इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के
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इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने
यह कुछ पंक्तियां हैं, जो हमारे जीवन में इस कदर शामिल हैं, जैसे यह हमारे जीवन का हिस्सा हों. इन पंक्तियों के रचनाकार मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां उर्फ “ग़ालिब” भारत के महान शायर थे. इनके बारे में कहा जाता है कि यह उर्दू भाषा के सर्वकालिक महान शायर हैं. इन्होंने फारसी के शब्द को भारत में मशहूर किया. वे मुगल शासक बहादुर शाह जफर के दरबारी थे. ग़ालिब की पहचान उनके उर्दू गजलों के कारण है. उन्होंने अपने बारे में लिखा था-
“हैं और भी दुनिया में सुख़न्वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़-ए बयां और”
गालिब का जन्म 27 दिसंबर, 1796 में आगरा में हुआ था. उनके पिता ईस्ट इंडिया कंपनी के सैन्य अधिकारी थे. गालिब की प्रारंभिक शिक्षा के बारे में कोई खास जानकारी नहीं है गालिब के अनुसार उन्होंने 11 वर्ष की आयु से ही उर्दू एवं फारसी में गद्य तथा पद्य लिखना शुरू कर दिया था. गालिब ने इश्क पर कई गजल और शायरी लिखे, जो आज भी लोगों की जुबान पर हैं.