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Eid Milad-un-Nabi 2020: रांची में ऐसे मनी ईद मिलाद-उन-नबी, जानें जश्न की तारीख, इतिहास और महत्व

Eid Milad-un-Nabi 2020: कोरोना महामारी के बीच झारखंड की राजधानी रांची में जश्न ईद मिलाद-उन-नबी को करुणा दिवस के रूप में मनाया गया. बुधवार को शहर के युवाओं ने ओल्ड एज होम, संत मिखाइल ब्लाइंड स्कूल, चेशायर होम, बरनाबस और अंजुमन अस्पताल के मरीजों, बुजुर्गों और बच्चों के बीच टीम रहमत ने फूड पैकेट्स बांटे.

Eid Milad-un-Nabi 2020: कोरोना महामारी के बीच झारखंड की राजधानी रांची में जश्न ईद मिलाद-उन-नबी को करुणा दिवस के रूप में मनाया गया. बुधवार को शहर के युवाओं ने ओल्ड एज होम, संत मिखाइल ब्लाइंड स्कूल, चेशायर होम, बरनाबस और अंजुमन अस्पताल के मरीजों, बुजुर्गों और बच्चों के बीच टीम रहमत ने फूड पैकेट्स बांटे.

निहाल अहमद, शहरोज कमर और औरंगजेब खान ने बताया कि कुरआन की सूरा (21:107) के मुताबिक, पैगम्बर मोहम्मद ने कहा है कि हर जीव की सेवा करना पुण्य है. डॉ विक्रम, सिस्टर बिमला, राजकुमार चंद्रवंशी, रांची सेंट्रल मुहर्रम कमेटी के महासचिव अकील-उर रहमान, जमीयत उलमा भी इस खुशी में शरीक हुए.

इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग पैगम्बर हजरत मोहम्मद के जन्मदिन को ईद-ए-मिलाद-उन-नबी या ईद-ए-मिलाद के रूप में सेलिब्रेट करते हैं. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, ये त्योहार तीसरे महीने रबी-उल-अव्वल के 12वें दिन मनाया जाता है. इसकी सही तारीख को लेकर लोगों में इस वर्ष कन्फ्यूजन है. 29 अक्टूबर, 2020 की शाम से 30 अक्टूबर की शाम तक ईद-ए-मिलाद रहेगा.

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भारत में ये त्योहार 30 अक्टूबर, 2020 को सेलिब्रेट किया जायेगा. इस्लामी चंद्र कैलेंडर के मुताबिक, भारत में 19 अक्टूबर से रबी-उल-अव्वल का महीना शुरू हो चुका है. भारत समेत पाकिस्तान और बांग्लादेश में 30 अक्टूबर को ईद मिलाद उन नबी की दावत होगी. पैगम्बर मोहम्मद साहब की याद में इस दिन समुदाय के लोग जुलूस निकालते हैं, लेकिन इस साल कोरोना के चलते ऐसा होना मुश्किल है.

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ईद-ए-मिलाद का पर्व 29 अक्टूबर और 30 अक्टूबर को मनाया जा रहा है. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, यह पर्व तीसरे महीने में मनाया जाता है. इस पर्व को सूफी या बरेलवी मुस्लिम अनुयायी मनाते हैं. इनके लिए यह दिन बेहद खास होता है. इस दिन को इस्लाम धर्म के अंतिम पैगम्बर यानी पैगम्बर मोहम्मद की जयंती के तौर पर मनाया जाता है.

ईद मिलाद उन नबी का त्योहार 29 अक्टूबर को शुरू होकर 30 अक्टूबर की शाम को खत्म होगा. जो लोग इस्लाम धर्म को मानते हैं, वो मोहम्मद साहब के प्रति बेहद ही आदर-सम्मान का भाव रखते हैं. सभी के लिए इसके इतिहास और महत्व के बारे में जानना जरूरी है.

