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Story Of Partition Of India – 6 : 18 जुलाई 1947 को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम ब्रिटिश संसद से पारित हो गया था और इस अधिनियम के पारित होने के साथ ही यह बात भी तय हो गई थी कि भारत को स्वतंत्रता विभाजन के साथ मिली है. हालांकि स्वतंत्रता से पहले मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान के पक्ष में जिस तरह के तर्क दिए उससे पूरा देश या यूं कहें कि हिंदू पक्ष आहत था. मुस्लिम लीग और मोहम्मद अली जिन्ना के तर्क ने भारत की एकता को खंडित कर दिया.
पाकिस्तान के पक्ष में मुस्लिम लीग के तर्क
मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 में कांग्रेस के प्रतिद्वंद्वी के रूप में की गई थी. 1916 में मोहम्मद अली जिन्ना जब इसके अध्यक्ष बने तो लीग ने मुसलमानों के अधिकारों की मांगों को ज्यादा प्रमुखता से उठाया. लेकिन उस वक्त तक मुस्लिम लीग ने अलग पाकिस्तान की मांग नहीं की थी. हालांकि जिन्ना ने एक 14 सूत्री प्रस्ताव जरूर दिया था, जिसमें मुसलमानों के हितों की बात की गई थी. मुस्लिम लीग इस बात को देश में प्रचारित कर रही थी कि भारत में बहुसंख्यक हिंदू मुसलमानों के अधिकारों का हनन कर रहे हैं. इस मसले पर बात करने के लिए 1938 में मोहम्मद अली जिन्ना और महात्मा गांधी के बीच बैठक भी हुई, लेकिन वह विफल रही और अंतत: 23 मार्च 1940 में मुस्लिम लीग ने अलग पाकिस्तान राज्य की मांग रख दी, जिसे लाहौर प्रस्ताव के रूप में जाना जाता है. मुस्लिम लीग का कहना था कि मुसलमान एक अलग राष्ट्र है, इसलिए उनके लिए एक अलग राष्ट्र होना चाहिए.
जिन्ना का 14 सूत्री प्रस्ताव क्या था
मोहम्मद अली जिन्ना ने 1929 में मुसलमानों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक 14 सूत्री प्रस्ताव पेश किया था. इस प्रस्ताव में जो मांग की गई थी उसमें संघीय प्रणाली की बात कही गई थी, साथ ही प्रांतों के स्वायत्तता पर जोर दिया गया था. मुसलमानों के लिए देश में एक तिहाई आरक्षण और उनके लिए अलग से निर्वाचन (separate electorate) की व्यवस्था की भी मांग की गई थी. सिंध को मुंबई से अलग करने, पंजाब और बंगाल में मुस्लिम बहुसंख्यकों के हितों की रक्षा करने जैसे प्रस्ताव शामिल थे. मुस्लिम अधिकारों के मुद्दे पर वीटो पावर की भी मांग की गई थी. हालांकि पंडित नेहरू ने इन प्रस्तावों को हास्यास्पद बताया था.
मुसलमानों के अलग राष्ट्र की मांग पर हिंदुओं का आक्रोश
बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर के संपूर्ण वाङ्मय में इस बात का जिक्र है कि मुसलमानों के अलग राष्ट्र की मांग पर हिंदुओं में जबरदस्त आक्रोश था, जो स्वाभाविक भी था. मुस्लिम लीग ने अपने प्रस्ताव में यह कहा कि मुसलमान एक पृथक राष्ट्र है. उनके इस प्रस्ताव से हिंदुओं का वो विचार खंडित हो रहा था जिसमें वे हमेशा यह दावा करते आए थे कि भारत एक राष्ट्र है, जिसमें हिंदू-मुस्लिम सहित अन्य धर्मों के लोग भी रहते थे. बाबा साहेब लिखते हैं कि अंग्रेज हमेशा यह दावा करते थे कि भारत एक राष्ट्र नहीं है, यहां के लोगों को भारतीय कहना उनके लिए संज्ञा मात्र है. एक राष्ट्र के लिए जो जरूरी चीजें होनी चाहिए उसका यहां अभाव है. यहां तक कि राष्ट्रकवि रवींद्रनाथ टैगोर भी अंग्रेजों के इस बात से कुछ हद तक सहमत थे. लेकिन हिंदू पक्ष लगाता यह कहता रहा कि भारत एक राष्ट्र है और इसके पक्ष में कई तर्क भी दिए, जिनके बाद अंग्रेजों ने उनकी बात को काटना बंद कर दिया, लेकिन जब मुस्लिम लीग ने मुसलमान को अलग राष्ट्र कह दिया, तो उनके एक राष्ट्र के सिद्धांत को चोट पहुंची और वे आक्रोश में आ गए.
पाकिस्तान के लिए जिद
धर्म के नाम पर देश के बंटवारे के लिए मुस्लिम लीग अड़ गई थी और लाख प्रयासों के बावजूद महात्मा गांधी भी जिन्ना को समझा नहीं पाए कि भारत में मुसलमान सुरक्षित हैं. जिन्ना यह तय करके बैठे थे कि वे भारत का विभाजन करवाकर ही रहेंगे, इतना ही नहीं उन्हें सीधी कार्रवाई की बात भी की और पाकिस्तान के लिए जब मुस्लिम लीग ने डायरेक्ट एक्शन किया, तो दंगे भड़के और एक के बाद एक नरसंहार हुए. कलकत्ता दंगा में लगभग पांच हजार लोगों के मारे जाने का अनुमान है. इन नरसंहारों के बाद अंतत: 3 जून 1947 को कांग्रेस ने भारत के विभाजन के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था और भारत दो हिस्सों में बंट गया था.
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