Amrita Pritam अमृता प्रीतम का जन्म 31 अगस्त, 1919 को पंजाब के गुजरांवाला में ब्रिटिश काल में हुआ था. उनकी प्रसिद्ध कविताएं महिलाओं के संघर्ष और भारत के विभाजन को दर्शाने के लिए जानी जाती हैं. उनकी रचनाएं प्रेम, दुख और सामाजिक अन्याय के विषयों पर आधारित हैं. प्रारंभ में वे एक रूमानी कवि थीं, लेकिन बाद में उन्होंने प्रगतिशील लेखकों के आंदोलन में शामिल होकर अपनी कला को प्रभावित किया.
उनकी प्रमुख कविताएं इस प्रकार हैं –
मेरी ख़ता
जाने किन रास्तों से होती
और कब की चली
मैं उन रास्तों पर पहुँची
जहाँ फूलों लदे पेड़ थे
और इतनी महक थी—
कि साँसों से भी महक आती थी
अचानक दरख़्तों के दरमियान
एक सरोवर देखा जिसका नीला और शफ़्फ़ाफ़ पानी
दूर तक दिखता था—
मैं किनारे पर खड़ी थी तो दिल किया
सरोवर में नहा लूँ
मन भर कर नहाई
और किनारे पर खड़ी
जिस्म सुखा रही थी
कि एक आसमानी आवाज़ आई
यह शिव जी का सरोवर है
सिर से पाँव तक एक कँपकँपी आई
हाय अल्लाह! यह तो मेरी ख़ता
मेरा गुनाह—
कि मैं शिव के सरोवर में नहाई
यह तो शिव का आरक्षित सरोवर है
सिर्फ़… उनके लिए
और फिर वही आवाज़ थी
कहने लगी—
कि पाप-पुण्य तो बहुत पीछे रह गए
तुम बहूत दूर पहुँचकर आई हो
एक ठौर बँधी और देखा
किरनों ने एक झुरमुट-सा डाला
और सरोवर का पानी झिलमिलाया
लगा—जैसे मेरी ख़ता पर
शिव जी मुस्करा रहे
2. मन योगी तन भस्म भया
मन योगी तन भस्म भया
तू कैसो हर्फ़ कमाया
अज़ल के योगी ने फूँक जो मारी
इश्क़ का हर्फ़ अलाया
धूनी तपती मेरे मौला वाली
मस्तक नाद सुनाई दे
अंतर में एक दीया जला
आस्मान तक रोशनाई दे
कैसो रमण कियो रे जोगी!
किछु न रहियो पराया
मन योगी तन भस्म भया
तू ऐसी हर्फ़ कमाया
3.मैं तुझे फिर मिलूँगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
शायद तेरे कल्पनाओं
की प्रेरणा बन
तेरे केनवास पर उतरूँगी
या तेरे केनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
ख़ामोश तुझे देखती रहूँगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
या सूरज की लौ बन कर
तेरे रंगो में घुलती रहूँगी
या रंगो की बाँहों में बैठ कर
तेरे केनवास पर बिछ जाऊँगी
पता नहीं कहाँ किस तरह
पर तुझे ज़रुर मिलूँगी
या फिर एक चश्मा बनी
जैसे झरने से पानी उड़ता है
मैं पानी की बूंदें
तेरे बदन पर मलूँगी
और एक शीतल अहसास बन कर
तेरे सीने से लगूँगी
मैं और तो कुछ नहीं जानती
पर इतना जानती हूँ
कि वक्त जो भी करेगा
यह जनम मेरे साथ चलेगा
यह जिस्म ख़त्म होता है
तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है
पर यादों के धागे
कायनात के लम्हें की तरह होते हैं
मैं उन लम्हों को चुनूँगी
उन धागों को समेट लूंगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
मैं तुझे फिर मिलूँगी !!
4.मुकाम
क़लम ने आज गीतों का क़ाफ़िया तोड़ दिया
मेरा इश्क़ यह किस मुकाम पर आ गया है
देख नज़र वाले, तेरे सामने बैठी हूँ
मेरे हाथ से हिज्र का काँटा निकाल दे
जिसने अँधेरे के अलावा कभी कुछ नहीं बुना
वह मुहब्बत आज किरणें बुनकर दे गयी
उठो, अपने घड़े से पानी का एक कटोरा दो
राह के हादसे मैं इस पानी से धो लूंगी
5.दाग
दाग़ मौहब्बत की कच्ची दीवार
लिपी हुई, पुती हुई
फिर भी इसके पहलू से
रात एक टुकड़ा टूट गिरा
बिल्कुल जैसे एक सूराख हो गया
दीवार पर दाग़ पड़ गया
यह दाग़ आज रूँ रूँ करता,
या दाग़ आज होंट बिसूरे
यह दाग़ आज ज़िद करता है
यह दाग़ कोई बात न माने
टुकुर टुकुर मुझको देखे,
अपनी माँ का मुँह पहचाने
टुकुर टुकुर तुझको देखे,
अपने बाप की पीठ पहचाने
टुकुर टुकुर दुनिया को देखे,
सोने के लिए पालना मांगे,
दुनिया के कानूनों से
खेलने को झुनझुना मांगे
माँ! कुछ तो मुँह से बोल
इस दाग़ को लोरी सुनाऊँ
बाप! कुछ तो कह,
इस दाग़ को गोद में ले लूँ
दिल के आँगन में रात हो गयी,
इस दाग़ को कैसे सुलाऊँ !
दिल की छत पर सूरज उग आया
इस दाग़ को कहाँ छुपाऊँ
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