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झारखंड से MBA-MCA क्यों नहीं करना चाहते बिहार-यूपी के छात्र, ये हैं 2 बड़ी वजह

रांची में उच्च शिक्षा लेने वाले कई छात्रों के लिए रांची विश्वविद्यालय और डीएसपीएमयू उनकी पहली पसंद होती है. सामान्य कोर्स के अलावा व्यावसायिक शिक्षा के कई विषयों की भी पढ़ाई यहां होती है. यहां बच्चों का नामांकन तो हर साल होता है लेकिन स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति नहीं. यही हाल राज्य के सभी विश्वविद्यालय के है. आलम यह है कि विश्वविद्यालय के अधिकतर विभाग गेस्ट फैकल्टी और कन्ट्रैक्चूअल शिक्षकों के बल पर ही चल रहे है.

झारखंड में 7 स्टेट लेवल गवर्नमेंट यूनिवर्सिटी हैं, जिनमें रांची यूनिवर्सिटी सबसे नाम-गिरामी शिक्षण संस्थान हैं. इस यूनिवर्सिटी में वोकेशनल के साथ प्रोफेशनल कोर्स भी चल रहे हैं. स्टेट यूनिवर्सिटी में दाखिले के नाम पर झारखंड के स्थानीय छात्रों की फर्स्ट च्वाइस भी यही विश्वविद्यालय है. लेकिन सिर्फ दो बड़ी वजहों से यह यूनिवर्सिटी मात्र 26 किमी दूरी पर स्थित सेंट्रल यूनिवर्सिटी से मात खा रही है. यहां प्रोफेशनल कोर्स करने वाले छात्रों को प्लेसमेंट न के बराबर मिलता है. जानकार बताते हैं कि सेंट्रल यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले छात्रों को हर साल आसानी से और बेहतर कैंपस प्लेसमेंट मिलता है. दूसरा दर्द यह है कि झारखंड के विश्वविद्यालयों में डेढ़ दशक से किसी भी स्थायी प्रोफेसर की भर्ती नहीं हुई. आलम यह है कि विश्वविद्यालय के अधिकतर विभाग गेस्ट फैकल्टी और कॉन्ट्रैक्चुअल शिक्षकों के बल पर चल रहे हैं. इन कारणों से बिहार-यूपी जैसे पड़ोसी राज्यों के छात्र झारखंड स्टेट यूनिवर्सिटी में दाखिले से गुरेज करते हैं.

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झारखंड के किसी विवि में यूजीसी के मानक का पालन नहीं

किसी भी विश्वविद्यालय में प्रति 40 बच्चे 1 शिक्षक होना अनिवार्य है. लेकिन, यहां सूरतेहाल अलग है. बच्चे हैं तो टीचर नहीं. टीचर पर छात्रों की संख्या का मानक झारखंड के किसी भी विश्वविद्यालय में पूरा नहीं हो पा रहा है. रांची विश्वविद्यालय के पूर्व सीनेट सदस्य डॉ. अटल पांडे ने बताया कि रांची विश्वविद्यालय और डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी में शिक्षकों की कमी की वजह से छात्रों की पढ़ाई ढंग से नहीं हो पा रही है. प्रोफेशनल कोर्सज के छात्र आधी-अधूरी जानकारी के साथ डिग्री हासिल कर लेते हैं, जिसका खामियाजा उन्हें फील्ड में भुगतना पड़ रहा है. आसान शब्दों में कहें तो एमबीए करने के बाद सेल्स एक्जीक्यूटिव की जॉब तक नहीं कर पाते. यूजीसी की गाइडलाइन के अनुसार यूनिवर्सिटी के लिए प्रतिभावान छात्रों की फौज तैयार करने के लिए सबसे जरूरी मानदंड स्थायी शिक्षक का होना है.

16 साल से नहीं हुई है नियुक्ति

झारखंड में आखिरी बार स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति के लिए आवेदन 16 साल पहले निकला था. 2008 के बाद से झारखंड में प्रोफेसर भर्ती के लिए कोई विज्ञापन नहीं निकला. भर्ती का काम JPSC के हवाले है, जो कान में तेल डाले बैठा है. 2018 में एक बार बैकलॉग के लिए आयोग ने आवेदन मांगे थे, जिसमें नाममात्र की वैकेंसी थी. ऐसे में आप समझ सकते है कि साल 2008 के बाद झारखंड में कुल सात सरकारें बदली हैं, तीन बार राष्ट्रपति शासन लगा, लेकिन विश्वविद्यालय में स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति का मामला किसी ने गंभीरता से नहीं लिया.

