रांची, राजीव पांडेय:
झारखंड के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में विभिन्न जिलों और पड़ोसी राज्यों से लोग बेहतर इलाज की उम्मीद लेकर आते हैं. परिजनों को लगता है कि रिम्स में विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम है, इसलिए हर हाल में मरीज की जान बच जायेगी, लेकिन लोगों की उम्मीद पर मौत का यह आंकड़ा (11,205 मौत) पानी फेर रहा है. वैसे रिम्स में विभिन्न जिलों, पड़ोसी राज्यों और निजी अस्पतालों से वैसे मरीजों को रेफर किया जाता है, जिसके बचने की उम्मीद बहुत कम होती है.
यह आंकड़ा इसलिए भी चिंताजनक है कि वर्ष 2015 में जारी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार एम्स में जहां रोजाना 10 मरीजों की मौत होती है, वहीं रिम्स में यह आंकड़ा 30 मरीजों का है. यह तब जबकि एम्स में साल के ढाई लाख से ज्यादा मरीज भर्ती होते हैं और रिम्स में लगभग 80 हजार मरीज.
झारखंड के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में पिछले साल (वर्ष 2022 के जनवरी से दिसंबर तक) 11,205 मरीजों की मौत हुई है. मौत का यह आंकड़ा कुल भर्ती मरीज 79,300 की तुलना में 14.14 फीसदी है. चिंता की बात यह है कि सबसे ज्यादा मरीजों की मौत न्यू ट्रॉमा सेंटर में हुई है. यहां 604 मरीजों को भर्ती किया गया, जिसमें से 342 की मौत हो गयी. यहां मौत भर्ती मरीजों की तुलना में 56.7 फीसदी है. इसके बाद मेडिसीन विभाग में मौत का आंकड़ा 6,010 है, जो विभाग में कुल भर्ती मरीजों का 24.76 फीसदी है.
यहां 24,277 मरीजों को एक साल में भर्ती किया गया. इसके बाद न्यूरो सर्जरी विभाग का नंबर है. यहां एक साल में 1,963 मरीजों की मौत हुई है. यह मौत कुल भर्ती मरीज 8,644 की तुलना में 22.71 फीसदी है. इधर, रिम्स के सर्जरी विभाग में 10,723 मरीजों को ऑपरेशन के लिए भर्ती किया गया, जिसमें से 946 की मौत इलाज के दौरान हो गयी. कार्डियोलॉजी में 5,961 का इलाज किया गया, जिसमें से 238 की मौत हो गयी.
रिम्स एक ऐसा संस्थान है, जहां मरीजों को भर्ती करने से मना नहीं किया जाता है, चाहे मरीज के इलाज के लिए बेड उपलब्ध भले ही न हो. वहीं, निजी अस्पताल पहले मरीज को अपने यहां भर्ती कर इलाज करते हैं, लेकिन जैसे ही मरीज के पास पैसा खत्म हो जाता है और उनको लगता है कि मरीज अब नहीं बचेगा, तो वह रिम्स भेज देते है. रिम्स में प्रतिदिन निजी अस्पतालों के एंबुलेंस इमरजेंसी के सामने खड़े रहते हैं.
पूरे झारखंड के अलावा पड़ोसी राज्यों के मरीजों भी रिम्स पहुंचते हैं. हम मरीजों को भर्ती करने से इनकार नहीं कर सकते, इसलिए फर्श पर भी रखकर इलाज करना पड़ता है. निजी अस्पतालों के गंभीर मरीजों को अंतिम समय में रिम्स भेज दिया जाता है, जिससे रिम्स का डेथ रेट बढ़ जाता है. रेफर होकर आये मरीजों की अवस्था और उनकी वर्तमान स्थिति के मूल्यांकन के लिए रिम्स के सभी विभागों को एक साल पहले निर्देश दिया गया था. इसका डेटा तैयार करने की जरूरत है.
डॉ कामेश्वर प्रसाद, निदेशक रिम्स
रिम्स के शिशु विभाग (पीडियेट्रिक्स और नियोनेटोलॉजी) में पिछले साल 957 मरीजों की मौत हुई है. यह दोनों विभाग में भर्ती कुल मरीज 6,220 की अपेक्षा 15.4 फीसदी है. पीडियेट्रिक्स विभाग में 4,178 बच्चे भर्ती हुए और 439 की मौत हुई. वहीं, नियोनेटोलॉजी विभाग में 2,042 नवजात को भर्ती किया गया और 518 की मौत इलाज के दौरान हो गयी.
मेडिसीन 6010
न्यूरो सर्जरी 1963
पीडियेट्रिक 439
नियोनेटोलॉजी 518
सर्जरी 946
कार्डियोलॉजी 238
न्यू ट्राॅमा सेंटर 342
पीडियेट्रिक सर्जरी 191
एनेस्थिसिया आइसीयू 163
गाइनी 70
सर्जिकल अंकोलॉजी 93
आर्थोपेडिक 50
कोविड आइसाेलेशन वार्ड 56
सीटीवीएस 35
टीबी एंड चेस्ट 26
यूरोलॉजी 18
स्कीन 16
न्यूरोलॉजी 19
इएनटी 07
रेडियेशन अंकाेलॉजी 04
नेफ्रोलॉजी 01
(स्रोत : रिम्स)