एक बार फिर प्रभात खबर का दीपावली विशेषांक आपके हाथों में है. प्रभात खबर की हमेशा कोशिश रही है कि दीपावली के मौके पर आपको साहित्यिक गतिविधियों से रूबरू करवाया जाये. दरअसल, लोगों की साहित्य के प्रति दिलचस्पी कम होती जा रही है. हमारी कोशिश होती है कि दीपावली विशेषांक के माध्यम से साहित्यकारों को एक मंच मिल सके और साहित्य को लेकर कुछ हलचल बढ़ सके. कई बड़े शहरों में पुस्तक मेले और साहित्य उत्सव आयोजित किये जाते हैं, ताकि लोगों की पठन-पाठन के प्रति दिलचस्पी बनायी रखी जा सके. लेकिन ये प्रयास भी बहुत कारगर साबित नहीं हो पा रहे हैं. हम भी चाहते हैं कि प्रभात खबर के दीपावली विशेषांक के माध्यम से पढ़ने- लिखने को बढ़ावा मिले. तकनीक ने अभिव्यक्ति का आयाम बदल दिया है. यह सर्वविदित है कि साहित्य में एक जीवन दर्शन होता है और यह सृजन का महत्वपूर्ण हिस्सा है. साहित्य की समाज में एक छोटी, मगर महत्वपूर्ण भूमिका है. इसे पढ़े-लिखे अथवा प्रबुद्ध लोगों की दुनिया भी कह सकते हैं. आजादी की लड़ाई हो या जन आंदोलन, सबमें साहित्य ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है. साहित्य की विभिन्न विधाओं ने समाज का मार्गदर्शन किया है और समाज के यथार्थ को प्रस्तुत किया है. टेक्नोलॉजी के विस्तार ने साहित्य व किताबों के सामने गंभीर चुनौती पेश की है. लोग व्हाट्सएप, फेसबुक में ही उलझे रहते हैं, उनके पास पढ़ने का समय ही नहीं है. दूसरी ओर, इंटरनेट ने साहित्य को सर्वसुलभ कराने में मदद की है. किंडल, ई-पत्रिकाओं और ब्लॉग ने इसके प्रचार-प्रसार को बढ़ाया है. मुझे लगता है कि अपनी भाषा को लेकर जो गर्व होना चाहिए, उसकी हम हिंदी भाषियों में बहुत कमी है.
एक और खबर आप सबसे साझा करना चाहता हूं कि प्रभात खबर ने अपनी यात्रा का एक पड़ाव पूरा कर स्थापना के 40वें वर्ष में प्रवेश कर लिया है. 14 अगस्त, 1984 को प्रभात खबर ने एक सुदूर पिछड़े इलाके रांची से अपने सफर की शुरुआत की थी. लेकिन कुछ ही समय में प्रभात खबर ने राष्ट्रीय फलक पर अपनी जगह बना ली. आज प्रभात खबर आठ स्थानों- रांची, जमशेदपुर, धनबाद, देवघर, पटना, मुजफ्फरपुर, भागलपुर और कोलकाता से एक साथ प्रकाशित होता है. 2019 के इंडियन रीडरशिप सर्वे के मुताबिक प्रभात खबर के पाठकों की संख्या 1.16 करोड़ है और केवल तीन राज्यों से प्रकाशित होने के बावजूद देश के शीर्ष हिंदी अखबारों में प्रभात खबर सातवें स्थान पर है. पिछले 40 वर्षों के दौरान राजनीति बदली और अर्थनीति में भी भारी परिवर्तन आया है. अखबार निकालना पहले भी चुनौतीपूर्ण था, लेकिन मौजूदा दौर में और चुनौतीपूर्ण हो गया है. इसके बावजूद प्रभात खबर आज भी आगे बढ़ रहा है. प्रभात खबर हमेशा जन सरोकारों के प्रति प्रतिबद्ध रहा है. हमारा सूत्र वाक्य है- ‘अखबार नहीं आंदोलन’. यह यूं ही नहीं है. इसका एक पूरा इतिहास है. गांधीजी जिसे समाज का अंतिम आदमी कहते थे, उस अंतिम व्यक्ति के लिए यह अखबार हमेशा से मजबूती से खड़ा रहा है. यह सच है कि मौजूदा दौर में खबरों की साख का संकट है, लेकिन आज भी अखबार खबरों के सबसे प्रामाणिक स्रोत हैं. आपने गौर किया होगा कि रोजाना सोशल मीडिया पर कितनी झूठी खबरें चलती हैं.
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बाजार के दबाव में अखबार भी शहर केंद्रित हो गये हैं. समय के साथ पाठक वर्ग भी बदल गया है. अखबार पहले खबरों के लिए पढ़े जाते थे, लेकिन मार्केटिंग के इस दौर में अखबार फ्री गिफ्ट के आधार पर निर्धारित किये जाने लगे हैं. लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि आज भी अखबार खबरों के सबसे प्रामाणिक स्रोत हैं. हम जानते हैं कि एक अखबार के लिए पाठकों का प्रेम ही उसकी बड़ी पूंजी होती है. पाठक की कसौटी पर ही अखबार की असली परीक्षा होती है. अपनी यात्रा के दौरान प्रभात खबर ने कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन प्रभात खबर की यात्रा निरंतर जारी है. इस यात्रा में पाठकों ने हमारा भरपूर साथ दिया और हमें आगे बढ़ने का साहस दिया. आप सबको दीपावली की मंगलकामनाएं!
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