रांची, सुनील कुमार/दिवाकर सिंह : झारखंड की खेल नीति में खिलाड़ियों को नौकरी देने के मामले को कभी भी प्राथमिकता के स्तर पर नहीं रखा गया. ऐसे में राज्य निर्माण के बाद से राज्य के खिलाड़ी नौकरी पाने के लिए तरस रहे हैं. मजबूरी में उन्हें केंद्रीय संस्थानों या फिर दूसरे राज्यों का सहारा लेना पड़ता है. इसमें कुछ नौकरी पाने के लिए सफल रहते हैं, लेकिन कई खिलाड़ी उम्र गुजर जाने के बाद तरसते रह जाते हैं. हकीकत में खेल और खिलाड़ियों के मामले में झारखंड हमेशा आगे रहा है.
खिलाड़ियों ने अपनी प्रतिभा से पूरी दुनिया में झारखंड का परचम लहराया है. इसमें क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी, तीरंदाजी, एथलेटिक्स, कुश्ती, लॉनबॉल सहित अन्य खेल शामिल हैं. खिलाड़ी तो पूरी मेहनत और लगन से पदक जीतकर अपने राज्य का मान बढ़ा रहे हैं, लेकिन राज्य सरकार उनके इस मान का सम्मान नहीं कर रही है. खिलाड़ी जब पदक जीत कर आते हैं, तो उनको सरकार से उम्मीद रहती है कि उन्हें रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे. दूसरी ओर इन 23 सालों में सीधी नियुक्ति के माध्यम से अब तक केवल 44 खिलाड़ियों को ही रोजगार मिल पाया है. बाकी खिलाड़ियों की उम्र इंतजार करते-करते पार हो गयी.
2007 में खेल नीति बनी और खिलाड़ियों की नौकरी को लेकर कैबिनेट से पारित हो गयी, लेकिन इसे लागू नहीं किया जा सका. इसके तहत खिलाड़ियों को नौकरी में दो प्रतिशत का आरक्षण देने का प्रावधान था. हालांकि तब तत्कालीन मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप से बॉक्सर अरुणा मिश्रा, तरुणा मिश्रा और झानो हांसदा को पुलिस विभाग में सब इंस्पेक्टर रैंक की नौकरी मिली. इसके सात साल बाद 2014 में हॉकी खिलाड़ी बिगन सोय और कबड्डी खिलाड़ी विंध्यवासिनी को भी पुलिस में नौकरी मिली.
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2019 प्रिया, अलका डुंगडुंग, सलीमा टेटे (हॉकी), मधुमिता (तीरंदाजी)
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2020 अंशु लकड़ा, संगीता कुमारी, कृष्णा तिर्की (हॉकी), रमन चौधरी, रोहित (वॉलीबॉल)
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2021 सुशांत कुमार मिश्रा (क्रिकेट), प्रिया डुंगडुंग, ईदुला ज्योति, प्रकाश धर (सभी हॉकी)
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2022 दीपिका सोरेंग, मरीना, हिमांशु, सव्यसाची मिंज (हॉकी), दीप्ति कुमारी (तीरंदाजी)
झारखंड सरकार द्वारा खिलाड़ियों को रोजगार के मौके नहीं दिये जाने के कारण यहां के प्रतिभावान खिलाड़ी दूसरे राज्य का रुख कर रहे हैं. झारखंड की अंतरराष्ट्रीय फुटबॉलर नागी मार्डी, नूपुर टोप्पो सहित कई खिलाड़ियों ने अपने बेहतर भविष्य को देखते हुए झारखंड छोड़ दिया. हॉकी की कई खिलाड़ियों ने दूसरे राज्यों और विभागों का रुख कर लिया.
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सीधी नियुक्ति के तहत 2021 में 39 खिलाड़ियों को हेमंत सरकार ने नौकरी दी, लेकिन 34वें राष्ट्रीय खेल में चौथे से आठवां स्थान तक प्राप्त करनेवाले 16 खिलाड़ियों को अभी भी सीधी नियुक्ति का इंतजार है. पिछले दो वर्षों से इनके दस्तावेजों का वेरिफिकेशन नहीं हो पाया है. इन 16 खिलाड़ियों में एथलेटिक्स के गणेश चंद्र महतो, लख राज प्रसाद, वसीम अकरम, कुश्ती के विष्णु कुमार, बबलू कुमार, वुशु की सुनीता गाड़ी, मीनू मुंडा, रणधीर उरांव, प्रतिमा कुमारी, धनंजय गौतम, चंदन कुमार, गीता खलखो, दीपक गोप, राजीव श्रीवास्तव और दिनेश यादव शामिल हैं.
