नयी दिल्ली : अंग्रेजी के लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार अमिताव घोष को वर्ष 2018 के लिए 54वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया. ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने वाले वह अंग्रेजी के पहले लेखक हैं. ज्ञानपीठ द्वारा जारी विज्ञप्ति में बताया गया कि यहां शुक्रवार को प्रतिभा रॉय की अध्यक्षता में आयोजित ज्ञानपीठ चयन समिति की बैठक में अंग्रेजी के लेखक अमिताव घोष को वर्ष 2018 के लिए 54वां ज्ञानपीठ पुरस्कार देने का फैसला किया गया.
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इस चयन समिति में प्रो गिरिश्वर मिश्र, प्रो शमीम हनीफ, प्रो हरीश त्रिवेदी, प्रो सुरंजन दास, पुरुषोत्तम बिलीमाले, चंद्रकांत पाटिल, डॉ एस मणि वालन, सी राधाकृष्णन, प्रो असगर वजाहत और भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक श्री मधुसूदन आनन्द आदि शामिल थे. देश के सर्वोच्च साहित्य सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार के रूप में अमिताव घोष को पुरस्कार स्वरूप 11 लाख रुपये नकद, वाग्देवी की प्रतिमा और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जायेगा.
ज्ञानपीठ के सूत्रों ने बताया कि अंग्रेजी को तीन साल पहले ज्ञानपीठ पुरस्कार की भाषा के रूप में शामिल किया गया था और अमिताव घोष देश के सर्वोच्च साहित्य पुरस्कार से सम्मानित होने वाले अंग्रेजी के पहले लेखक हैं. पश्चिम बंगाल के कोलकाता में 1956 को जन्मे अमिताव घोष को लीक से हटकर काम करने वाले रचनाकार के तौर पर जाना जाता है. वह इतिहास के ताने-बाने को बड़ी कुशलता के साथ वर्तमान के धागों में पिरोने का हुनर जानते हैं.
अमिताव घोष के लेखन का मुख्य स्वर विस्थापन, स्थानों के अंतरसंबंध, संस्कृति, नस्लवाद और मानवीय संकटों से गुजरते हुए कुछ वर्गों और संप्रदायों जैसे गिरमिटिया, कुली और लश्कर पर केंद्रित है. घोष के मुख्य पात्र बांग्ला देश, इंग्लैंड, मिस्र और म्यांमार के इर्द-गिर्द कथा साहित्य और कथेतर साहित्य में आये हैं.
घोष साहित्य अकादमी और पद्मश्री सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं. उनकी प्रमुख रचनाओं में ‘द सर्किल ऑफ रीजन’, ‘दे शेडो लाइन’, ‘द कलकत्ता क्रोमोसोम’, ‘द ग्लास पैलेस’, ‘द हंगरी टाइड’, ‘रिवर ऑफ स्मोक’ और ‘फ्लड ऑफ फायर प्रमुख हैं. पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार 1965 में मलयालम लेखक जी शंकर कुरूप को प्रदान किया गया था.
घोष कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित किये गये हैं, जिसमें साहित्य अकादमी पुरस्कार, आनंदा पुरस्कार, क्रॉसवर्ड बुक प्राइज, फ्रांस का प्रिक्स मेडीसिस अवार्ड आदि शामिल हैं. वे वर्ष 2008 में मैन बूकर प्राइज के लिए नामित हुए थे. इनकी रचनाएं 25 से अधिक भाषाओं में अनूदित हो चुकी हैं.