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शिरीष खरे को ‘एक देश बारह दुनिया’ के लिए स्वयं प्रकाश स्मृति सम्मान

निर्णायक मंडल के वरिष्ठतम सदस्य काशीनाथ सिंह (वाराणसी) ने अपनी संस्तुति में कहा कि युवा लेखक शिरीष खरे का रिपोर्ताज लेखन एक साथ वैचारिक और साहित्यिक कसौटियों पर खरा उतरता है.

साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में कार्यरत संस्थान ’स्वयं प्रकाश स्मृति न्यास’ ने सुप्रसिद्ध साहित्यकार स्वयं प्रकाश की स्मृति में दिए जाने वाले वार्षिक सम्मान की घोषणा कर दी है. न्यास के अध्यक्ष प्रो मोहन श्रोत्रिय ने बताया कि राष्ट्रीय स्तर के इस सम्मान के लिए इस बार सुपरिचित लेखक और पत्रकार शिरीष खरे की पुस्तक ‘एक देश बारह दुनिया’ का चयन किया गया है.

‘एक देश बारह दुनिया’ लेखन परंपरा का विकास

सम्मान के लिए तीन निर्णायक मंडल ने इस पुस्तक को वर्ष 2022 के लिए चयनित करने की अनुशंसा की है. निर्णायक मंडल के वरिष्ठतम सदस्य काशीनाथ सिंह (वाराणसी) ने अपनी संस्तुति में कहा कि युवा लेखक शिरीष खरे का रिपोर्ताज लेखन एक साथ वैचारिक और साहित्यिक कसौटियों पर खरा उतरता है. उनकी पुस्तक ‘एक देश बारह दुनिया’ उस लेखन परम्परा का विकास है जो रांगेय राघव, अमृत राय और स्वयं प्रकाश जैसे लेखकों ने निर्मित की है. यह सामाजिक सरोकारों वाला ऐसा समर्थ गद्य है जो कथेतर लेखन को भी ऊंचाई देने वाला है.

निर्णायक मंडल ने की तारीफ

निर्णायक मंडल के दूसरे सदस्य कवि-गद्यकार राजेश जोशी (भोपाल) ने शिरीष खरे की पुस्तक ‘एक देश बारह दुनिया’ की अनुशंसा में कहा कि स्वयं प्रकाश अपने कहानी लेखन के साथ साथ कथेतर लेखन में जिन सामाजिक सरोकारों के लिए सृजनरत रहे उन्हीं सरोकारों को खरे की इस कृति में देखना आश्वस्तिप्रद है. निर्णायक मंडल के तीसरे सदस्य प्रो असगर वजाहत थे.


मौलिक लेखन के लिए जाने जाते हैं स्वयं प्रकाश

प्रो श्रोत्रिय ने बताया कि मूलत: राजस्थान के अजमेर निवासी स्वयं प्रकाश हिंदी कथा साहित्य के क्षेत्र में मौलिक योगदान के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने ढाई सौ के आसपास कहानियां लिखीं और उनके पांच उपन्यास भी प्रकाशित हुए थे. इनके अतिरिक्त नाटक, रेखाचित्र, संस्मरण, निबंध और बाल साहित्य में भी अपने अवदान के लिए स्वयं प्रकाश को हिंदी संसार में जाना जाता है. उन्हें भारत सरकार की साहित्य अकादेमी सहित देश भर की विभिन्न अकादमियों और संस्थाओं से अनेक पुरस्कार और सम्मान मिले थे. उनके लेखन पर अनेक विश्वविद्यालयों में शोध कार्य हुआ है तथा उनके साहित्य के मूल्यांकन की दृष्टि से अनेक पत्रिकाओं ने विशेषांक भी प्रकाशित किए हैं. 20 जनवरी 1947 को इंदौर में जन्मे स्वयं प्रकाश का निधन कैंसर के कारण 7 दिसंबर 2019 को हो गया था. लंबग समय से वे भोपाल में निवास कर रहे थे और यहां से निकलने वाली पत्रिकाओं ‘वसुधा’ तथा ‘चकमक’ के संपादन से भी जुड़े रहे.

शिरीष खरे को सम्मान में ग्यारह हजार रुपये मिलेंगे

प्रो श्रोत्रिय ने बताया कि लेखक शिरीष खरे को सम्मान में ग्यारह हजार रुपये, प्रशस्ति पत्र और शॉल भेंट किये जायेंगे. इस सम्मान के लिए देश भर से बड़ी संख्या में प्रविष्टियां प्राप्त हुई थीं जिनमें से प्राथमिक चयन के बाद श्रेष्ठ कृतियों को निर्णायकों के पास भेजा गया. वर्ष 2021 का स्वयं प्रकाश स्मृति सम्मान मनोज कुमार पांडेय को उनके कहानी संग्रह ‘बदलता हुआ देश’ के लिए घोषित किया गया था. साहित्य और लोकतान्त्रिक विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए गठित स्वयं प्रकाश स्मृति न्यास में कवि राजेश जोशी(भोपाल), आलोचक दुर्गाप्रसाद अग्रवाल (जयपुर). कवि-आलोचक आशीष त्रिपाठी (बनारस), आलोचक पल्लव (दिल्ली), इंजी अंकिता सावंत (मुंबई) और अपूर्वा माथुर (दिल्ली) सदस्य हैं.

शिरीष खरे का परिचय

साल 1981 को मध्य-प्रदेश, जिला नरसिंहपुर के आदिवासी बहुल गांव मदनपुर में जन्म हुआ. वर्ष 1999 में बारहवीं पास करके अपने गांव से पहली बार राज्य की राजधानी भोपाल की यात्रा. वर्ष 2002 तक भोपाल में पत्रकारिता की पढ़ाई. तब से देश के बारह राज्यों के भीतरी भागों की यात्राएं. दो दशक से भोपाल, दिल्ली, मुंबई, जयपुर, रायपुर और पुणे में रहते हुए गांव केंद्रित पत्रकारिता और लेखन में सक्रिय. हाशिये पर छूटे भारत की तस्वीर दर्शाती बहुचर्चित पुस्तक ‘एक देश बारह दुनिया’ के लेखक. अन्य पुस्तकें खोजी पत्रकारिता पर ‘तहकीकात’ और स्कूली शिक्षा पर ‘उम्मीद की पाठशाला’. ‘राजस्थान पत्रिका’ और ‘तहलका’ सहित अन्य संस्थानों में रहते हुए हजार से अधिक प्रकाशित रिपोर्ट. चार सौ से अधिक गांवों के बारे में लिखित सामग्री. भारतीय गांवों पर उत्कृष्ट रिपोर्टिंग के लिए वर्ष 2013 में ‘भारतीय प्रेस परिषद’ द्वारा सम्मानित. वर्ष 2009, 2013 और 2020 में ‘संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष’ द्वारा लैंगिक संवेदनशीलता पर न्यूज स्टोरीज के लिए ‘लाडली मीडिया अवार्ड’ सहित सात राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार. संपर्क: kharealert24@gmail.com

‘एक देश बारह दुनिया’ पुस्तक के बारे में

जब मुख्यधारा की मीडिया में अदृश्य संकटग्रस्त क्षेत्रों की ज़मीनी सच्चाई वाले रिपोर्ताज लगभग गायब हो गए हैं तब इस पुस्तक का संबंध एक बड़ी जनसंख्या को छूते देश के इलाकों से है जिसमें शिरीष खरे ने विशेषकर गांवों की त्रासदी, उम्मीद और उथल-पुथल की परत-दर-परत पड़ताल की है. यह देश-देहात के मौजूदा और भावी संकटों से संबंधित नया तथा जरूरी दस्तावेज है. इक्कीसवीं सदी के मेट्रो-बुलेट ट्रेन के भारत में विभिन्न प्रदेशों के वंचित जनों की जिंदगियों के किस्से एक बिलकुल दूसरे ही हिंदुस्तान को पेश करते हैं, हिंदुस्तान जो स्थिर है, गतिहीन है और बिलकुल ठहरा हुआ है. यह भारत की ऐसी तस्वीर है जो छिपाई जाती है, लेकिन जिसे फ्रंट पर होना चाहिए.

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