19.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

मुक्तिबोध के जन्म शताब्दी वर्ष पर कविता कार्यशाला का आयोजन

आधुनिक हिंदी कविता के प्रणेता मुक्तिबोध के जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में इप्टा एवं प्रलेस अशोकनगर द्वारा संयुक्त रूप से कविता कार्यशाला का आयोजन किया गया. कार्यशाला के दूसरे दिन तीन सत्र संपन्न हुए. पहले सत्र का विषय था ‘इक्कीसवीं सदी की कविता का वैचारिक स्वप्न.’ दूसरे सत्र का विषय था ‘जन पक्षधर कविता […]

आधुनिक हिंदी कविता के प्रणेता मुक्तिबोध के जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में इप्टा एवं प्रलेस अशोकनगर द्वारा संयुक्त रूप से कविता कार्यशाला का आयोजन किया गया. कार्यशाला के दूसरे दिन तीन सत्र संपन्न हुए. पहले सत्र का विषय था ‘इक्कीसवीं सदी की कविता का वैचारिक स्वप्न.’ दूसरे सत्र का विषय था ‘जन पक्षधर कविता की पहचान और ज़रूरत.’ कार्यशाला के अंतिम सत्र में विनीत तिवारी, सुरेंद्र रघुवंशी, शशिभूषण, मानस भारद्वाज, अरबाज़ और हरिओम राजोरिया ने अपनी कविताओं का पाठ किया.

कार्यशाला के दूसरे दिन की शुरुआत भी इप्टा अशोक नगर के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत जनगीत से हुई. इस अवसर पर जेएनयू की छात्रा समीक्षा ने अपनी मधुर आवाज में ‘हिरना समझ बुझि बन चरना.’ का गायन पेश का सबको मंत्रमुग्ध कर दिया. ‘इक्कीसवीं सदी की कविता का वैचारिक स्वप्न.’ विषय पर अपने आधार वक्तव्य में चर्चित कवि एवं युवा द्वादश के संपादक निरंजन श्रोत्रिय ने कहा – मुक्तिबोध हमारी नयी रचनाशीलता के लिए प्रकाश स्तंभ की तरह है.

कल अपने वक्तव्य में विनीत तिवारी ने मुक्तिबोध के जीवन, काव्य विवेक एवं आत्मसंघर्ष को समझने के लिए जैसा अकादमिक, साहित्यिक एवं वैचारिक वक्तव्य दिया उसे हमेशा ध्यान में रखने की जरूरत है. उन्होंने आगे कहा यह सुखद है कि युवा कवि अपने विचारों एवं सृजन में सुलझे हुए हैं. वे किसी जल्दी में नहीं हैं. कल जिन कवियों मानस भारद्वाज, कविता जड़िया, अरबाज़, बसंत त्रिपाठी आदि ने कविता पाठ किये उनकी रचनात्मकता प्रशंसनीय है.

इनकी मंजिल ऊंची है. वैचारिकता के स्वप्न से संबद्धता को सबसे प्राथमिक एवं जरूरी संलग्नता बताते हुए कवि एवं कहानीकार शशिभूषण ने कहा – यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत को बाकायदा विचारहीन बनाया गया है. विचारहीनता ही भ्रष्टाचार की शुरुआत है. यह विचारहीनता भारत के लोकतंत्र एवं लोकतांत्रिक समाजवाद के सपने के लिए रोड़ा है. धर्म एवं राज सत्ता से लोक के लिए, हक़ एवं बराबरी के लिए विचारपरक कविताएं ही जूझ सकती हैं. उन्होंने कहा हमें मुक्तिबोध की यह बात हमेशा याद रखना चाहिए कि ‘मुक्ति सबके साथ है.’

तीसरे सत्र ‘जन पक्षधर कविता की पहचान और ज़रूरत.’ में कवि एवं सामाजिक कार्यकर्ता विनीत तिवारी ने आधार वक्तव्य दिया. उन्होंने दो कविताओं के पाठ के हवाले से कहा ब्रेख्त और पाकिस्तानी शायर हबीब जालिब(दस्तूर) हमारे पथप्रदर्शक हो सकते हैं . जनपक्षधरता केवल लेखन में नहीं होती. वैसा जीवन भी जीना पड़ता है. आज के युवा रचनाकारों में वैचारिकता और राजनीतिक संलग्नता की कमी महसूस होती है. यह व्यवस्था एवं दक्षिणपंथी राजनीति की एक सफलता ही है कि वह यथास्थितिवाद बनाये रखने हेतु लोगों को छोटे छोटे कामों में उलझाए हुए है.

जबकि हमारा बड़ा स्वप्न लोकतंत्र और समाजवाद है. उसके लिए व्यवस्था परिवर्तन की योजना भी हमें अपनी रचनात्मक तैयारी में शामिल करना चाहिए. इस अवसर पर श्रोताओं ने अपने सवाल भी रखे. जिनका विस्तार से जवाब हरिओम राजोरिया, निरंजन श्रोत्रिय एवं विनीत तिवारी ने दिया. तीनों सत्रों का संचालन हरिओम राजोरिया ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन पंकज दीक्षित ने किया.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें