रांची: अरुणाचल प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के तीन युवा लेखकों को वर्ष 2023 का ‘जयपाल-जुलियुस-हन्ना साहित्य अवार्ड’ दिया जाएगा. यह अवार्ड उनकी मौलिक पांडुलिपियों ‘गोमपी गोमुक’, ‘हेम्टू’ और ‘सोमरा का दिसुम’ के लिए नवंबर में रांची में आयोजित अवार्ड समारोह में प्रदान किया जाएगा. रांची में प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन की मुख्य कार्यकारी और सुप्रसिद्ध आदिवासी लेखिका वंदना टेटे ने इसकी घोषणा की. ‘जयपाल-जुलियुस-हन्ना साहित्य अवार्ड’ पिछले साल विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर शुरू किया गया है. ये भारत की किसी भी आदिवासी भाषा में रचित तीन मौलिक रचनाओं को दिया जाता है. वंदना टेटे ने कहा कि भारत में आदिवासी भाषा और लेखन को प्रोत्साहित करने के लिए साहित्य अकादमी की ओर से कोई योजना नहीं है. संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल केवल दो ही भाषाओं के साहित्य को कुछ सुविधाएं दी जा रही है, लेकिन देश की सौ से ज्यादा गैर-अधिसूचित आदिवासी भाषाओं के लिए केन्द्र और राज्य स्तर पर सरकारों के पास कोई योजना नहीं है. पिछले साल 2022 से तीन प्रमुख आदिवासी नेतृत्वकर्ताओं जयपाल सिंह मुंडा, जुलियुस तिग्गा और हन्ना बोदरा की स्मृति में यह अवार्ड शुरू किया गया है. इस अवार्ड के तहत चयनित पांडुलिपि का प्रकाशन किया जाता है.
अवार्ड के लिए आईं कई प्रविष्टियां
प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन की वंदना टेटे ने जानकारी दी कि इस जयपाल-जुलियुस-हन्ना साहित्य अवार्ड के लिए कई प्रविष्टियां आईं. इनमें से निर्णायक मंडल ने डॉ तुनुङ ताबिङ का ‘गोमपी गोमुक’ (शब्द ध्वनि), संतोष पावरा की ‘हेम्टू’ (अतिक्रमण) और डॉ पूजा प्रभा एक्का की अनुवादित रचना ‘सोमरा का दिसुम’ को पुरस्कार के लिए चुना है. ‘गोमपीî गोमुक’ आदी व हिंदी और ‘हेम्टू’ पावरी/बारेला और हिंदी में रचित द्विभाषी कविता संग्रह है. वहीं ‘सोमरा का दिसुम’ असम के चाय बागान की सुप्रसिद्ध आदिवासी साहित्यकार काजल डेमटा के बांग्ला कहानी संग्रह ‘चा बागिचार सांझ फजिर’ का हिंदी अनुवाद है.
तीनों रचनाएं भारत के आदिवासी समाज की अभिव्यक्ति
वंदना टेटे ने कहा कि ये तीनों रचनाएं भारत के आदिवासी समाज की अभिव्यक्ति को बहुत ही कलात्मकता और सौंदर्यबोध के साथ प्रस्तुत करती हैं. ये संभावनाओं से भरे भविष्य के आदिवासी स्टोरीटेलर हैं, जिनकी कृतियां बताती हैं कि युवा आदिवासी अपनी भाषा और साहित्य को लेकर कितना गहरा लगाव रखते हैं.
अरुणाचल प्रदेश के आदिवासी समुदाय की हैं
‘आदी’ आदिवासी समुदाय की डॉ तुनुङ ताबिङ मूलतः अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी सियाङ जिले की हैं. वे फिलहाल ईटानागर स्थित राजीव गांधी विश्वविद्यालय के इंस्टीच्यूट ऑफ डिस्टेंट एजुकेशन विभाग में प्राध्यापक हैं. ‘गोमपीî गोमुक’ इनके कविताओं का पहला संग्रह है. संतोष पावरा महाराष्ट्र के नंदूरबार जिला के लक्कड़कोट गांव के हैं और पावरा आदिवासी समुदाय से आते हैं. ‘हेम्टू’ इनका दूसरा काव्य संग्रह है. डॉ पूजा प्रभा एक्का अलिपुरद्वार (प.बं.) जिले के पनियालगुरी चाय बागान की निवासी हैं और घोषपुकुर कॉलेज में हिंदी का सहायक प्रोफेसर हैं. ‘सोमरा का दिसुम’ इनका पहला अनुवाद कार्य है.
आदिवासी भाषा और लेखन को प्रोत्साहित करना है उद्देश्य
वंदना टेटे ने कहा कि भारत में आदिवासी भाषा और लेखन को प्रोत्साहित करने के लिए साहित्य अकादमी की ओर से कोई योजना नहीं है. संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल केवल दो ही भाषाओं के साहित्य को कुछ सुविधाएं दी जा रही है, लेकिन देश की सौ से ज्यादा गैर-अधिसूचित आदिवासी भाषाओं के लिए केन्द्र और राज्य स्तर पर सरकारों के पास कोई योजना नहीं है. इसीलिए फाउंडेशन ने पिछले साल से तीन प्रमुख आदिवासी नेतृत्वकर्ताओं जयपाल सिंह मुंडा, जुलियुस तिग्गा और हन्ना बोदरा की स्मृति में यह अवार्ड शुरू किया है. इस अवार्ड के तहत चयनित पांडुलिपि का प्रकाशन किया जाता है. सौ किताबों की रॉयल्टी लेखक को अग्रिम दी जाती है. प्रकाशित पुस्तक की 50 प्रतियां निःशुल्क भेंट की जाती है और प्रशस्ति पत्र, अंग वस्त्र व प्रतीक चिन्ह प्रदान किए जाते हैं.