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रांची रेल डिविजन में ट्रेनों से हट रही जेनरेटर कार, अब इंजन से कोच को मिलेगी बिजली, जानें क्या होगा इसका फायदा

रांची रेल डिविजन में एक प्रक्रिया के तहत ट्रेनों से जेनरेटर कार हटाने का कार्य शुरू किया गया है. इससे रेलवे के साथ-साथ यात्रियों को भी फायदा होगा. इसके लिए हेड ऑन जेनरेशन (एचओजी) तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है.

Indian Railway News रांची : रांची रेल डिविजन में चरणबद्ध तरीके से ट्रेनों से जेनरेटर कार हटाने का कार्य शुरू कर दिया गया है. इससे रेलवे के साथ-साथ यात्रियों को भी फायदा होगा. इसके लिए हेड ऑन जेनरेशन (एचओजी) तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. इससे सीधे इंजन से ही बिजली मिलने लगेगी. कोच में लाइट, पंखे और वातानुकूलित संयंत्र, लोकोमोटिव (इंजन) बिजली से चलेंगे. इससे ईंधन की बचत होगी और प्रदूषण भी कम होगा.

रेलवे के अधिकारी ने बताया कि रांची रेल मंडल से खुलनेवाली सात प्रमुख ट्रेनों से जेनरेटर कार को हटाया गया है. एक ट्रेन में दो जेनरेटर कार होती है. विकल्प के तौर पर फिलहाल एक जेनरेटर कार को रखा गया है, क्योंकि ट्रेन का इंजन फेल होने पर भी कोच में जेनरेटर कार से विद्युत सप्लाई होती रहे. वहीं, दूसरी जेनरेटर कार की जगह एक कोच लगाया गया है. इससे ट्रेन में सीटों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है.

हेड ऑन जेनरेशन टेस्टिंग किट का किया निर्माण :

रांची रेल डिविजन के विद्युत विभाग के इंजीनियरों ने हेड ऑन जेनरेशन टेस्टिंग किट का निर्माण हटिया स्थित कोचिंग डिपो में किया है. इसे आसानी से एक से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है. इसका वजन भी बहुत कम है. टेस्टिंग किट के निर्माण से इंजन लगाकर ट्रेन को मूवमेंट करना आवश्यक नहीं है. वॉशिंग लाइन पर भी ट्रेन में विद्युत सप्लाई सही से हो रही है या नहीं या खराबी की जांच करने में यह उपकरण मदद करता है. इससे समय की बचत होती है. वहीं, इंजन का मूवमेंट नहीं होने के कारण मैन पावर तथा ऊर्जा की भी बचत होती है.

रांची रेल डिविजन को 15 करोड़ की बचत :

रांची से दिल्ली जाने में राजधानी ट्रेन में 6000 लीटर तेल खर्च होते हैं. रेलवे के अधिकारी ने बताया कि एक जेनरेटर कार को चलाने से प्रति घंटे 55 लीटर तेल की खपत होती है. ऐसे में एक लीटर डीजल की कीमत 90 रुपये के हिसाब से छह हजार लीटर डीजल का मूल्य 5 लाख 40 हजार रुपये होता है. सात ट्रेनों से एक-एक जेनरेटर कार हटाने से रेलवे को अप्रैल से सितंबर माह तक 15 करोड़ रुपये की बचत हुई है.

वायु प्रदूषण भी नहीं होगा :

जेनरेटर कार की जगह हेड ऑन जेनरेशन से कोच में विद्युत सप्लाई से वायु और ध्वनि प्रदूषण नहीं होगा. कार्बन उत्सर्जन भी नहीं होगा. अभी ट्रेनों में आगे-पीछे लगी दोनों पावर कार सालाना लगभग 650 से 700 मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन करते हैं.

इस तरह काम करती है हेड ऑन जेनरेशन तकनीक

ओवर हेड इलेक्ट्रिक तार में 25 हजार वोल्ट का करंट रहता है, जो इंजन में सप्लाई किया जाता है. इसे तीन फेज में इंजन में सप्लाई किया जाता है. इंजन में लगा कन्वर्टर 750 वोल्ट करंट को ट्रेन के इंजन में सप्लाई करता है. इससे डिब्बे में विभिन्न तरह के यंत्र मसलन एसी के लिए 515 वोल्ट, पंखा व बल्ब के लिए 110 वोल्ट करंट पास करता है.

Posted By : Sameer Oraon

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