19.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

मंगलेश डबराल के जाने से उबर नहीं पा रहा साहित्य जगत, याद आ रही हैं उनकी कविताएं…

manglesh dabral : समकालीन हिंदी साहित्य के सबसे चर्चित कवि मंगलेश डबराल की मौत नौ दिसंबर को हुई है, लेकिन साहित्य जगत अभी भी उनके जाने की बात को स्वीकार नहीं कर पा रहा है. उनके चाहने वाले उनकी यादों को ताजा कर रहे हैं, कोई उन्हें अपनी प्रेरणा बता रहा है तो कोई उनकी कविता शेयर कर रहा है.

समकालीन हिंदी साहित्य के सबसे चर्चित कवि मंगलेश डबराल की मौत नौ दिसंबर को हुई है, लेकिन साहित्य जगत अभी भी उनके जाने की बात को स्वीकार नहीं कर पा रहा है. उनके चाहने वाले उनकी यादों को ताजा कर रहे हैं, कोई उन्हें अपनी प्रेरणा बता रहा है तो कोई उनकी कविता शेयर कर रहा है. मंगलेश डबराल के सहज सरल व्यक्तित्व पर भी काफी कुछ लिखा जा रहा है. सोशल मीडिया में मंगलेश डबराल को कई दिग्गजों ने अपने तरीके से श्रद्धांजलि दी है.

पाखी पत्रिका ने मंगलेश डबराल की स्मृति में एक आज एक शोक सभा का आयोजन कार्यालय में किया. मंगलेश डबराल के साथ जिन्होंने समय बीताया है वे यह बताते हैं कि वे काफी सहज सरल व्यक्ति थे. कवि मंगलेश डबराल की कविताएं जीवंत हैं और पढ़ने वाला उससे खुद भी गुजरता हुआ महसूस करता है. यही कारण है कि उनके निधन पर उन्हें प्रिय कवि कहकर उनकी कविताएं खूब शेयर की जा रही हैं-

पढ़ें मंगलेश जी की कुछ कविताएं

तुम्हारा प्यार लड्डुओं का थाल है

जिसे मैं खा जाना चाहता हूँ

तुम्हारा प्यार एक लाल रूमाल है

जिसे मैं झंडे-सा फहराना चाहता हूँ

तुम्हारा प्यार एक पेड़ है

जिसकी हरी ओट से मैं तारॊं को देखता हूँ

तुम्हारा प्यार एक झील है

जहाँ मैं तैरता हूँ और डूब रहता हूँ

तुम्हारा प्यार पूरा गाँव है

जहाँ मैं होता हूँ .

हरा पहाड़ रात में

सिरहाने खड़ा हो जाता है

शिखरों से टकराती हुई तुम्हारी आवाज़

सीलन-भरी घाटी में गिरती है

और बीतते दॄश्यों की धुन्ध से

छनकर आते रहते हैं तुम्हारे देह-वर्ष

पत्थरों पर झुकी हुई घास

इच्छाओं की तरह अजस्र झरने

एक निर्गंध मृत्यु और वह सब

जिससे तुम्हारा शरीर रचा गया है

लौटता है रक्त में

फिर से चीख़ने के लिए ।

इन ढलानों पर वसंय

आएगा हमारी स्मृति में

ठंड से मरी हुई इच्छाओं को फिर से जीवित करता

धीमे-धीमे धुंधवाता ख़ाली कोटरों में

घाटी की घास फैलती रहेगी रात को

ढलानों से मुसाफ़िर की तरह

गुज़रता रहेगा अंधकार

चारों ओर पत्थरों में दबा हुआ मुख

फिर उभरेगा झाँकेगा कभी

किसी दरार से अचानक

पिघल जाएगी जैसे बीते साल की बर्फ़

शिखरों से टूटते आएंगे फूल

अंतहीन आलिंगनों के बीच एक आवाज़

छटपटाती रहेगी

चिड़िया की तरह लहूलुहान

Also Read: कोरोना काल में सपना दास ने अपनी कला से घर को दिया ऐसा रूप, देखने वाले कह उठे वाह…

Posted By : Rajneesh Anand

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें