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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फरार आरोपी की याचिका पर की सुनवाई, कहा- भगोड़ा घोषित व्यक्ति को भी अग्रिम जमानत का अधिकार

Allahabad High Court News: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि भगोड़ा घोषित व्यक्ति भी अग्रिम जमानत पाने का हकदार है. कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी सिर्फ इसलिए नहीं की जानी चाहिए कि गिरफ्तार करना कानूनी रूप से सही है.

Allahabad High Court News: उत्तर प्रदेश की इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि भगोड़ा घोषित किया गया व्यक्ति भी अग्रिम जमानत पाने का हकदार है. कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी सिर्फ इसलिए नहीं की जानी चाहिए कि गिरफ्तार करना कानूनी रूप से सही है. गिरफ्तार करने की शक्ति और उसे प्रयोग करने के औचित्य में अंतर करना आवश्यक है. यदि रूटीन तरीके से गिरफ्तारी की जाती है तो इससे व्यक्ति की प्रतिष्ठा और आत्मसम्मान को क्षति पहुंचेगी.

यदि जांच अधिकारी के पास यह विश्वास करने का कोई कारण नहीं है कि अभियुक्त भाग सकता है या सम्मन का पालन नहीं करेगा तो हर मामले में गिरफ्तारी जरूरी नहीं है. न्यायमूर्ति नलिन कुमार श्रीवास्तव की एकल पीठ ने गोरखपुर के संजय पांडेय की अग्रिम जमानत याचिका की अर्जी मंजूर करते हुए टिप्पणी की.

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अग्निहोत्री कुमार त्रिपाठी का कहना था कि याची के विरुद्ध गोरखपुर के कैंट थाने में आईपीसी की धारा 419, 420, 467, 468, 471, 504, 506 के तहत मुकदमा दर्ज कराया गया है. कोर्ट ने तीन सितंबर 2022 को उसके खिलाफ गैर जमानती वारंटी जारी किया और 15 दिसंबर 2022 को सीआरपीसी की धारा 82 के तहत फरार होने की उद्घोषणा जारी कर दी.

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जानबूझकर न्यायिक प्रक्रिया को नजरअंदाज नहीं किया- एडवोकेट

एडवोकेट त्रिपाठी का कहना था कि याचिकाकर्ता वास्तव में भाग नहीं रहा था बल्कि उसके विरुद्ध अन्य कई मुकदमे भी दर्ज कराए गए हैं, जिनमें इस न्यायालय से संरक्षण पाने की प्रक्रिया में उलझा हुआ था. इस दौरान उसने जानबूझकर न्यायिक प्रक्रिया को नजरअंदाज नहीं किया. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की नजीरें प्रस्तुत करते हुए कहा कि जब व्यक्ति न्यायिक प्रक्रिया में उलझा है, उस स्थिति में यह नहीं माना जाना चाहिए कि वह अदालती प्रक्रिया को जानबूझकर नजरअंदाज कर रहा है.

तभी गिरफ्तार किया जाना चाहिए जब बहुत गंभीर अपराध का मामला हो

इस मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि संविधान की मंशा है कि किसी अभियुक्त को तभी गिरफ्तार किया जाना चाहिए, जब हिरासत में उससे पूछताछ करना आवश्यक हो या कोई बहुत गंभीर अपराध का मामला हो, जहां अभियुक्त द्वारा गवाहों को प्रभावित करने या उसके भाग जाने की आशंका हो. कोर्ट ने आगे कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता वास्तव में भागा नहीं था बल्कि इस न्यायालय से संरक्षण पाने की प्रक्रिया में उलझा था. इसी के साथ कोर्ट ने संजय पांडेय की अग्रिम जमानत अर्जी मंजूर कर ली.

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बेटे को घर से बेदखली का आदेश नहीं दिया जा सकता – लखनऊ बेंच

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम 2007 के तहत गठित अधिकरण माता- पिता की अर्जी पर संतानों को माता-पिता के निवास, भोजन और कपड़े के लिए उचित व्यवस्था का आदेश तो दे सकता है लेकिन माता-पिता की अर्जी पर संतानों को घर से निकालने का आदेश नहीं दे सकता है.

कोर्ट ने कहा कि अधिनियम 2007 की मंशा माता-पिता, वरिष्ठ नागरिकों को भरण-पोषण प्रदान करने और उनके कल्याण तक है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सिविल प्रक्रिया के तहत निर्धारित होने वाले कानूनी अधिकारों को इस अधिनियम के तहत आदेश पारित कर नहीं तय किया जा सकता. यह आदेश न्यायमूर्ति श्रीप्रकाश सिंह की एकल पीठ ने सुलतानपुर निवासी कृष्ण कुमार की ओर से दाखिल याचिका निस्तारित करते हुए दिया.

गैर जाति की लड़की से विवाह करने पर माता-पिता ने निकाला था

याचिकाकर्ता का कहना था कि अपने माता-पिता की इच्छा के खिलाफ जाकर एक गैर जाति की लड़की से विवाह कर लिया, जिसके कारण वे नाराज हो गए और बहनों, उनके पतियों के कहने में आकर माता- पिता ने इस अधिनियम के तहत याची को घर से निकालने का अनुरोध किया. डीएम ने 22 नवंबर 2019 को याची को माता-पिता का घर, दुकान खाली करने का आदेश जारी कर दिया था.

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