V Sripathy News: जीवन में कितनी भी परेशानी क्यों न हो, यदि आपके अंदर हौसला है और मंजिल को पाने की ललक है, तो फिर कोई मुश्किल आपका रास्ता नहीं रोक सकती है. इस बात को साबित कर दिखाया है तमिलनाडु के एक पिछड़े गांव से आने वालीं आदिवासी महिला वी श्रीपति ने. 23 वर्षीया वी श्रीपति तमाम मुश्किलों को पार करके तमिलनाडु की पहली आदिवासी महिला जज बन गयी हैं. उनका चयन सिविल जज पद पर हुआ है. श्रीपति की इस उपलब्धि ने युवाओं को ही नहीं, बल्कि प्रदेश के मुख्यमंत्री को भी आश्चर्यचकित कर दिया है.
विगत साल तमिलनाडु लोक सेवा आयोग (टीएनपीएससी) की ओर से आयोजित न्यायिक सेवा परीक्षा 2023 में तिरुवन्नामलाई जिले के जवाधु पहाड़ियों के पास पुलियूर गांव की रहने वाली वी श्रीपति ने अपनी शानदार कामयाबी से इतिहास रच डाला है. महज 23 साल की उम्र में न्यायिक सेवा जैसी कठिन परीक्षा पास कर वह सिविल जज बन गयी हैं. उनकी यह उपलब्धि इसलिए भी खास है, क्योंकि वह तमिलनाडु की पहली एकमात्र आदिवासी महिला जज हैं. मलयाली जनजाति से संबंध रखने वाली श्रीपति उन 176 भाग्यशाली युवाओं में शुमार हैं, जिन्होंने कड़ी प्रतिस्पर्धा के बाद यह मुकाम हासिल किया है. आज वह उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन गयी हैं, जो अपने लक्ष्य को पाने के लिए कड़ी मेहनत करती हैं और जीवन की समस्याओं का सामना करते हुए आगे बढ़ती हैं.
बच्चे के जन्म के दो दिन बाद ही परीक्षा में हुईं शामिल
तमिलनाडु की पहली आदिवासी महिला जज वी श्रीपति ने साहस और संघर्ष की एक अनूठी मिसाल पेश की है. अपने साहसिक और जोखिम भरे कदम की वजह से आज वह हर किसी की वाहवाही लूट रही हैं. दरअसल, वी श्रीपति नवंबर, 2023 में जज की परीक्षा देने के लिए करीब 200 किलोमीटर की यात्रा करके चेन्नई पहुंची थीं. परीक्षा के दिनों में वह गर्भवती थीं और जिस दिन उनकी परीक्षा थी, उसी दिन उनकी डिलीवरी की तारीख थी. परीक्षा के दो दिन पहले ही उन्होंने बच्चे को जन्म दिया था. ऐसी स्थिति में डॉक्टर महिलाओं को आराम करने की सलाह देते हैं, मगर न्यायिक सेवा के प्रति जुनूनी श्रीपति यह मौका अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहती थीं. बच्चे के जन्म के बावजूद श्रीपति अपने पति, रिश्तेदारों और दोस्तों की मदद से प्रसव के दूसरे दिन ही कार से चेन्नई रवाना हो गयीं और सिविल जज की परीक्षा दी. आखिरकार, उनकी यह मेहनत रंग लायी. आज वह जज बनकर अत्यंत पिछड़े तबके के छात्र-छात्राओं के साथ मुख्यधारा के युवाओं को भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रही हैं.
काफी मुश्किलों भरा रहा है शुरुआती सफर
श्रीपति का जन्म तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई जिले के चेंगम शहर के पास एक सुदूर गांव थुविंजिकुप्पम में हुआ था. जंगल से घिरे इस गांव में न तो कोई स्कूल था और न ही कोई अच्छी सड़कें थीं. गांव में बुनियादी सुविधाओं का भी घोर अभाव था. वहां का नजदीकी बस स्टैंड परमानंदल गांव में है, जो थुविंजिकुप्पम से करीब 15 किलोमीटर दूर है. इसके चलते बेहतर जीवन स्तर की तलाश में श्रीपति के माता-पिता सालों पहले येलागिरी हिल्स के अथानावूर गांव में शिफ्ट हो गये.
तीन भाई-बहनों में सबसे बड़ी श्रीपति का शुरुआती जीवन काफी मुश्किल और संघर्षों से भरा रहा है. उनके पिता एस कलियाप्पन जैसे-तैसे खेती-किसानी कर अपने बच्चों का पालन-पोषण किया करते थे. जबकि, उनकी मां के मल्लिगा गांव में ही दूसरों के घरों में बर्तन मांजने और खाना बनाने का काम किया करती थीं. तमाम परेशानियों के बावजूद उनके माता-पिता ने उन्हें पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. अपने छोटे भाई-बहन के सरन्या और के सूर्यप्रकाश के साथ वी श्रीपति ने अथनावूर गांव स्थित सेंट चार्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल से विज्ञान विषय में 12वीं तक की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए डॉ अंबेडकर गवर्नमेंट लॉ कॉलेज, चेन्नई में दाखिला ले लिया.