राज्य सरकार के खेल विभाग ने 2007 में खेल नीति बनायी थी, लेकिन बिना नियमावली के ही खेल विभाग ने 2012 में आवेदन मंगा लिये थे. तब 3000 हजार से ज्यादा आवेदन आये थे. 700 आवेदनों को स्क्रूटनी के बाद अलग कर लिया गया था, लेकिन नौकरी पर कुछ नहीं हुआ. उस समय 500 से ज्यादा खिलाड़ी ऐसे थे, जो खेल विभाग द्वारा निर्धारित रोजगार की अर्हताएं पूरी करते थे. इनमें से राष्ट्रीय खेलों-राष्ट्रीय चैंपियनशिप के 80, जबकि 25 से 30 अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता खिलाड़ी हैं. साथ ही विभिन्न राज्य चैंपियनशिप में पदक जीतनेवाले खिलाड़ियों की संख्या 400 के आसपास है. 10 साल बाद रोजगार की आस में खिलाड़ियों की संख्या भी बढ़ती चली गयी.
वर्तमान में रांची रेल मंडल खेल और खिलाड़ियों को बढ़ावा देने के लिए अहम भूमिका निभा रहा है. इस मंडल के ऐसे कई खिलाड़ी हैं, जो देश और राज्य के लिए खेल रहे हैं. इनमें ज्यादातर महिला खिलाड़ी हैं. इनमें हॉकी खिलाड़ी सलीमा टेटे और निक्की प्रधान के अलावा अंडर-19 क्रिकेट में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व कर चुके सुशांत मिश्रा और जूनियर भारतीय हॉकी टीम में खेल चुकी संगीता कुमारी शामिल हैं, जिनको रेलवे में नौकरी दी गयी है. वहीं रांची रेल मंडल ने नये सत्र में छह खिलाड़ियों को रेलवे में नौकरी प्रदान की है. वहीं रांची रेल मंडल पिछले तीन वर्षों में ही 18 खिलाड़ियों को नौकरी दे चुका है.
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राज्य सरकार जहां अपने खिलाड़ियों को नौकरी देने में पीछे है, वहीं दूसरी ओर रेलवे यहां के खिलाड़ियों का सहारा बन गया है. रांची रेल मंडल खिलाड़ियों को नौकरी देने में झारखंड के सबसे अग्रणी संस्थानों में शामिल है. इस मंडल के खिलाड़ियों की धमक भारतीय हॉकी टीम तक रही है. वर्तमान में भारतीय महिला हॉकी टीम का प्रतिनिधित्व करनेवाली ज्यादातर खिलाड़ी रांची रेल मंडल में कार्यरत हैं. इनमें सावित्री पूर्ति, सुमराय टेटे, असुंता लकड़ा, निक्की प्रधान, संगीता कुमारी, हेलेन सोय सहित करीब एक दर्जन अन्य खिलाड़ी शामिल हैं.
केंद्र सरकार (युवा कार्यक्रम और खेल मंत्री) के मुताबिक देशभर में 64 ऐसे खेल हैं, जिनमें प्रतिभावान खिलाड़ियों को खेल कोटे से नौकरी दी जा सकती है. इन खेलों में तीरंदाजी, एथलेटिक्स (ट्रैक एंड फील्ड इवेंट सहित), आत्या-पात्या, बैडमिंटन, बॉल-बैडमिंटन, बास्केटबॉल, बिलियर्ड्स और स्नूकर, बॉक्सिंग, ब्रिज, कैरम, शतरंज, क्रिकेट, साइकिलिंग, बेसबॉल, बॉडी-बिल्डिंग, साइकिल पोलो, डेफ खेल, फेंसिंग, जूडो, मलखंभ, नेट बॉल, पैरा स्पोर्ट्स (पैरा-ओलिंपिक और पैरा एशियाई खेलों में शामिल खेल विधाओं के लिए),
पेनक (पेंचक) सिलाट, शूटिंग बॉल, रोल बॉल, रग्बी, सेपक टकरॉ, सॉफ्ट टेनिस, टेनपिन बॉलिंग, ट्राइथलॉन, रस्साकशी, वुशु, टेनिस बॉल क्रिकेट, घुड़सवारी, फुटबॉल, गोल्फ, जिम्नास्टिक (बॉडी बिल्डिंग सहित), हैंडबॉल, हॉकी, आइस हॉकी, आइस स्केटिंग, आइस स्कीइंग, कूडो, कबड्डी, कराटे-डू, क्याकिंग और कैनोइंग, खो-खो, पोलो, पावर लिफ्टिंग, राइफल शूटिंग, रोलर स्केटिंग, रोइंग, सॉफ्ट बॉल, स्क्वैश, तैराकी, टेबल टेनिस, ताइक्वांडो, टेनी-कोईट, टेनिस, वॉलीबॉल, भारोत्तोलन, कुश्ती, याटिंग शामिल हैं. वहीं झारखंड में झारखंड ओलिंपिक संघ (जेओए) की ओर से केवल 36 खेलों को मान्यता दी गयी है. खेल विभाग भी उन्हीं खेलों को मानता है, जिन्हें भारतीय ओलिंपिक संघ (आइओए) या जेओए से मान्यता मिली है.
