Tusu Festival in Jharkhand: टुसू पर्व झारखंड के कुड़मी और आदिवासियों का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है. यह जाड़ों में फसल कटने के बाद पौष के महीने में मनाया जाता है. यह पर्व 15 दिसंबर से लेकर मकर संक्राति तक लगभग एक महीने तक मनाया जाता है. टूसू का शाब्दिक अर्थ कुंवारी है. वैसे तो झारखंड के सभी पर्व-त्योहार प्रकृति से जुड़े हुए हैं, लेकिन टुसू पर्व का महत्व कुछ और ही है.
टुसू पर्व के इतिहास का कुछ खास लिखित स्त्रोत नहीं है लेकिन इस पर्व में बहुत से कर्मकांड होते हैं और यह अत्यंत ही रंगीन और जीवन से परिपूर्ण त्यौहार है. मकर संक्राति के अवसर पर मनाये जाने वाले इस त्योहार के दिन पूरे कूड़मी, आदिवासी समुदाय द्वारा अपने नाच-गानों और मकर संक्रांति पर सुबह नदी में स्नान कर उगते सूरज की प्रार्थना करके टुसू की पूजा की जाती है. और नववर्ष की समृद्धि और खुशहाली की कामना की जाती है. इस प्रकार यह आस्था का पर्व श्रद्धा, भक्ति और आनंद से परिपूर्ण कर देती हैं.
टुसू पर्व झारखंड के दक्षिण पूर्व रांची, खूंटी, सरायकेला-खरसावां, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिम सिंहभूम, रामगढ़, बोकारो, धनबाद जिलों और पंचपरना क्षेत्र की प्रमुख पर्व है. साथ ही झारखंड के अलावा पश्चिम बंगाल के पुरुलिया, मिदनापुर व बांकुड़ा जिलों, ओड़िशा के क्योंझर, मयूरभंज, बारीपदा जिलों में मनाया जाता है. इस उत्सव को अघन संक्रांति (15 दिसंबर) से लेकर मकर संक्रांति (14 जनवरी) तक इसे कुंवारी कन्याओं के द्वारा टुसू पूजन के रूप में मनाया जाता है. घर की कुंवारी कन्याएं प्रतिदिन संध्या समय में टुसू की पूजा करती हैं. गांव की कुंवारी कन्याएं टुसू की मूर्ति बनाती हैं. इसी मूर्ति के चारों ओर सजावट करती हैं और फिर धूप, दीप के साथ टुसू की पूजा करती है.
टुसू पर्व तीन नामों से जाना जाता है. पहला टुसु परब, मकर परब और पूस परब. इन तीन नामों के अलावा बांउड़ी और आखाईन जातरा का एक विशेष महत्त्व है. बांऊड़ी के दूसरा दिन या मकर संक्रांति के दूसरे दिन “आखाईन जातरा” मनाया जाता है. कृषि कार्य समापन के साथ-साथ कृषि कार्य प्रारंभ का भी आगाज किया जाता है. कहने का तात्पर्य यह है कि बांउड़ी तक प्रायः खलिहान का कार्य समाप्त कर आखाईन जातरा के दिन कृषि कार्य का प्रारंभ मकर संक्रांति के दिन होता है. कुड़मी और आदिवासी जनजातीय समुदायों, किसानों के लिए विशेष महत्व रखता है. आखाईन जातरा के दिन हर तरह के काम के लिए शुभ माना जाता है. बड़े बुजुर्ग के कथानुसार इस दिन नया घर बनाने के लिए बुनियादी खोदना या शुरू करना अति उत्तम दिन माना जाता है. इसमें कोई पूंजी पोथी का जरूरत नहीं पड़ती है. इस दिन को नववर्ष के रूप में मनाया जाता है.
टुसू पर्व को धूमधाम से मनाने के पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं. राजा राम महतो ने बताय, टुसू एक गरीब कुरमी किसान की अत्यंत सुंदर कन्या थी. धीरे-धीरे संपूर्ण राज्य में उसकी सुंदरता का बखान होने लगा. एक क्रूर राजा के दरबार में भी खबर फैल गयी. राजा को लोभ हो गया और कन्या को प्राप्त करने के लिए उसने षड्यंत्र रचना प्रारंभ कर दिया. उस वर्ष राज्य में भीषण अकाल पड़ा था. किसान लगान देने की स्थिति में नहीं थे. इस स्थिति का फायदा उठाने के लिए राजा ने कृषि कर दोगुना कर दिया. गरीब किसानों से जबरन कर वसूली का राज्यादेश दे दिया गया.
पूरे राज्य में हाहाकार मच गया. टुसू ने किसान समुदाय से एक संगठन खड़ा कर राजा के आदेश का विरोध करने का आह्वान किया. राजा के सैनिकों और किसानों के बीच भीषण युद्ध हुआ. हजारों किसान मारे गये. टुसू भी सैनिकों की गिरफ्त में आनेवाली थी. उसने राजा के आगे घुटने टेकने के बजाय जल-समाधि लेकर शहीद हो जाने का फैसला कि या और उफनती नदी में कूद गयी. टुसू की इस कुरबानी की याद में ही टुसू पर्व मनाया जाता है और टुसू की प्रतिमा बनाकर नदी में विसर्जित कर श्रद्धांजलि अर्पित किया जाता है. टुसू कुंवारी कन्या थी, इसलिए इस पर्व में कुंवारी लड़कियों की ही भूमिका अधिक होती है.
आमरा जे मां टुसु थापी,अघन सक्राइते गो।
अबला बाछुरेर गबर,लबन चाउरेर गुड़ी गो।।
तेल दिलाम सलिता दिलाम,दिलाम सरगेर बाती गो।
सकल देवता संझ्या लेव मां,लखी सरस्वती गो।।
गाइ आइल’ बाछुर आइल’,आइल’ भगवती गो। संझ्या लिएं बाहिराइ टुसू, घरेर कुल’ बाती गो।