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कौन हैं जानुम सिंह सोय? प्रधानमंत्री मोदी ने ‘मन की बात’ में की है झारखंड के इस विद्वान की चर्चा

जानुम सिंह सोय झारखंड के अति पिछड़े जिले पश्चिमी सिंहभूम से आते हैं. जनजातीय भाषा ‘हो’ के उत्थान के लिए वह पिछले चार दशक से काम कर रहे हैं. वर्ष 2012 में कोल्हान विश्वविद्यालय से रिटायर होने वाले डॉ सोय घाटशिला कॉलेज के हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष रह चुके हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को मन की बात (Mann Ki Baat) की. मन की बात में पीएम मोदी ने झारखंड के जानुम सिंह सोय (Padma Shri Janum Singh Soy) का भी जिक्र किया. जब से पीएम मोदी ने अपने मन की बात में जानुम सिंह सोय का जिक्र किया है, लोग उनके बारे में जानना चाह रहे हैं. आपको बता दें कि जानुम सिंह सोय झारखंड के रहने वाले हैं. वह जनजातीय भाषा के विद्वान हैं. भारत सरकार ने अभी-अभी उन्हें पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया है.

जानुम सिंह सोय से परिचित हो गया पूरा देश

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ में कहा कि टोटो, हो, कुइ, कुवी और मांडा जैसी जनजातीय भाषाओं पर काम करने वाले कई महानुभावों को पद्म पुरस्कार मिले हैं. यह हम सभी के लिए गर्व की बात है. उन्होंने कहा कि धानीराम टोटो, जानुम सिंह सोय और बी रामकृष्ण रेड्डी के नाम से अब पूरा देश परिचित हो गया है. जानुम सिंह सोय झारखंड के अति पिछड़े जिले पश्चिमी सिंहभूम से आते हैं. जनजातीय भाषा ‘हो’ के उत्थान के लिए वह पिछले चार दशक से काम कर रहे हैं.

इसी साल मिला है जानुम सिंह सोय को पद्म श्री पुरस्कार

जानुम सिंह सोय की इसी प्रतिबद्धता के लिए उन्हें भारत सरकार ने गणतंत्र दिवस पर देश का प्रतिष्ठित पद्म श्री पुरस्कार देने का ऐलान किया. जानुम सिंह सोय शुरू से ही हो भाषा के विकास के लिए प्रयासरत रहे. उनका रिसर्च पेपर भी ‘हो लोकगीत का साहित्यिक और सांस्कृतिक अध्ययन’ पर था. वर्ष 2012 में कोल्हान विश्वविद्यालय से रिटायर होने वाले डॉ सोय घाटशिला कॉलेज के हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष रह चुके हैं.

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हो भाषा के विद्वान हैं जानुम सिंह सोय

बता दें कि 8 अगस्त 1950 को जन्मे जानुम सिंह सोय ने हो जनजाति की संस्कृति और उनकी जीवनशैली पर 6 पुस्तकें लिखी हैं. हो भाषा को पीजी के पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए उन्होंने लंबा संघर्ष किया. वह 4 दशक से भी ज्यादा समय से हो भाषा के संरक्षण और प्रचार-प्रसार में जुटे हैं. 72 वर्षीय डॉ सोय की पुस्तकों में आधुनिक हो शिष्ट काव्य समेत 6 पुस्तकें हैं.

सोय ने युवाओं से की साहित्य जगत से जुड़ने की अपील

डॉ सोय कहते हैं कि हो भाषा के लिए उनका काम आगे भी जारी रहेगा. सम्मान मिलने से साहित्य जगत के लोगों को बल मिलता है. श्री सोय ने युवाओं से अपील की कि वे साहित्य जगत से जुड़ें. क्षेत्री भाषा के विकास के लिए काम करें. साहित्य के क्षेत्र में अगर आप लगातार काम करेंगे, तो उसके सुखद परिणाम भी आयेंगे.

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