झारखंड में अगर बात की जाये, तो दूसरी बार खेल नीति बनी है और इसे 2023 में लागू किया गया है. वहीं इसका संकल्प एक महीने पहले खेल विभाग को मिला है. सबसे पहले झारखंड बनने के सात साल बाद 2007 में पहली खेल नीति बनायी गयी, लेकिन इसे धरातल पर नहीं उतारा जा सका था. हालांकि तब सिर्फ तीन खिलाड़ियों को नौकरी मिली थी. बाकी खिलाड़ियों के हाथ खाली ही रह गये. इसके सात साल बाद यानी 2014 में एक नियोजन नीति तैयार की गयी, जिसके तहत केवल कबड्डी खिलाड़ी विंध्यवासिनी कुमारी को पुलिस विभाग में नौकरी मिली. इसके बाद फिर से नयी खेल नीति बनाने की तैयारी शुरू हो गयी. एक सरकार ने पांच साल प्रयास किया और खेल नीति तैयार भी की गयी, लेकिन लागू नहीं किया जा सका. इसके बाद सरकार बदल गयी और नयी खेल नीति तैयार की गयी, जिसे 2023 में लागू कर दिया गया.
नाम : संतोष उरांव. उम्र : 42 साल. फुटबॉल खिलाड़ी हैं. जूनियर नेशनल में राज्य का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. 25 साल से झारखंड की ओर से फुटबॉल खेल रहे हैं. इसके अलावा डिस्ट्रिक्ट और यूनिवर्सिटी स्तर पर भी खेल चुके हैं. बीपीएड, शॉर्ट एनआइस कोर्स के अलावा डी लाइसेंस का कोर्स भी कर चुके हैं, लेकिन राज्य में अब तक खेल कोटे से इन्हें नौकरी नहीं मिली है. कई बार नौकरी के लिए आवेदन कर चुके हैं, लेकिन अब राज्य सरकार से नौकरी मिलने की आस अब खत्म हो चुकी है.
संतोष कहते हैं कि अब उनकी नौकरी की उम्र लगभग खत्म हो चुकी है. 2021 में जब सीधी नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हुई, तब भी आवेदन दिया कि शायद इस बार नौकरी मिलेगी, लेकिन फिर निराशा हाथ लगी. उन्होंने कहा कि अब सरकार से वह अपील करना चाहते हैं कि आगे आनेवाली पीढ़ी, खिलाड़ियों और उनके प्रदर्शन पर ध्यान दिया जाये और उन्हें खेल कोटे से नौकरी मुहैया कराये. यदि यहां सरकार नौकरी नहीं दे सकी, तो यहां के खिलाड़ी दूसरे राज्यों और संस्थानों का रुख करेंगे. सरकार की ओर से खिलाड़ियों को आर्थिक मदद भी नहीं मिलती है. ऐसे में राज्य के पदक विजेता खिलाड़ियों के बीच निराशा है.
नाम : सूर्या तिर्की. 24 साल के सूर्या फुटबॉलर हैं. अंतरराष्ट्रीय फुटबॉलर रह चुके हैं. वह अंडर-16 सैफ कप में गोल्ड जीतनेवाली भारतीय टीम के सदस्य रह चुके हैं. कई राष्ट्रीय टूर्नामेंट में राज्य का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. अंडर-18 एएफसी क्वालीफायर में भी हिस्सा ले चुके हैं. इनके अलावा सूर्या अंडर-18 आइलीग, अंडर-19 आइएफए शील्ड, रजिस्टर्ड आइलीग और ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन के कई टूर्नामेंट खेल चुके हैं, इसके बाद भी अब तक नौकरी नहीं मिली है.
