैं कि गणपति अनादि और अनंत देवता हैं. यहां तक कि शिव-पार्वती ने भी अपने विवाह में गणपति पूजा की थी. 

रामचरितमानस में तुलसीदास जी कहते हैं – 

मुनि अनुसासन गनपतिहि पूजेउ संभु भवानि।

कोउ सुनि संसय करै जनि सुर अनादि जियं जानि।।

भाावार्थ- मुनियों की आज्ञा से शिव जी और पार्वती जी ने गणेश जी का पूजन किया. मन में देवताओं को अनादि समझकर कोई इस बात को सुनकर शंका न करे कि गणेश जी तो शिव-पार्वती की संतान हैं, अभी विवाह से पूर्व ही वे कहां से आ गए?

स्वामी जीतेंद्रानंद जी कहते हैं कि अनादि और अनंत ईश्वर के लिए क्या यह संभव है कि उन्हें भविष्य का ज्ञान नहीं रहा होगा. दरअसल समस्या गणेश परिक्रमा का मनमाफिक अर्थ ग्रहण करने वालों की है. इस आख्यान के जरिये भगवान गणेश ने मातृ-पितृ भक्ति को सर्वोपरि मानने का संदेश दिया है. इसे सही अर्थों में ग्रहण करने के बजाय अपने मां-बाप को वृद्धाश्रम में पहुंचाकर सियासत में सफलता के लिए कुछ खास नेताओं को अपना बाप मानकर परिक्रमा करने वाले अगर गणेश परिक्रमा का तर्क देते हैं तो उनकी बुद्धि पर तरस ही खाना चाहिए.

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