रांची, मनोज लकड़ा : आर्चबिशप कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो भारत से प्रथम आदिवासी कार्डिनल थे और आदिवासियों के हित के सवालों पर राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मंच पर लगातार मुखर रहे. उन्होंने वैश्विक कलीसिया में झारखंड की बहुसंख्यक स्थानीय आदिवासियों की कलीसिया को मजबूत पहचान दिलायी. उन्होंने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय चर्च के कई महत्वपूर्ण पद पर योगदान दिया था. वे दो बार कांफ्रेंस ऑफ कैथोलिक बिशप्स ऑफ इंडिया (सीसीबीआइ) के अध्यक्ष रहे. वेटिकन के पोंटिफिकल काउंसिल फॉर कल्चर के सदस्य, वेटिकन के अंतर-धार्मिक संवाद के लिए बनी पोंटिफिकल काउंसिल के सदस्य और वित्त सतर्कता आयोग के सदस्य भी रहे. झारखंड बिशप्स और मेजर सुपीरियर फोरम के अध्यक्ष, क्षेत्रीय बिशप परिषद के अध्यक्ष, बिशप फ्रेंड्स ऑफ फोकोलारे मूवमेंट के सदस्य और संत अलबर्ट कॉलेज धर्मशास्त्र संकाय के चांसलर भी थे. पोप जॉन पॉल द्वितीय के तीन फरवरी 1986 के रांची आगमन में उन्होंने अहम भूमिका निभायी थी. वे कुड़ूख, सादरी, मुंडारी, हिंदी, अंग्रेजी, लैटिन, इटालियन व जर्मन भाषाओं के अच्छे जानकार थे.
गुमला में 15 अक्तूबर 1939 को हुआ था जन्म
उनका जन्म गुमला, चैनपुर के झड़गांव में 15 अक्तूबर 1939 को सामान्य मसीही उरांव कृषक परिवार में हुआ था. गांव के स्कूल में प्राथमिक शिक्षा पाने के बाद संत जेवियर्स कॉलेज, रांची से बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की. रांची विवि से इतिहास में एमए किया. संत अलबर्ट कॉलेज रांची व उरबानियन विवि, रोम में धर्मशिक्षा ली. तीन मई 1969 को स्विटजरलैंड के हिम्मलरीड में उनका पुरोहिताभिषेक हुआ था. इसके बाद बतौर सहायक शिक्षक तोरपा के संत जोसफ स्कूल में कार्य शुरू किया. वहां लीवंस सेंटर के संस्थापक निदेशक भी बने. सात अक्तूबर 1978 को उन्हें दुमका का बिशप बनाया गया. सात अगस्त 1985 को रांची महाधर्मप्रांत की जिम्मेवारी मिली. 21 अक्तूबर 2003 को उन्हें कार्डिनल बनाया गया. उन्होंने 33 साल तक रांची के आर्चबिशप के रूप में अपनी सेवा दी. उनका आदर्श वाक्य ‘प्रभु का मार्ग तैयार करो’ था.
अपना नाम पसंद नहीं था
बचपन में उन्हें अपना नाम पसंद नहीं था. वह सोचते थे कि तेलेस्फोर किसी संत का नाम नहीं है. उन्हें बाद में पता चला कि तेलेस्फोर एक संत, संत पिता और एक शहीद हैं. इसी संत पिता ने पवित्र मिस्सा में महिमा गान की शुरुआत की थी, उस समय वे बहुत खुश हुए थे. बचपन में लोग समझते थे कि यह बच्चा कभी बोल नहीं पायेगा, पर बाद के दिनों में उन्होंने कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मंच पर मुखरता से अपनी बात रखी.
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कार्डिनल ने कई सपने पूरे किये, कुछ रह गये अधूरे
आर्चबिशप कार्डिनल ने स्थानीय कलीसिया के लिए कई सपने देखे थे, जिनमें कई पूरे हुए और कई का पूरा होना बाकी है. उन्होंने रांची में सीबीसीआइ का मेडिकल कॉलेज व अस्पताल खोलने का सपना देखा था, जो वर्तमान में मांडर में फादर कांस्टेंट लीवंस हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के रूप में मौजूद है. उनके प्रयास से राजा उलातू चर्च को माइनर बसेलिका का दर्जा मिला. वे रांची में एक इंजीनियरिंग और एक लॉ कॉलेज भी चाहते थे. उन्होंने हमेशा एक सुगठित मसीही समुदाय का सपना देखा और चाहते थे कि लोग हर क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करें.
सरना धर्म कोड की मांग का समर्थन किया था
प्रभात खबर को 14 अक्तूबर 2015 को दिये एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि यदि प्रकृति पूजक आदिवासी सरना धर्म कोड की मांग कर रहे हैं, तो यह उन्हें मिलना चाहिए. सात अक्तूबर 2016 को उन्होंने कहा था कि आदिवासियत धर्म पर आधारित नहीं है. हम जन्म से आदिवासी हैं और इसे कौन बदल सकता है? धर्म के मामले में संविधान ने अंत:करण की स्वतंत्रता की बात कही है. आदिवासी देश के किसी भी हिस्से में जाये, वह आदिवासी ही है. यदि किसी राज्य की सरकार उसे अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा नहीं देती है, तो वह दूसरी बात है. पर उसकी आदिवासियत की पहचान होनी चाहिए. अनुसूचित जाति एससी ईसाइयों को भी अनुसूचित जाति का लाभ मिलना चाहिए, क्योंकि यह यह मानवाधिकार की बात है.
प्रकृति के साथ संबंध पर देते थे जोर
कार्डिनल ने 24 अप्रैल 2016 को कहा था कि झारखंड के लोग जैव विविधता और मनुष्य व प्रकृति के एक दूसरे के साथ रिश्ते को स्वाभाविक रूप से सीखते हैं. आदिवासी पूर्वजों ने कभी लालच नहीं किया. प्रकृति से सिर्फ जरूरत के हिसाब से लिया. उनकी अर्थव्यवस्था जरूरतों पर आधारित है. जीवन का दर्शन कभी प्रकृति का दोहन नहीं रहा, पर आज हमारा प्रकृति के साथ वह संबंध कहां चला गया है? शायद हमारे पास राजनीतिक ताकत नहीं है, पर हम प्रकृति के दोहन, मानव के शोषण और लालच पर आधारित अर्थव्यवस्था के खिलाफ अपनी आवाज जरूर बुलंद करें.
राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के इन पदों पर रहे कार्डिनल
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कांफ्रेंस ऑफ कैथोलिक बिशप्स ऑफ इंडिया (सीसीबीआइ) के दो बार अध्यक्ष रहे.
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वेटिकन के पोंटिफिकल काउंसिल फॉर कल्चर के सदस्य, वेटिकन के अंतर-धार्मिक संवाद के लिए बनी पोंटिफिकल काउंसिल के सदस्य.
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वेटिकन वित्त सतर्कता आयोग के सदस्य भी रहे.
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झारखंड बिशप्स और मेजर सुपीरियर फोरम के अध्यक्ष.
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क्षेत्रीय बिशप परिषद के अध्यक्ष.
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बिशप फ्रेंड्स ऑफ फोकोलारे मूवमेंट के सदस्य.
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संत अलबर्ट कॉलेज धर्मशास्त्र संकाय के चांसलर भी थे.
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सात अक्तूबर 1978 को उन्हें दुमका का बिशप बनाया गया.
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सात अगस्त 1985 को रांची महाधर्मप्रांत की जिम्मेवारी मिली.
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21 अक्तूबर 2003 को उन्हें कार्डिनल बनाया गया.
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33 साल तक रांची के आर्चबिशप के रूप में अपनी सेवा दी.