Windows Outage : The Italian Job,Colossus: The Forbin Project, The Conversation ये हाॅलीवुड की कुछ चर्चित फिल्में हैं, जिनमें साइबर अटैक पर आधारित कहानियों को दिखाया गया है. शुक्रवार को अचानक माइक्रोसाॅफ्ट कंपनी के साथ जब तकनीकी समस्या आई तो कई लोगों के जेहन में इन फिल्मों की याद ताजा हो गई.
हाॅलीवुड की इन फिल्मों में साइबर टेरर दिखाया गया है, जबकि शुक्रवार को माइक्रोसाॅफ्ट के साथ जो कुछ हुआ उसमें क्लाउड सर्विस में आई बड़ी तकनीकी समस्या शामिल थी. इस समस्या की वजह से भारत ही नहीं विश्व के कई देशों में एयरलाइंस सेवा, बैंकिंग सेवा और अन्य जरूरी सेवाएं प्रभावित हुईं. माइक्रोसाॅफ्ट के सीईओ सत्या नडेला को सामने आकर बताना पड़ा कि उनकी कंपनी में कुछ समस्या हुई है, जिसपर उनकी नजरें हैं और जल्दी ही उसका समाधान किया जाएगा. समस्या का हल निकला और सेवाएं सामान्य हो रही हैं, लेकिन आम आदमी यह समझना चाहता है कि आखिर माइक्रोसाॅफ्ट कंपनी को क्या समस्या हुई कि कई देशों में एविएशन सिस्टम सहित कई सेवाएं प्रभावित हुईं.
क्राउडस्ट्राइक एक एंटीवायरस बनाने वाली कंपनी
इस संबंध में जानकारी देते हुए कुमार अमृतांशु (स्वतंत्र निदेशक ,आईआईएमबी और आईआईसीए) ने बताया कि माइक्रोसाॅफ्ट जैसी कंपनियां अपनी सिक्योरिटी के लिए कुछ सर्विस लेती हैं, इसी तरह की एक सर्विस उन्होंने क्राउडस्ट्राइक से ली हुई थी. क्राउडस्ट्राइक एक एंटीवायरस बनाने वाली कंपनी है, इसके अपडेट में कुछ बग आ गया, जिसकी वजह से यह समस्या उत्पन्न हुई. बग के आ जाने से माइक्रोसाॅफ्ट के 95 प्रतिशत सिस्टम फेल हो गए.
20 साल पहले आए क्लाउड सर्विस की कहानी
यहां यह समझना आवश्यक है कि ऐसा हुआ तो क्यों हुआ? आज से 20 साल पहले तक सभी कंपनियां अपना डाटा सेव करने के लिए अपने सर्वर का इस्तेमाल करती थी, लेकिन फिर आया क्लाउड सर्विस. क्लाउड सर्विस देने वालीं कंपनियों ने यह कहा कि आपको अपना सर्वर लेने और आईटी के कर्मचारियों को रखने और उनके मेंटेनेंस में काफी खर्च आता है और आपका कोर काम यह है भी नहीं, तो आप क्लाउड सर्विस ले लें, जिसमें आपके खाते में आपका डाटा सुरक्षित रहेगा. चूंकि क्लाउड सर्विस सस्ता और बहुत ही सुविधाजनक था, इसलिए इसे खूब पसंद किया गया.
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क्या है क्लाउड सर्विस का फायदा
क्लाउड सर्विस का फायदा क्या है इसे समझने के लिए आप यह समझें कि जब आप किसी एयरलाइंस कंपनी का टिकट बनाने के लिए उसकी वेबसाइट पर जाते हैं और उसका टिकट बनाते हैं तो आप समझते हैं कि आप वेबसाइट पर ही सब काम कर रहे हैं, जबकि यह सच नहीं है, बल्कि सच यह है कि आप जो कुछ भी वेबसाइट पर करते हैं, वह सबकुछ क्लाउड में होता रहता है. वैसे ही जब आप एयरपोर्ट पर चेकइन करते हैं, तो सारा कुछ क्लाउड पर होता है और एयरलाइंस कंपनियों का कर्मचारी आपको सीट देता है आपको बोर्डिंग पास देता है. हां यह सच है कि एयरलाइंस के कर्मचारियों को कुछ अधिक एक्सिस प्राप्त होता है, जबकि आप जब उनकी वेबसाइट पर जाते हैं, तो आपके पास लिमिटडेट एक्सिस होता है.