झारखंड
झारखंड प्रोफेसर नियुक्ति

राज्य में हायर एजुकेशन का मानक क्या होना चाहिए?

झारखंड के कई बच्चे उच्च शिक्षा के लिए राज्य से बाहर जाते हैं, लेकिन क्यों? ये सवाल जब उनसे पूछा जाता है तो बताते हैं कि वहां पढ़ाई बेहतर होती है. टीचर भी स्थायी हैं. झारखंड की राजधानी रांची में ही केंद्रीय विश्वविद्यालय (CUJ) भी है. CUJ में पढ़ने वाले बच्चों को कैंपस प्लेसमेंट में शानदार पैकेज ऑफर हो रहा है. 12वीं पास करने के बाद छात्रों के बाहर दाखिला लेने के सवाल पर PGT शिक्षक परितोष चौधरी बताते हैं कि राज्य के विश्वविद्यालयों में स्थायी टीचर नहीं हैं. गेस्ट फैक्ल्टी के भरोसे चल रहा है. इससे शिक्षा का स्तर डाउन है.

रोजगार के पीछे भागते है युवा

सेंट्रल यूनिवर्सिटी के बारे में उन्होंने बताया कि वहां पढ़े-लिखे तजुर्बेकार शिक्षक पढ़ा रहे हैं. इस कारण बच्चे भी नामांकन लेने के लिए आतुर रहते हैं जबकि हमारे राज्य में कोई ऐसा विश्वविद्यालय नहीं है, जहां बच्चे अपनी इच्छा से पढ़ाई करने आएं. यही कारण है कि यहां से पढ़ने के बाद बच्चे रोजगार के पीछे भागते हैं, जबकि सेंट्रल यूनिवर्सिटी और अन्य प्रतिष्ठित संस्थान में बच्चों का अच्छा प्लेसमेंट कैंपस से ही होता है. उन्होंने कहा कि यह कटु सत्य है, जिसे जब तक हम स्वीकार नहीं करेंगे तब तक स्थिति में सुधार नहीं होगा.

”’नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं और उम्मीद है कि जल्द ही प्रक्रिया शुरू होगी’

‘आवेदन दे चुके है, अधिसूचना का इंतजार’

डीएसपीएमयू के कुलपति तपन कुमार शांडिल्य ने कहा कि हमारे विवि में जितने भी स्थायी शिक्षकों के पद खाली हैं, उसके बारे में संबंधित विभाग को जानकारी दे दी गई है. चूंकि, हमारे विवि में पर्याप्त मात्रा में स्थायी शिक्षक नहीं हैं तो गेस्ट फैकल्टी और कॉन्ट्रैक्चुअल शिक्षकों की नियुक्ति कर हम बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं और उम्मीद है कि जल्द ही प्रक्रिया शुरू होगी.

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इस साल स्थायी शिक्षकों की संख्या और घटेगी

DSPMU में करीब 10 हजार बच्चों के भविष्य की बागडोर मात्र 40-50 स्थायी शिक्षक कैसे संभालेंगे? इस सवाल के साथ जब DSPMU का जायजा लिया गया तो जानकारी सामने आई कि फिलहाल विश्वविद्यालय में केवल 50 शिक्षक ही स्थायी हैं, बाकी सभी शिक्षक कॉन्ट्रैक्ट और गेस्ट फैकल्टी के तौर पर पढ़ाते हैं. इसमें से भी दो शिक्षक ऐसे हैं, जो इसी साल सितंबर में रिटायर हो रहे हैं. वहीं नए शिक्षकों की स्थायी बहाली अभी दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है.

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर चोट

रांची विश्वविद्यालय में 321 पदों के लिए प्रोफेसर कॉट्रैक्ट पर रखे जाएंगे. DSPMU में 20 पदों पर कॉन्ट्रैक्ट प्रोफेसर आएंगे. इससे छात्रों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कितनी प्रतिपूर्ति हो पाएगी, इस सवाल पर प्रो. डॉ पंकज कुमार ने कहा कि यह व्यवस्था छात्रों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर एक चोट की तरह है. यह व्यवस्था खराब है और इसे जल्द ठीक नहीं किया गया तो राज्य में उच्च शिक्षा का भविष्य बेहद भयावह हो जाएगा.

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