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या देवी सर्वभूतेषु… !!

– सत्यनारायण पांडेय- सुप्रभातः सर्वेषां सुहृदां लोककल्याणे तत्परां दुर्गायाः भक्तानां कृते! सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके । शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोऽस्तुते।। (मंगल्ये ही उच्चारण है मांगल्ये नहीं) नवदुर्गायाः पूजनेमतिमतां सज्जनाः अद्यावधि नवदिवसपर्यन्तं नवदुर्गायाः आराधनां कुर्वन्ति, परिवारकल्याणाय सम्पूर्णविश्वस्य कल्याणाय च। कथं न भवेत् "सा जगदम्बा सर्वेषां मंगलकारिणी, नास्ति कश्चित्संदेहः"। कल मैं ने सप्तशती में वर्णित देवी के […]

– सत्यनारायण पांडेय-

सुप्रभातः सर्वेषां सुहृदां लोककल्याणे तत्परां दुर्गायाः भक्तानां कृते!

सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।

शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोऽस्तुते।।

(मंगल्ये ही उच्चारण है मांगल्ये नहीं)

नवदुर्गायाः पूजनेमतिमतां सज्जनाः अद्यावधि नवदिवसपर्यन्तं नवदुर्गायाः आराधनां कुर्वन्ति, परिवारकल्याणाय सम्पूर्णविश्वस्य कल्याणाय च।

कथं न भवेत् "सा जगदम्बा सर्वेषां मंगलकारिणी, नास्ति कश्चित्संदेहः"।

कल मैं ने सप्तशती में वर्णित देवी के प्रथम चरित्र की चर्चा की थी, वह प्रथम अध्याय में ही समाहित है.

द्वितीय चरित्र, द्वितीय अध्याय से चतुर्थ अध्याय तक वर्णित है. प्रथम चरित्र की देवी महाकाली कही गयीं हैं और द्वितीय चरित्र की महालक्ष्मी, ऐश्वर्य देने वाली.

पढ़ें ‘दुर्गासप्तशती’ का विश्लेषण-1

इस द्वितीय चरित्र में महिषासुर की सेना और महिषासुर के वध की कथा प्रमुख है. जैसा मैंने संकेत दिया था प्रथम चरित्र "बुद्धिं यस्य बलं तस्य निर्बुद्धिस्तु कुतो बलम्" का उद्घोषक है, वहीं द्वितीय चरित "संघेशक्ति" की शिक्षा हम भक्तों के लिए ईंगित करता है.

संक्षिप्तकथानुशीलन क्रम में हम यहां पाते हैं–

महिषासुर सभी इन्द्रादिदेवताओं को पराजित कर स्वयं इन्द्र बन बैठा था:–

"जित्वा च सकलान् देवानिन्द्रोऽभून्महिषासुरः।"

देवगण भयभीत हो जंगलों में भटकने को विवश थे।

एक दिन सभी ब्रह्मदेव के पास समाधान के लिए जाते हैं और ब्रह्मा सभी देवों के लेकर भगवान विष्णु के पास इस समस्या के समाधान के लिए पहुंचते हैं:—

"ततः पराजिता देवाः पद्मयोनिं प्रजापतिम्"

***

पुरस्कृत्य गतास्तत्र यत्रेशगरूडध्वजौ।

***

यथावृत्तं कथयामासुर्देवाभिभवविस्तरम्।

विष्णु के समक्ष देवों ने अपने पराजय और महिषासुर के आतंक की कथा विस्तार से सुनायी तथा महिषासुर के वध का निवेदन किया.

भगवान विष्णु क्रोधित होते हैं, उनसे एक तेज निकल कर आकाश में चमक उठता है, फिर क्या था ब्रह्मा, शिव, इन्द्रादि देवता सभी उत्साहित हो क्रोध करने लगे और सबों के निःसृत तेज इकट्ठे हो परम सुन्दरी, परम शक्ति शालिनी दुर्गा रूप में प्रकट हो गईं, सबों ने अपने अपने आयुध उनको भेंट किए, प्रकृति ने शृंगारादिप्रसाधन दिए और उस पूंजीभूत अपराजेय शक्तिस्वरूपा मां दुर्गा ने दुर्दान्त महिषासुर का वध किया.

इसके बाद चतुर्थ अध्याय में सभी देवों ने माता की विस्तार से स्तुति की है. यहां निश्चित रूप से संगठित शक्ति की महिमा गायी गई है, देवता डर से भाग रहे थे, ब्रह्मा की अगुआई में विष्णु के पास गए विष्णु को इस असहज स्थिति पर क्रोध का आना और सबमें उत्साह तथा शक्ति का संचार संगठ विजय की पराकाष्ठा तक पहुंचना.

हम भी जगें पूजन के साथ मनन भी हो.

फिर "संघे शक्ति कलियुगे(वर्तमानेऽस्मिन्युगे)" तो आवश्यक ही है.

जयन्ती मंगलाकाली भद्रकाली कपालिनी।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।

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