सूर्या ने बताया कि राज्य में सीधी नियुक्ति के लिए जब-जब वैकेंसी निकाली गयी, उन्होंने आवेदन दिया. खेल विभाग के पोर्टल के जरिये भी रजिस्ट्रेशन कराया, विभाग के ऑफिस के भी चक्कर लगाये, लेकिन उनके आवेदन पर विचार तक नहीं किया गया. उन्हें बताया गया कि सैफ फुटबॉल को मान्यता नहीं मिलने के कारण उन्हें नौकरी नहीं दी जा सकती है. सूर्या स्कूल नेशनल भी खेल चुके हैं, लेकिन अब तक नौकरी नहीं मिल पाने से निराश हो गये हैं. सूर्या बताते हैं कि उनके पिता किराना दुकान चलाते हैं, जबकि मां गृहिणी हैं. उनकी दो बड़ी बहने हैं. सूर्या घर में सबसे छोटे हैं, इसलिए घर के सभी सदस्यों को उनकी नौकरी की चिंता सताती है.
नाम : निशा कुमारी. उम्र : 23 साल. मांडर की रहनेवाली निशा एथलीट है. जेवलिन थ्रो में दर्जनों मेडल जीत चुकी है. एनसीसी भी कर चुकी हैं. 2017 में ईस्ट जोन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में जेवलिन थ्रो में गोल्ड जीत चुकी हैं. इसके अलावा निशा नेशनल एथलेटिक्स चैंपियनशिप, स्कूल नेशनल एथलेटिक्स और खेलो इंडिया में भाग ले चुकी हैं. निशा बताती है कि कई बार नौकरी के लिए आवेदन दिया, लेकिन अब तक निराशा ही हाथ लगी है. विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए बाहर जाना पड़ता है, लेकिन कई बार पैसे के अभाव में कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा नहीं ले पाती हैं.
निराश निशा अपना बैकपैक खोलती है और दो दर्जन से अधिक मेडल और सर्टिफिकेट दिखाती हैं. वह कहती हैं कि मेडल जीत कर मैंने राज्य और देश का नाम रोशन किया, लेकिन इन मेडलों का मोल क्या है, जब सरकार को खिलाड़ी की कद्र ही नहीं है. राज्य सरकार यदि नौकरी देती है, तो आर्थिक स्थिति तो सुधरेगी ही, साथ ही हम खिलाड़ियों को प्रतियोगिताओं में और बेहतर परफॉर्म करने का प्रोत्साहन मिलेगा.
बोड़ेया के रामप्रसाद साव एथलेटिक्स में झारखंड का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. 35 साल के रामप्रसाद के पास बीपीएमड, एमपीएड समेत कई डिग्रियां हैं, लेकिन झारखंड में कोई कद्र नहीं होने से निराश हैं. रामप्रसाद सबसे पहले 2006-07 में सीनियर नेशनल चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीत कर लाइमलाइट में आये. इसके बाद 2007 में पटना में हुई ईस्ट जोन एथलेटिक्स में उन्होंने सिल्वर जीता.
2008 में रांची यूनिवर्सिटी के लिए गोल्ड जीता. इसके बाद 2010, 2011, 2012 में लगातार तीन वर्ष संत गाडगे बाबा अमरावती यूनिवर्सिटी में गोल्ड हासिल किया. इसके अलावा कई नेशनल प्रतियोगिताओं में भाग लिया. बातचीत के क्रम में रामप्रसाद ने बताया कि बीपीएड, एमपीएड समेत कई डिग्रियां भी हासिल की, लेकिन अब तक नौकरी नहीं मिली. रामप्रसाद ने स्विमिंग में करियर ओरिएंटेड कोर्स भी किया है. इसके बाद वह 2013-14 में वीर बुधु भगत एक्वाटिक स्टेडियम होटवार में और 2015 में जेएससीए स्टेडियम में लाइफ गार्ड सह स्विमिंग इंस्ट्रक्टर भी रह चुके हैं, लेकिन कम वेतन के कारण उन्होंने वहां की नौकरी छोड़ दी.