क्लाउड सर्विस आपको किराएदार बनाता है
क्लाउड सर्विस के जरिए आपको मुख्यत: वेब एप्लीकेशन और स्टोरेज जैसी सुविधाएं मिलती हैं. जब आप किसी सुविधा को रियूज करते हैं या उसके लिए रेंट देते हैं तो निश्चित तौर पर वह सस्ता होगा, क्योंकि हम उसे खरीदकर उसके मालिक नहीं बन रहे हैं. बस समस्या यही हुई कि माइक्रोसाॅफ्ट कंपनी जो क्लाउड सर्विस उपलब्ध कराती है, उसी के सिक्यूरिटी सिस्टम में कुछ खराबी आ गई या यूं कहें कि बग आ गया. बस सभी किरायएदारों की बत्ती गुल हो गई. चूंकि सभी कंपनियों के आंकड़े इसी क्लाउड पर मौजूद थे इसलिए सेवाएं प्रभावित हुईं.
साइबर टेरिस्ट कर सकते हैं रैनसमवेयर अटैक
अब चिंता जिस बात को लेकर है वह यह है कि जो कुछ शुक्रवार को हुआ वैसा दोबारा ना हो और अगर हो भी तो उसमें यह देखा जाए कि कहीं कोई गलत इरादे से इस तरह का अटैक क्लाउड सर्विस पर ना करा दे. माइक्रोसाॅफ्ट के साथ जो कुछ हुआ, उसमें एंटी वायरस बनाने वाली कंपनी ने अपनी गलती स्वीकार की है और उसे सुधारने की बात भी कही है, लेकिन अगर कोई जानबूझ कर इस तरह का अटैक करवा दे, तब क्या होगा? साइबर टेरिस्ट का खतरा वैश्विक जगत में मौजूद है, कई बार इस तरह की कार्रवाइयां हो भी चुकी हैं, जब रैनसमवेयर अटैक हुआ है और क्रिप्टोकरेंसी के जरिए फिरौती की मांग की गई है. इसमें अटैक करने वाला व्यक्ति संबंधित कंपनियों से यह कहता है कि आप फिरौती दें अन्यथा आपका डाटा डिलीट कर दिया जाएगा. अगर ऐसा हुआ तो कंपनियां बर्बाद हो सकती हैं और बंद भी हो सकती हैं.
डार्क वेब का भी खतरा
साइबर टेरिस्ट का खतरा इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि डार्क वेब पर अबतक कोई लगाम नहीं लगायी जा सकी है. डार्क वेब इंटरनेट की दुनिया का वह स्याह पक्ष है, जिसकी शुरुआत के बारे में किसी को अंदाजा नहीं है. लगभग 30-40 पहले इसकी शुरुआत हुई और इंटरनेट की दुनिया का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा इसमें शामिल हैं. डार्क वेब के जरिए अगर साइबर अटैक हो, तो उसके बारे में पता करना बहुत मुश्किल है, क्योंकि इस दुनिया में किसी की पहचान बेनकाब नहीं है.
डार्क वेब की दुनिया में दो लोग आपस में बात करते हैं, एक दूसरे का काम भी करते हैं, लेकिन उन्हें यह पता नहीं होता कि वे किससे बात कर रहे हैं और किसके लिए काम कर रहे हैं. डार्क वेब में ब्राउज करने का तरीका भी अलग है और उसका ब्राउजर भी अलग है. इस दुनिया में कई तरह के पासवर्ड मौजूद हैं और यहां एक्टिव लोग कई तरह के गलत कार्यों में शामिल हैं. अगर साइबर अटैक बड़े पैमाने पर हुआ तो वह दुनिया को बड़े खतरे में डाल देगा, जिस बात की आशंका हाॅलीवुड के कई फिल्मों में की जताई जा चुकी है.
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