शादी के बाद भी जारी रखी एलएलबी की पढ़ाई
एक अत्यंत गरीब परिवार में पली-बढ़ीं श्रीपति की जीवन काफी चुनौतियों से भरा रहा है. स्कूली पढ़ाई पूरी करने के तुरंत बाद उनके माता-पिता ने बेहद कम उम्र में ही उनकी शादी कर दी. बावजूद इसके उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी. श्रीपति भली भांति जानती थीं कि बगैर पढ़ाई के वह न तो अपने परिवार की स्थिति बदल सकती हैं और न ही अपने समुदाय के लोगों की भलाई कर सकती हैं. लिहाजा, शादी की पूरी जिम्मेदारियां निभाते हुए उन्होंने साल 2016-17 में एलएलबी की पढ़ाई पूरी की. लॉ की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने न्यायिक सेवा परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी. तैयारी के क्रम में उनकी शिक्षिका महालक्ष्मी ने काफी मार्गदर्शन किया. हालांकि, पारिवारिक प्रतिबद्धताओं और सामाजिक अपेक्षाओं के साथ पढ़ाई मैनेज करने के दौरान उनके रास्ते में कई चुनौतियां भी आयीं. वह प्रेग्नेंट भी थीं. फिर भी वह घर के काम और अपनी पढ़ाई के बीच संतुलन बनाने में सफल रहीं. अपनी लगन और जुनून से आज उन्होंने बड़ी कामयाबी हासिल की है.
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मुख्यमंत्री भी कर चुके हैं श्रीपति की सराहना
पढ़ाई पूरी कर सिविज जज बनने की इस संघर्षपूर्ण यात्रा के दौरान श्रीपति को अपने पति वेंकटरमन और के मल्लिगा का भरपूर सहयोग मिला. उनके हर कदम पर दोनों उनकी ताकत बनकर खड़े रहे. शादी होने के बाद पति वेंकटरमन कभी भी उनके करियर की राह में रुकावट बनकर नहीं खड़े हुए, बल्कि उन्होंने पूरी मजबूती के साथ हर कदम पर अपनी पत्नी का साथ दिया. कम पढ़े-लिखे होने के बावजूद पेशे से एंबुलेंस चालक वेंकटरमन ने अपनी पत्नी को आगे पढ़ने के लिए काफी प्रेरित किया. हालांकि, इस दौरान आसपास के लोगों ने उन्हें काफी खरी-खोटी सुनायी.
मां और पति का मिला भरपूर सहयोग
बावजूद इसके उन्होंने किसी की एक न सुनी और श्रीपति को जज बनने के लिए अपनी ओर से कोशिश जारी रखी. वहीं दूसरी ओर, श्रीपति की मां का त्याग भी कुछ कम नहीं था. अपनी बेटी को पढ़ाने के लिए वह गांव छोड़कर शहर में शिफ्ट हो गयीं. साथ ही अपने तीनों बच्चों को यहां के सबसे अच्छे स्कूल में दाखिला करवाया. उनकी पढ़ाई में किसी तरह की कोई बाधा न आये, इसके लिए उन्हें घर-घर बर्तन मांजने का भी काम करना पड़ा. श्रीपति ने भी अपने माता-पिता की मजबूरी, त्याग और संघर्षों को बखूबी समझा और पूरी शिद्दत के साथ पढ़ाई में जुटी रहीं. आज उनकी मां की मेहनत का ही प्रतिफल है कि उनकी बेटी ने तमिलनाडु की पहली आदिवासी महिला जज बनकर इतिहास रच डाला है.
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तमिलनाडु की पहली आदिवासी महिला जज बनकर आदिवासी समाज के साथ अपने राज्य का नाम रोशन करने वालीं वी श्रीपति के संघर्षों और कामयाबी की आज हर कोई तारीफ कर रहा है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने भी उनकी सराहना की है. अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर उन्होंने लिखा है, “तिरुवन्नामलाई जिले की श्रीपति ने महज 23 साल की उम्र में न्यायिक सेवा परीक्षा पास की है. मुझे यह देखकर खुशी हुई कि इतनी कम उम्र में पहाड़ी गांव की एक आदिवासी लड़की ने यह उपलब्धि हासिल की है.
मुझे यह जानकर गर्व महसूस हो रहा है कि श्रीपति को जज के रूप में चुना गया है, वो भी द्रविड़ियन मॉडल के माध्यम से हुआ है. सरकार ने तमिल में शिक्षित लोगों के लिए सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता के रूप में लाया है. उनकी सफलता में सहयोग देने के लिए उनकी मां और पति को धन्यवाद!” इस तरह श्रीपति की उपलब्धि न केवल उनके अथक समर्पण का, बल्कि उनके पति के सहयोग का भी पुख्ता प्रमाण है.