Sardar Vallabhbhai Patel : आजादी के बाद देश ने लंबी यात्रा तय की है. यह यात्रा यदि लगातार सफलता की ओर बढ़ रही है, तो इसके पीछे है राष्ट्र की मजबूत बुनियाद, जिसे फौलादी व्यक्तित्व के धनी सरदार पटेल ने सूझबूझ और ताकत के दम पर रखा था. आधुनिक जर्मन राष्ट्र की बुनियाद जिस तरह ओटोफॉन बिस्मार्क ने रखी, सरदार पटेल ने वही भूमिका भारत को लेकर निभायी. राष्ट्रीय एकता के सूत्रधार पटेल के इस व्यक्तित्व को देश प्रतिदिन याद करता है. परंतु क्या पटेल की शख्सियत इसी दायरे में सिमटी रही है? निश्चित तौर पर इसका जवाब ना में है.
आधुनिक भारत की कई ऐसी नीतियां हैं, जिन पर संदर्भ की जब भी जरूरत महसूस हो, उस पर इस्पाती विचार चाहिए, तो सरदार कभी निराश नहीं करेंगे. राष्ट्रीय एकीकरण तो उनके व्यक्तित्व का निश्चित तौर पर बड़ा पहलू है. परंतु भारत की सूचना और प्रसारण नीति, भारत में संचार के साधनों को बढ़ावा देना, पड़ोस से भारत के संबंधों की बात हो, हर मुद्दे पर जब भी आप पटेल की ओर झांकेंगे, उनके विचार आपको आलोकित करेंगे. आजकल जाति जनगणना की खूब चर्चा हो रही है. आजादी के बाद पहली जनगणना 1951 में हुई थी. चूंकि इसके ठीक पहले, यानी 1931 की जनगणना में जाति भी एक आधार रह चुकी थी, लिहाजा इस बार भी इस आधार को शामिल करने की मांग उठी, तब पटेल ने इसे सिरे से खारिज कर दिया था.
उन्होंने कहा था, ‘जाति जनगणना देश के सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ सकती है.’ महात्मा गांधी के पोते राजमोहन गांधी ने पटेल की जीवनी ‘पटेल-अ लाइफ’ में कश्मीर पर पटेल के रुख को लेकर एक घटना का जिक्र किया है. इसमें उन्होंने लिखा है कि 26 अक्तूबर, 1947 को नेहरू के घर हुई एक बैठक में कश्मीर के दीवान मेहर चंद महाजन ने भारतीय सेना की मदद मांगी. तब महाजन ने कहा था कि यदि भारत इस मांग पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है, तब कश्मीर जिन्ना से मदद के लिए कहेगा. इससे नेहरू गुस्से में आ गये और उन्होंने महाजन को चले जाने को कहा. तब पटेल ने महाजन को रोक कर कहा था, ‘महाजन, आप पाकिस्तान नहीं जा रहे.’
आजादी के बाद 562 से ज्यादा देसी रियासतों को मजबूत राष्ट्र के बैनर तले लाना मामूली बात नहीं थी. कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद रियासतों को छोड़ सबने भारत में शामिल होना स्वीकार किया. कश्मीर पर जहां सीधे पाकिस्तान की निगाह थी, वहीं बाकी दो के लिए पटेल पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री जफरुल्ला खान को जिम्मेदार मानते थे. कलकत्ता में तीन जनवरी, 1948 को िदये एक भाषण में पटेल ने जफरुल्ला खान को खरी-खोटी सुनाई थी. इसी भाषण में पटेल ने भारत-पाक एकता की बात खारिज करते हुए कहा था, ‘कुछ लोग कहते हैं कि भारत और पाकिस्तान को एक हो जाना चाहिए, पर वे इसका विरोध करते हैं.’
तब कश्मीर में पाकिस्तान की शह पर कबायली हिंसा जारी थी. इससे गुस्साये पटेल ने कहा था कि पाकिस्तान आमने-सामने की लड़ाई नहीं कर रहा. उन्होंने पाकिस्तान को खुली लड़ाई की चुनौती भी दे दी थी. हैदराबाद को लेकर पटेल पहले ही मन बना चुके थे. इस भाषण के ठीक आठ महीने, दस दिन बाद उन्होंने हैदराबाद को पुलिस कार्रवाई के जरिये भारत में मिला लिया था. पड़ोसी देशों को लेकर पटेल की राय साफ थी. वे चीन पर भरोसा करने के खिलाफ थे. उसकी साम्राज्यवादी नीति को पहले ही भांप चुके थे. सात नवंबर, 1950 को पंडित नेहरू को लिखे पत्र में पटेल ने लिखा था, ‘भले ही हम खुद को चीन के मित्र मानते हैं, पर चीनी हमें अपना मित्र नहीं मानते हैं. ‘जो उनके साथ नहीं है वह उनके खिलाफ है’ की कम्युनिस्ट मानसिकता के साथ, यह एक महत्वपूर्ण संकेत है, जिस पर हमें उचित ध्यान देना होगा.’
सरदार पटेल स्वाधीन भारत के पहले सूचना और प्रसारण मंत्री भी रहे. आजाद भारत की सूचना प्रसारण नीति की बुनियाद भी उन्होंने बनायी. भारतीय अखबारों को किफायती दर पर देसी एजेंसी की खबरें मिलें, इसके लिए उनकी ही पहल पर पीटीआइ और यूएनआइ की स्थापना हुई. उन्होंने स्वतंत्र भारत में रेडियो के तेज विकास की योजना बनायी. इसके तहत देशभर में रेडियो स्टेशन एवं स्टूडियो स्थापित करना तय हुआ. चार नवंबर, 1948 को नागपुर रेडियो स्टेशन का उद्घाटन करते समय सरदार पटेल का यह कहना कि ‘रेडियो देश की एकता और विकास में अहम भूमिका निभायेगा’, मीडिया को लेकर उनकी सोच को ही जाहिर करता है. पटेल की 150वीं जयंती का वर्ष शुरू हो रहा है. उनके विचार आज भी यदि प्रासंगिक बने हुए हैं, तो इसकी वजह है उनकी दूरंदेशी सोच. उनकी यह सोच उनके अक्खड़ व्यक्तित्व में कहीं खो सी गयी है. जिसे सामने लाना आज की सबसे बड़ी जरूरत है. तभी हम समझ सकते हैं कि एक नवेला राष्ट्र किस बुनियाद पर दृढ़ बना रहा.