अलीगढ़ : उर्दू लेखक काजी अब्दुल सत्तार का लंबी बीमारी के बाद सोमवार को निधन हो गया. वह 85 वर्ष के थे. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में उर्दू विभाग के अध्यक्ष रह चुके काजी को 1974 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था. सीतापुर के मछरेटा गांव में 1933 में जन्मे काजी ने स्कूल और कालेज की पढ़ाई लखनऊ से की थी. वह एएमयू से 1954 में शोधार्थी के रूप में जुड़े थे. उनके परिवार में तीन बेटे हैं. एएमयू के कुलपति तारिक मंसूर ने काजी के निधन को अपूरणीय क्षति बताया.
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फेसबुक पर अपने पोस्ट में काजी अब्दुस्सत्तार के निधन पर श्रद्धांजलि देते हुए आशुतोष कुमार ने लिखा कि अलविदा काज़ी साहब. शिकस्त की आवाज़, शब गज़ीदा, ग़ालिब और दारा शिकोह जैसे नायाब उपन्यास लिखने वाले काज़ी अब्दुल सत्तार भारत की महान गंगा जमनी सभ्यता के मजबूत स्तंभ थे. लेखक होने के अलावा एक बेहद प्यारे और सख़्त बुजुर्ग दोस्त. अलीगढ़ के आसमान से चमके साहित्यिक नक्षत्रों में सबसे अलहदा. आपकी बहुत याद आयेगी.
उनके इस पोस्ट पर उदय प्रकाश ने लिखा कि ऐसा साथी, ऐसा इंसान, ऐसा सुखनवर, ऐसा हमारा अपना कभी रुखसत नहीं होता. वो साथ हैं. उन्हें अलविदा कहने का खयाल तक नहीं आता. आंसू भले आ जायें. वहीं, नरेश सक्सेना ने लिखा है कि दु:खद. नायाब कथाकार थे और बेहद संवेदनशील. जब जब अलीगढ़ गया, वे कार्यक्रम में मौजूद रहे. मेरे एक काव्यपाठ की सदारत भी की और गजब की सराहना भी. मेरी कविताओं को लेकर जो ख़ास प्रसंग था उसे अलीगढ़ के प्रेमकुमार और संजीव कौशल बेहतर बता सकते हैं. नमिता जी भी. कथा संसार और संस्कृति का बहुत बड़ा नुकसान. वे हमेशा याद आते रहेंगे. दुखद श्रद्धांजलि.