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संपूर्ण सिंह कालरा से शब्दों के जादूगर गुलजार बनने का सफर, एक मैकेनिक जो बन गया गीतकार…

‘मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है, सावन के कुछ भीगे-भीगे दिन रखे हैं, और मेरे एक ख़त में लिपटी रात पड़ी है, वो रात बुझा दो, मेरा वो सामान लौटा दो’. गीतकार गुलजार की इन लाइन्स में कुछ खोने का दर्द और कुछ पाने का जुनून. गुलजार ने एक सफर तय किया था संपूर्ण सिंह कालरा से गुलजार बनने के लिए. कई मौके पर गुलजार कहते सुने गए ‘पाकिस्तान में उनकी आत्मा थी और हिन्दुस्तान में दिल. रिफ्यूजी के नसीब में चलते रहना होता है. हिन्दुस्तान में दाखिल होने के साथ ही गुलजार के जिस्म और जेहन हमेशा के लिए जुदा हो गए.’ गुलजार ने फिल्मों में लिखना शुरू किया तो उनकी बेबसी, तड़प हर शब्द में दिखी.

‘मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है, सावन के कुछ भीगे-भीगे दिन रखे हैं, और मेरे एक ख़त में लिपटी रात पड़ी है, वो रात बुझा दो, मेरा वो सामान लौटा दो’. गीतकार गुलजार की इन लाइन्स में कुछ खोने का दर्द और कुछ पाने का जुनून. गुलजार ने एक सफर तय किया था संपूर्ण सिंह कालरा से गुलजार बनने के लिए. कई मौके पर गुलजार कहते सुने गए ‘पाकिस्तान में उनकी आत्मा थी और हिन्दुस्तान में दिल. रिफ्यूजी के नसीब में चलते रहना होता है. हिन्दुस्तान में दाखिल होने के साथ ही गुलजार के जिस्म और जेहन हमेशा के लिए जुदा हो गए.’ गुलजार ने फिल्मों में लिखना शुरू किया तो उनकी बेबसी, तड़प हर शब्द में दिखी.

अपने खालीपन को शब्दों से भरने वाले गुलजार

18 अगस्त 1934 को पंजाब जिला (अब पाकिस्तान) के दीना गांव में जन्मे गुलजार का पूरा नाम संपूर्ण सिंह कालरा है. उनका गांव झेलम नदी के पास है. बंटवारे के बाद गुलजार परिवार के साथ भारत आ गए. परिवार अमृतसर में बस गया और गुलजार ने सपनों की नगरी मुंबई का रूख किया. मां बचपन में गुजर गयी और पिता का प्यार हिस्से में नहीं आया. उन्होंने अपने खालीपन को शब्दों से भरना शुरू किया. मुंबई के शुरूआती दिनों में वर्ली के एक गैराज में गुलजार मैकेनिक का काम करने लगे. गुलजार को लिखने की ललक थी. वो अपने शब्दों के सहारे दुनिया की तकलीफों और प्रेम की जीना चाहते थे. खाली समय में कविताएं लिखते थे.

बिमल रॉय से मुलाकात के बाद बदली जिंदगी

गुलजार के जीवन का बड़ा मोड़ उस वक्त आया जब उनकी मुलाकात नामी-गिरामी निर्देशक बिमल रॉय से हुई. उन्होंने गुलजार को ‘बंदिनी’ फिल्म में गाना लिखने का मौका दिया. गुलजार ने फिल्म में एक गीत लिखा ‘मोरा गोरा अंग लईले, मोहे श्याम रंग दईदे’, इसके साथ ही गुलजार ने साबित कर दिया कि उनके शब्दों में कानों के रास्ते दिल में उतरने का हुनर है. डायरेक्टर बिमल रॉय के साथ काम करने के दौरान ही गुलजार की मुलाकात आरडी बर्मन से हुई. गुलजार ने गीत लिखने के साथ डायरेक्शन भी किया. उन्होंने ‘आंधी’, ‘किरदार’, ‘मौसम’, ‘नमकीन’, ‘हूतूतू’ जैसी फिल्म्स डायरेक्ट की. उन्होंने टीवी सीरीज ‘मिर्जा गालिब’ का भी निर्देशन किया.

फिल्मफेयर और ऑस्कर पाने वाले गीतकार

उनकी फिल्म ‘माचिस’ देखने वालों को अंदाजा होगा कि गुलजार ने किस हिसाब से अपने और दूसरों के अनुभवों को फिल्म की शक्ल में पर्दे पर उतारा. उन्होंने कई फिल्मों का डायरेक्शन किया, फिल्मों में गीत और स्क्रीनप्ले लिखे, उनकी किताबों को भी लोग काफी पसंद करते हैं. गुलजार को 20 फिल्म फेयर अवॉर्ड मिले हैं. 11 फिल्मफेयर अवॉर्ड सर्वश्रेष्ठ गीतकार और 4 अवॉर्ड बेस्ट डायलॉग लिखने के लिए मिले हैं. उन्हें ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ फिल्म के गाने ‘जय हो’ के लिए ऑस्कर अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है. आज भी उनके लिखने का सफर जारी है. वो बताना चाहते हैं ‘तुझसे नाराज नहीं जिंदगी, हैरान हूं मैं, तेरे मासूम सवालों से परेशान हूं मैं’…

आदमी बुलबुला है पानी का

और पानी की बहती सतह पर

टूटता भी है डूबता भी है

फिर उभरता है फिर से बहता है

न समुंदर निगल सका इस को

न तवारीख़ तोड़ पाई है

वक़्त की हथेली पर बहता

आदमी बुलबुला है पानी का…

Posted : Abhishek.

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