Arjun Munda in Prabhat Khabar Samvad: जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा का मानना है कि केंद्र सरकार देश के जनजातीय समूहों को एक कड़ी में जोड़ते हुए, उनकी परंपरा, संस्कृति और जीवंतता को बरकरार रखकर विकास कर रही है. आजादी के 75 वर्षों में जनजातीय समूहों के विषय एड्रेस नहीं हुए, यह चुनौती के साथ-साथ अवसर भी है. श्री मुंडा शनिवार को प्रभात खबर संवाद कार्यक्रम में पहुंचे थे. उन्होंने राज्य के विकास, अफसरशाही और राजनीति सहित अहम मुद्दों पर बातचीत की.
आप केंद्रीय कैबिनेट में महत्वपूर्ण जिम्मेवारी निभा रहे हैं. आपके विभाग की क्या चुनौतियां हैं और पिछले चार वर्षों में आपके विभाग ने क्या उल्लेखनीय काम किये हैं?
देखिये, जनजातीय मंत्रालय के नोटिफिकेशन में आप देखेंगे, तो पायेंगे कि इसे जनजातीय मामले यानी ट्राइबल अफेयर्स कहा गया है. यह अपने आप में महत्वपूर्ण मामले की ओर इंगित करता है. जनजातीय मामले का मतलब है कि वह समग्रता के साथ इनके सारे मामलों पर विचार करे और उसे क्रियान्वित करे. इसी को ध्यान में रख कर राष्ट्रीय स्तर पर मंत्रालय का गठन किया गया. मंत्रालय की जिम्मेवारी है कि ट्राइबल के विकास की कड़ी को जोड़ते हुए उनकी जीवंतता को बरकरार रखे. इसे अवसर भी कह सकते हैं और चुनौती भी. चुनौती इस रूप में है कि जब हम आजादी के 75 वर्ष में अपने आप को पाते हैं, तो कितनी चीजों को सही तरह से एड्रेस नहीं कर पाये. अवसर इस रूप में मानते हैं कि हमें अभी मौका मिला है और उसे हम कर सकते हैं.
राज्य सरकार के साथ आपके विभाग का समन्वय कैसा रहा है? केंद्र की योजनाओं को लागू करने में राज्य सरकार तत्पर रही या कुछ कमी दिखती है?
राज्य सरकार या हम झारखंड की बात करें, तो पाते हैं कि झारखंड निर्माण ही जनजातीय समाज के विकास के लिए किया गया है, लेकिन जनजातीय समाज के लिए नीति निर्धारण व तारतम्यता की पॉलिसी बना कर स्पष्टता के साथ काम करने की जरूरत है. ऐसा कर ही हम सफल हो सकते हैं. दूसरा विकासात्मक कार्ययोजना के साथ उनके जीवन स्तर को कैसे सुधार करें , इस पर ध्यान देने की जरूरत है. इस मामले में आप खुद आकलन कर सकते हैं कि हम कहां पहुंचे हैं. वास्तविकता के बारे में मैं इसलिए बहुत ज्यादा नहीं कहूंगा कि यह लोकतांत्रिक व्यवस्था है. लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुने हुए जनप्रतिनिधि के नाते एक संवैधानिक व्यवस्था को बनाये रखने का दायित्व है. हम हर चीज को चुनाव की दृष्टि से देखें, यह उचित नहीं है. झारखंड में राज्य सरकार को इन सब मामलों में शोधपरक कार्य करने की जरूरत है.
लोकसभा चुनाव में पार्टी तो बेहतर प्रदर्शन कर लेती है, लेकिन विधानसभा चुनाव में वैसी सफलता नहीं मिल पाती है. पिछले चुनाव में तो सत्ता भी आपके हाथों से निकल गयी. कहां चूक हो गयी?
लोकसभा की बात करें, तो 2014 में देश ने नये तरीके से निर्णय दिया और नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री की कमान सौंपी. उन्होंने इन पांच वर्षों में पूरे जनमानस के लिए एक नीति अपनायी. ऐसे में लोगों को लगा कि देश की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है. एक धारणा बनी कि भविष्य के बारे में देखने से पहले यह सोचना चाहिए कि हम आंतरिक व बाहरी से सुरक्षित हैं कि नहीं. दूसरा यह है कि प्रधानमंत्री ने ऐसी योजनाओं का सूत्रण किया, जिसमें आम व्यक्ति केंद्रित रहे. इसके साथ डिलिवरी मैकैनिज्म को मजबूत किया गया. यही वजह है कि डिलेवरी मैकेनिज्म नीचे तक पहुंचा. इसका अच्छा परिणाम आया. 2019 के चुनाव में उससे भी ज्यादा ताकत के साथ जनता का समर्थन प्राप्त हुआ. जहां तक कि विधानसभा का सवाल है, तो इसमें राष्ट्रीय से ज्यादा क्षेत्रीय मुद्दे प्रभाव डालते हैं. चुनाव हारना-जीतना लगा रहता है. कई बार परिस्थितियां अनुकूल होने के बाद भी परिणाम प्रतिकूल हो सकते हैं. क्योंकि कई बार इस प्रकार के वातावरण का निर्माण हो जाता है, जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती है. झारखंड विधानसभा चुनाव वोटिंग की दृष्टि से ठीक था, लेकिन उसका विभाजन विधानसभा सीट के स्तर पर अच्छा नहीं रहा. यह वास्तविकता है.
आदिवासी सीटों पर खासकर बहुत ही खराब प्रदर्शन रहा, 28 में 26 सीटें हार गये. इस चुनौती को कैसे देखते हैं?
कुछ मुद्दे तो उस समय उभरे थे, जिस पर हमने भी सुझाव दिया था कि इन चीजों पर ध्यान रखना चाहिए. अगर उन सारी चीजों का ध्यान रखते हम काम करेंगे, तो और अच्छा होने की गुंजाइश बनी रहेगी. हालांकि कुछ मुद्दों का राजनीतिक लाभ लेने के लिए ज्यादा प्रयत्न किया गया.
राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में आपकी लंबी पारी रही है. गठबंधन की सरकार चलाने का खासा अनुभव है. झारखंड विकास में कहां चूक रहा है?
अगर हम समझ के साथ टीम वर्क करें, तो कोई दिक्कत नहीं है. अगर निर्णय सही होता है, तो उसका परिणाम अच्छा हो सकता है. केंद्र में देखें, तो हम एनडीए फोरम के नाते चल रहे हैं. सबको एक साथ लेकर चलने की नीति रहनी चाहिए. लेकिन इसमें समझ व प्राथमिकता का ध्यान रखना जरूरी है. अगर जनता ने ऐसा अवसर दिया है, तो हमें विजन के साथ काम करने की आवश्यकता है. इसमें अड़चन नहीं आनी चाहिए. जब राज्यों की राजनीति व प्रशासनिक व्यवस्था में देखते हैं, तो इसमें कई तरह की प्रतिकूल परिस्थिति का निर्माण करने में बहुत सारे एलिमेंट सहायक हो जाते हैं. इस वजह से कई बार इस तरह की स्थिति उत्पन्न हो जाती है.
हेमंत सोरेन सरकार के काम को आप किस रूप में देखते हैं?
इसका आकलन जनता को करने दीजिए. बेहतर यही होगा. क्योंकि जनता आकलन करेगी, तो ज्यादा बेहतर होगा. लेकिन कुल मिलाकर इस सरकार को देखा जाये, तो वास्तविकता का पता चल जायेगा कि यहां कैसी स्थिति है. राज्य की विश्वसनीयता बनी रहनी चाहिए. अगर आप विश्वसनीय नहीं हैं, तो संकट वहीं से प्रारंभ हो जाता है. इस समय शासन पर जो सवाल उठ रहे हैं. हम समझते हैं कि राज्य की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहा है. इसका ध्यान शासन में जरूर रखना चाहिए, क्योंकि शासन लोकतांत्रिक है.
हेमंत सोरेन सरकार लगातार भ्रष्टाचार के मामले में घिर रही है. सरकार का कहना है कि इडी और सीबीआइ जैसी एजेंसी का केंद्र सरकार दुरुपयोग कर रही है?
एजेंसियों के सदुपयोग और दुरुपयोग का फैसला हम इस समय नहीं कर सकते हैं, क्योंकि यह मामला न्यायालय में विचाराधीन है. वहां पर उनको बताना चाहिए. क्या हो रहा है और नहीं हो रहा है, इसे राजनीतिक दृष्टि से देखना उचित नहीं है. क्योंकि कई चीजें दस्तावेज के साथ सामने आ रही हैं.
कुड़मी जाति लगातार आदिवासी का दर्जा देने की मांग को लेकर मुखर है. कई राज्यों में इसे लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं. केंद्र सरकार इस मामले में क्या विचार रखती है?
यह संवैधानिक मुद्दा है. इसकी अपनी औपचारिकताएं हैं. इसके आधार पर ही चीजों को देखा जाता है. इसे राजनीतिक दृष्टिकोण से देखना उचित नहीं है. देश में कई संस्थाएं ऐसी हैं, जो स्वतंत्र रूप से काम करती हैं, जैसे चुनाव आयोग, सेंसस, रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया, न्यायपालिका आदि. इनकी अलग-अलग भूमिका है. ऐसे में हमें इन्हें उनके दायित्व पर छोड़ना चाहिए. फिलहाल केंद्र के पास कुर्मी को आदिवासी का दर्जा देने का कोई मामला लंबित नहीं है, क्योंकि राज्य सरकार ने यह कहते हुए पत्र वापस ले लिया है कि इस पर विचार करने की आवश्यता नहीं है.
लोकसभा चुनाव में मोदी चेहरा होंगे, यह तय है. विधानसभा चुनाव में भाजपा का चेहरा कौन होगा?
नरेंद्र मोदी लोकतांत्रित तरीके से चुने हुए प्रधानमंत्री है, लेकिन कुल मिलाकर पार्टी चुनाव लड़ती है. किस राज्य के लिए क्या रणनीति होगी. इसे पार्टी तय करेगी.
झारखंड में अफसरशाही भी बदनाम हुई है. कई बड़े अफसरों के नाम बड़े घोटाले-घपले में आये हैं. आप राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं, यहां की अफसरशाही को लेकर क्या नजरिया है.
आईना को दोष देने की आवश्यकता नहीं है. चेहरा को देखना चाहिए. आईना तो वही दिखायेगा, जो आपका है. जो बातें सामने आ रही हैं, मुझे लगता है कि इससे हर स्तर पर प्रयास होना चाहिए कि ऐसी चीजों को सावधानीपूर्वक कैसे ठीक करें, ताकि ऐसी स्थिति नहीं बने. काम-काज के मामले में जो यहां की चर्चा हो रही है, वह अच्छी नहीं है.
चर्चा है कि आप चाईबासा से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं?
हंसते हुए…. क्या चर्चा थी कि हम खूंटी से चुनाव लड़ेंगे. पार्टी ने तय किया. मैंने कभी किसी से कहा नहीं कि लोकसभा का चुनाव लड़ूंगा या नहीं लड़ूंगा. पार्टी ने तय किया. गॉसिप कॉरिडोर खुला रहता है. लोग चर्चा करते रहते हैं.
संगठन का कुछ हाल बतायें. पार्टी अलग-अलग खेमे में बंटी है. राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों का अपना-अपना खेमा है?
कुछ चीजें ऐसी दिखती है, लेकिन पार्टी तो एक ही है. मानव समूह है. परिवार में भी दो लोग बात करते हैं, तो इधर- उधर बातें सामने आती हैं. इसमें संदेह की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए. अगर माता-पिता बात करते हैं, तो यह संदेश नहीं होना चाहिए कि क्या बात कर रहे हैं. इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए, वे क्या बात कर रहे हैं. जो बात कर रहे हैं, परिवार के हित में ही होगा.
मुख्यमंत्री के रूप में काम का ज्यादा दबाव या चुनौती रही या केंद्रीय मंत्री के रूप में?
देखिये दबाव किसी में नहीं रहा. अगर आप दायित्व बोध के साथ काम करते हैं, तो आपको व्याकुलता रहती है कि यह नीचे तक कैसे पहुंचे. जिनके लिए योजना बनी है, उन तक पहुंच रहा है कि नहीं, यह जरूरी है. मुझे दोनों जगह से ही काम करने का अवसर मिला. हां फेडरल गवर्नेंस सिस्टम में राज्यों को ज्यादा अधिकार रहता है. ओवर ऑल देश के मामले में हम ज्यादा संवेदनशील रहते हैं. राज्य में अच्छा काम हो, इसकी चिंता ज्यादा करना चाहिए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कैबिनेट में सहयोगी के रूप में काम करते हुए क्या अलग अनुभव रहा. सुना है कि प्रधानमंत्री एक-एक मंत्रियों को काम का क्लोज मॉनिटरिंग करते हैं?
प्रधानमंत्री आउटकम बेस्ड हैं. फोकस्ड हैं. विजन के साथ काम करनेवाले हैं. टीम वर्क पर विश्वास करते हैं. समन्वय के साथ यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि देश के संपूर्ण विकास के लिए सभी मंत्रालय कैसे अपने दायित्व से कार्य करें. इस दृष्टि से कई चीजों को समय-समय पर चर्चा में लाकर इन विषय पर विचार-विमर्श करते हैं. जैसे एकलव्य मॉडल विद्यालय बना है. इसके तहत 740 विद्यालय बन रहे हैं. इसे लेकर नयी नीति बनायी गयी है. ट्राइबल के लिए फोकस बनाया गया है. इसे लेकर नीतिगत फैसला लिया गया है. इसके तहत टीचर्स केंद्र सरकार बहाल करेगी. पूरा खर्च भारत सरकार वहन करेगी. यह एक विजन है. शिक्षा में तुरंत परिणाम नहीं आता है. इसका परिणाम भविष्य में दिखेगा.
बिहार सरकार ने जातीय जनगणना करायी है , देश स्तर और झारखंड में भी इसकी मांग हो रही है. एनडीए घटक दल भी मांग कर थे, आपकी क्या राय है?
राजनीति में अभी जातीय जनगणना के माध्यम से फैसला लने की मांग हो रही है. हमें ऐसे लोगों की संख्या देखने की जरूरत है जिनकी जनसंख्या सबसे कम है. अगर इसी तरह सवाल उठते रहेंगे, तो इनकी आवाज दब जायेगी. देश में सबसे कम संख्या वाले लोग हैं, उनकी गणना होनी चाहिए. इसके बाद में देश की नीति क्या है, इस पर चर्चा होनी चाहिए. आप जातीय जनगणना पर राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित करना चाहते हैं. यह निजी तरीके से सुविधा लेने की बात है. मुझे लगता है कि देश में ऐसे लोगों को नजरअंदाज करना चाहिए. मोदी जी चाहते हैं कि जिनकी संख्या कम है, उनकी आवाज उठे. अब जैसे आदिम जनजाति हैं. इसके बारे में नौ ऐसे समुदाय हैं, जो ट्राइबल लिस्ट में नहीं है. आजादी के 75 साल बीतने के बाद भी इनको अधिकार नहीं मिला. इसका दोष हम किसको देंगे.
देश में ट्राइबल की मूल समस्या क्या है? इनके लिए जनजातीय मंत्रालय की ओर से क्या कदम उठाये जा रहे हैं?
ट्राइब्लस की मूल समस्या को डेमोग्राफिक नहीं, बल्कि ज्योग्राफिक तरीके से देखना चाहिए. ज्योग्राफिक तरीके से देखने पर पता चलता है कि वे किस परिस्थिति में कैसी जगहों पर रहते हैं. इन तक हमारा ध्यान नहीं जाता है. झारखंड की आदिम जनजातियों के लिए मंत्रालय ने 15 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है, ताकि उनको मिलने वाली सारी सुविधाओं को उन तक पहुंचाया जाये. आदिवासियों की दूसरी बड़ी समस्या शिक्षा व जागरूकता की कमी है. अगर ट्राइबल्स के पास सिस्टम नहीं पहुंच रहा है, तो यह हमारी समस्या है. केंद्र सरकार ने बॉर्डर विलेज प्रोग्राम शुरू किया है. इसमें 99 प्रतिशत गांव आदिवासियों के हैं. वह अपनी जीवन पद्धति व परपंरा के लिए उस जगह वजूद के साथ रह रहे हैं. यह अपना वजूद खोना नहीं चाहते हैं. इनके लिए केंद्र सरकार ने कार्यक्रम बनाया है, ताकि इन्हें सुविधाएं मिल सके.
हेमंत सोरेन सरकार का कहना है कि सरना धर्म कोड, ओबीसी आरक्षण जैसे मामले केंद्र सरकार लटका रही है?
यदि आप इसकी तह पर जायेंगे तो यह ध्यान में आ जायेगा कि वह इस विषय पर कितना गंभीर हैं. ट्राइबल की पहचान परंपरा व उसके आचरण से होती है , न कि सिर्फ धर्म से. देश में जनजातियों के 700 से अधिक समुदाय हैं. इनकी परंपरा व आचरण को परिभाषित किया गया है. इस तरह के विषय को सिर्फ एक प्रदेश से जोड़ कर देखना उचित नहीं होता है. सिर्फ झारखंड में ही ट्राइबल होते और यह विषय आता, तो निर्णय लिया जा सकता है. देश में ट्राइबल के 700 समूह हैं. सभी की अलग-अलग परंपरा है. सभी को एक तरीके से धर्म के आधार पर जोड़ना सही नहीं है. यह न तो संवैधानिक होगा और न ही जनजातीय के हित में. इसके लिए देश में एक फोरम बना कर सारे ट्राइबल के हितों को ध्यान में रखते हुए समग्रता के साथ विचार करने की जरूरत है. ये मुद्दे राजनीतिक नहीं हैं. सभी की धार्मिक स्वतंत्रता है, लेकिन इसे सिर्फ इसी से जोड़ कर नहीं देख सकते हैं. हमें यह भी ध्यान देना चाहिए कि इस मांग के पीछे उनकी मंशा क्या है? हम आदिवासी को एकजुट रहना देखता चाहते हैं कि नहीं? ऐसे में इस विषय पर वृहत फोरम पर बात करनी चाहिए. सिर्फ एक राज्य की बात करना सही नहीं होगा.
केंद्र सरकार ने आदिवासी नायकों को सम्मान दिया, समाज को प्रेरणा मिल रही
रांची केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि केंद्र सरकार ने देश भर के नायकों को सम्मान दिया. भगवान बिरसा मुंडा देश के नायक हैं, यह दुनिया को बताया. आदिवासी जल,जंगल और जमीन के लिए संघर्ष करने वाले हैं. इनके नायकत्व से समाज को रू-ब-रू कराया. केंद्र सरकार ने माटी पुत्रों को पहचान दी है. आज समाज इससे प्रेरणा ले रहा है. भारत के गौरव को स्थापित करने में महानायकों का क्या योगदान रहा, उसे हम जान रहे हैं. आज भी हमारे आदिवासी भाई-बहन देश की सीमा के आखिरी गांव में रहते हैं. वे देश की संप्रभुता और आजाद भारत के प्रतीक हैं. 12 हजार फीट की उंचाई पर रहने वाले आदिवासी वहां शान से देश का तिरंगा लहराते हैं. जनजातीय समाज ने इस देश को जोड़ने का काम किया है. प्रकृति के साथ मित्रता का पाठ पढ़ा रहे हैं.