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इस्लाम के तीसरे महीने यानी रबी-अल-अव्वल की 12वीं तारीख को 571 इस्वी में इस्लाम के तीसरे महीने यानी रबी-अल-अव्वल की 12वीं तारीख को मुस्लिम समुदाय के लोग इस्लाम के अंतिम पैगम्बर यानी पैगम्बर हजरत मोहम्मद की जयंती मनाते हैं. इसी रबी-उल-अव्वल के 12वें दिन ही पैगम्बर मोहम्मद साहब का इंतकाल भी हो गया था.

पैगम्बर हजरत मोहम्मद का जन्म मक्का में हुआ था. इसी जगह पर स्थित हीरा नाम की एक गुफा है, जहां इन्हें 610 इस्वी में ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. इसके बाद ही मोहम्मद साहब ने कुरान की शिक्षा का उपदेश दिया था. मोहम्मद साहब ने उपदेश में कहा था कि अगर कोई ज्ञानी, अज्ञानियों के बीच रहता है, तो वह व्यक्ति भटक जाता है.

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उन्होंने कहा था कि वह वैसा ही होगा जैसा, मुर्दों के बीच जिंदा इनसान भटक रहा होता है. उनका मानना था कि उन्हें मुक्त कराओ जो गलत तरीके से कैद हैं. किसी भी निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए. साथ ही उनका मानना यह भी था कि जो इनसान भूख, गरीबी और संकट से जूझ रहा हो, उसकी मदद करो.

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ईद मिलाद-उन-नबी या ईद-ए-मिलाद का महत्व

ईद-ए-मिलाद को मुस्लिम समुदाय के लोग पैगम्बर मोहम्मद की पुण्यतिथि के रूप में मनाते हैं. मिस्र में इसे आधिकारिक उत्सव के रूप में मनाया जाता था. 11वीं शताब्दी में यह काफी लोकप्रिय हो गया और बाद में सुन्नी समुदाय के लोग भी ईद-ए-मिलाद का उत्सव मनाने लगे. इस मौके पर अल्लाह के आखिरी पैगम्बर की जीवनी के बारे में लोगों को बताया जाता है.

मिस्र में सबसे पहले हुई सरकारी छुट्टी

कहा जाता है कि मिस्र के बाद तुर्क मेवलिद कंदील ने 1588 में पैगम्बर के जन्म दिवस पर सरकारी छुट्टी की घोषणा की. ईद मिलाद उन नबी को अब लगभग सभी मुस्लिम देशों में मनाया जाता है. कतर और सऊदी अरब में इस दिन सरकारी छुट्टी की आधिकारिक घोषणा नहीं की गयी है.

सल्फी विचारधारा के मुताबिक, पैगम्बर मोहम्मद के जन्म दिन का जश्न इस्लामी परंपरा का हिस्सा नहीं है. उनका मानना है कि इस्लाम में सिर्फ ईद-उल-फितर और ईद-उल-अजहा का विशेष स्थान है. ईद और बकरीद को छोड़कर किसी तरह का आयोजन या जश्न इस्लाम धर्म में नयी बात पैदा करना है.

ऐसे मनाते हैं जश्न, इस बार क्या होगा?

भारत और एशिया महादेश के कई इलाकों में पैगंबर के जन्म दिवस पर खास इंतजाम किये जाते हैं. मुसलमान जलसा-जुलूस का आयोजन करते हैं और घरों को सजाते हैं. कुरआन की तिलावत और इबादत भी की जाती है. गरीबों को लोग दान देते हैं. जम्मू-कश्मीर में हजरत बल दरगाह पर सुबह की नमाज के बाद पैगम्बर मोहम्मद के अवशेषों को दिखाया जाता है.

हैदराबाद में भव्य धार्मिक मीटिंग, रैली और परेड का भी आयोजन होता है. इस साल वैश्विक महामारी का रूप ले चुके कोरोना वायरस के संक्रमण के खतरे को देखते हुए ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन की अनुमति नहीं होगी. हां, लोग अपने घरों में सोशल डिस्टैंसिंग का पालन करते हुए महफिल सजा सकते हैं. मस्जिदों में भी पैगम्बर को याद करने के लिए महफिल सजायी जा सकती है.

Posted By : Mithilesh Jha

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