भारत विविधताओं से भरा देश है. देश के अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग त्योहार हैं. उनकी अलग-अलग मान्यताएं हैं. हर वर्ग और समुदाय के लोग अपने-अपने त्योहार को अपने-अपने तरीके से मनाते हैं. उनकी अपनी मान्यताएं हैं. झारखंड एक आदिवासी बहुल राज्य है. यहां की 30 फीसदी से अधिक आबादी अनुसूचित जनजातियों यानी आदिवासियों की है. आदिवासी समाज के लोग प्रकृति के पुजारी हैं. उनके पर्व-त्योहारों में भी यह स्पष्ट परिलक्षित होता है. आइए, आज हम आपको बताते हैं कि सरहुल का पर्व कब और कहां मनाया जाता है. इसे कौन लोग मनाते हैं.
झारखंड में आदिवासियों के हर पर्व-त्योहार में प्रकृति को अहमियत दी जाती है. आदिवासियों का सबसे बड़ा त्योहार है सरहुल. चैत्र शुक्ल की तृतीया तिथि को सरहुल पर्व मनाया जाता है. सरहुल पर्व की शुरुआत के बाद ही कृषि कार्य शुरू होता है. मुंडा, उरांव और संताल जनजातियों में यह पर्व अलग-अलग नामों से मनाया जाता है. मुंडा इसे सरहुल, उरांव खद्दी और संताल बाहा पर्व कहते हैं. सरहुल के साथ ही आदिवासियों का नव वर्ष शुरू होता है.
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पतझड़ के बाद पेड़-पौधे की टहनियों पर जब हरी-हरी पत्तियां निकलने लगती हैं, तब सरहुल मनाया जाता है. आम के पेड़ों में मंजर आ जाते हैं, सखुआ और महुआ के फूल से जब वातावरण सुगंधित हो जाता है, तब आदिवासियों का सबसे बड़ा और प्रमुख प्रकृति पर्व ‘सरहुल’ मनाया जाता है. चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि से शुरू होकर यह पर्व चैत्र पूर्णिमा के दिन संपन्न होता है. साल यानी सखुआ के वृक्ष का इस पर्व में विशेष महत्व होता है. इस पर्व के बाद ही गेहूं (रबी) की नयी फसल की कटाई शुरू हो जाती है.
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प्रकृति पर्व सरहुल हर साल वसंत ऋतु में मनाया जाता है. इसी मौसम में पतझड़ के बाद पुरानी पेड़ों की टहनियों से पत्तियां टूटकर गिर जाती हैं और उस पर नयी पत्तियां लगती हैं. यह पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया से शुरू होता है. इस वर्ष यानी वर्ष 2023 में यह तिथि 24 मार्च को है. यानी इस बार 24 मार्च को सरहुल का पर्व मनाया जायेगा. आमतौर पर सरहुल का पर्व अंग्रेजी कैलेंडर के अप्रैल महीने में आता है. लेकिन, कई बार मार्च के आखिरी सप्ताह में भी यह त्योहार मनाया जाता है. इस बार मार्च में ही सरहुल का पर्व मनाया जा रहा है. इससे पहले वर्ष 2022 में 4 अप्रैल को सरहुल मनाया गया था, जबकि वर्ष 2021 में 15 अप्रैल को.