PM Modi and XI Jinping meeting : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग 2019 के बाद मिले हैं और दोनों नेताओं के बीच वार्ता जारी है. इन दोनों नेताओं की पांच साल बाद मुलाकात हो रही है. 2019 में शी जिनपिंग भारत आए थे और पीएम मोदी के साथ उनकी मुलाकात हुई थी. बुधवार को ब्रिक्स सम्मेलन का हिस्सा बनने गए दोनों नेता इस सम्मेलन से अलग द्विपक्षीय वार्ता कर रहे हैं. मोदी और जिनपिंग की यह बैठक इसलिए भी बहुत खास मानी जा रही है क्योंकि दोनों देशों ने यह घोषणा की है कि उनके बीच पूर्वी लद्दाख क्षेत्र को लेकर जो विवाद चल रहा था वह समाप्त हो चुका है और दोनों देश अब संबंधों को सामान्य करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे.
भारत और चीन के बीच जब भी वार्ता होती है तो उसमें हमेशा से ही सीमा विवाद प्रमुख मुद्दा रहा है, 2019 में भी जब दोनों देशों के नेता महाबलिपुरम् में मिले थे तो उनके बीच बातचीत का प्रमुख हिस्सा सीमा विवाद भी रहा था, जिसपर बात हुई थी. लेकिन 2020 में गलवान का संघर्ष हो गया और फिर बातचीत जहां से शुरू हुई थी वहीं पहुंच गई और भारत ने भी अपना दृढ़ निश्चय दिखाया कि वह अपनी धरती पर चीन की उपस्थिति को बर्दाश्त नहीं करेगा.
भारत-चीन के बीच क्या हुआ है समझौता?
भारत और चीन दोनों ने ही यह स्पष्ट किया है कि दोनों देशों के बीच गतिरोध खत्म हो गया है और पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में पेट्रोलिंग को लेकर वही स्थिति बहाल कर दी जाएगी जो गलवान झड़प के पहले थी. हालांकि अभी यह स्पष्ट पता नहीं है कि दोनों देशों के बीच क्या समझौता हुआ है. क्या दोनों देश गलवान घाटी में अपने सैनिकों की तैनाती को कम करेंगे अभी इस बारे में कुछ भी स्पष्ट पता नहीं है. सीमा विवाद की मुख्य वजह यह है कि चीन भारत के कुछ इलाकों पर अपना दावा करता है, जबकि भारत उसके दावों को खारिज करता आया है. अब जबकि भारत के साथ चीन ने अपने गतिरोध के समाप्त होने की बात कही है, यह कहा जा सकता है कि भारत ने अपनी कूटनीति से चीन को विश्वास में लिया है और भविष्य के लिए दोनों देश तैयार हैं.
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गलवान घाटी में चीन की हिमाकत से शुरू हुआ विवाद खत्म, ड्रैगन को समझ आई भारत की ताकत
चीन के सामने टिका रहा भारत
गलवान घाटी के झड़प के बाद भारत ने चीन को यह बात समझा दी है कि गलती उसकी थी, भारत सीमा पर विवाद नहीं चाहता इसलिए किसी भी हालत में भारत ड्रैगन के दबाव में आने वाला नहीं है. भारत ने चीन को यह बात समझाने के लिए कई चीनी एप पर प्रतिबंध लगाए, चीन से आयात को नियंत्रित किया और वे सभी कदम उठाए जिससे चीन को यह अहसास हो कि भारत ने सीमा विवाद को सुलझाने में कहीं कोई कोताही नहीं की. साथ ही भारत ने यह कोशिश भी की कि वह लगातार चीन के संपर्क में रहे और बातचीत से रास्ता निकालने की कोशिश की. विदेश मंत्री और सुरक्षा सलाहकार की इसमें अहम भूमिका रही, वे लगातार बातचीत करते रहे और इसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं.
भारत को अपना प्रतिद्वंदी मानता रहा है चीन
चीन भारत को अपना प्रतिद्वंदी मानता रहा है और कहीं ना कहीं वह खुद को भारत से असुरक्षित भी महसूस करता है. उसके मन में यह धारणा है कि भारत, चीन को नियंत्रित करने के लिए अमेरिका का साथ देता है, जबकि सच्चाई यह है कि भारत ने कभी भी किसी देश का विरोध नहीं किया. भारतीय नेता हमेशा से यह कहते आए हैं कि हमें पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध बनाने हैं और इसके लिए भारत ने प्रयास भी किया है, साथ ही भारत ने यह भी बताया है कि वह अपने देशहित को सर्वोपरि मानता है और इसे किनारे रखकर वह कोई समझौता नहीं करेगा. वहीं चीन हमेशा से दक्षिण एशिया में इस तरह की परिस्थिति उत्पन्न करता है कि भारत को परेशानी हो, वह पाकिस्तान का समर्थन इसी उद्देश्य से करता आया है.
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