20.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

प्रेम के अस्तित्व को उकरेती है शशांक की कविता ‘जब तुम रहती’

कवि शशांक की एक कविता 'जब तुम रहती' है. यह कविता बहुत ही महीन तरीके से प्रेम के अस्तित्व के उकेरती हुई दिखाई देती है. उनकी इस रचना में कवि का छायावाद और उनकी साफगोई साफ झलकती दिखाई देती है.

कवि शशांक की एक कविता ‘जब तुम रहती’ है. यह कविता बहुत ही महीन तरीके से प्रेम के अस्तित्व के उकेरती हुई दिखाई देती है. उनकी इस रचना में कवि का छायावाद और उनकी साफगोई साफ झलकती दिखाई देती है. बातों ही बातों में आसान लफ्जों उन्होंने कई गूढ़ इशारे भी किए हैं. शशांक ने इस कविता की रचना 23 जनवरी 2023 को की है. आइए, पढ़कर समझते हैं कवि और कविता को…

सदा नहीं रहती

तुम रहती

तो रहती

नहीं तो

नहीं रहती

मेरी मुस्कुराहटें

एवं

मेरा प्रेम

हम दोनों का

इस धरा पर

अस्तित्व

परछाइयां

पावों के चिन्ह

तथा

यात्रा

जब तुम रहती

Also Read: कविता : राम हो, अभिमान हो

कोई नरम घोंसला

किसी कोयल का स्वर

शांत बहती नदी

गहरा नीला आकाश

इठलाता चंद्रमा

कृष्ण की बांसुरी

विस्तृत सागर

आंखों से झांकती शरारतें

छूने के लिए धीरे धीरे

मचलती अंगुलियां

बहुत कुछ कहते

बंद होठ

एवं

कहीं आसपास

रहता

टहलता

हमारा ईश्वर

जब तुम रहती

शशांक

23 जनवरी 2023

Also Read: कुड़मालि कविता : धान सेंइति पाड़ेइने

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें