रांची (गुरुस्वरूप मिश्रा) : झारखंड में डायन-बिसाही के शक में कई महिलाओं की जिंदगी नर्क बन गयी. कई महिलाओं को बेइंतहा जुल्म सहने पड़े. महिलाओं की हत्या तक कर दी गयी. अशिक्षा के कारण अंधविश्वास की जड़ें इतनी गहरी हो गयी हैं कि डायन कुप्रथा के कारण महिलाओं का जीना मुहाल हो गया है. इस पर रोक के लिए कानून है, लेकिन इसका सख्ती से पालन नहीं होता. झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार द्वारा डायन कुप्रथा उन्मूलन के लिए गरिमा परियोजना चलायी जा रही है. इसके जरिए पीड़ितों को चिन्हित कर उन्हें सखी मंडल से जोड़कर स्वावलंबी बनाया जा रहा है. इससे ये सामाजिक कलंक धीरे-धीरे धुल रहा है. पढ़िए कारण, दुष्परिणाम, समाधान और पीड़ितों की जुबानी डायन-बिसाही के दर्द की स्याह कहानी.
बोकारो जिले के डुमरी प्रखंड की विमला कुजूर कभी डायन के नाम पर काफी प्रताड़ित हुई थीं. सामाजिक बहिष्कार का दंश तक झेलना पड़ा था. वर्ष 2019 में डायन कुप्रथा के खिलाफ लोगों को जागरूक करने के लिए गांव में नुक्कड़ टीम आयी थी. विमला ने इन्हें पूरी कहानी बतायी. टीम के सदस्यों ने ग्रामीणों को जागरूक किया कि डायन कहकर किसी को प्रताड़ित करना कानूनन जुर्म है. जेल भी हो सकती है. इसके बाद ग्रामीणों में भी परिवर्तन आया. अब ग्रामीणों ने विमला को डायन कहकर प्रताड़ित करना बंद कर दिया. विमला अब सम्मान का जिंदगी जी रही हैं.
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पिछले छह साल से डायन के नाम पर प्रताड़ित हो रही थी. फुफेरी भाभी ने ही उनका जीना मुहाल कर रखा था. फुफेरी भाभी के नाती को निमोनिया था. इसका इलाज नहीं कराकर ओझा-गुणी के चक्कर में पड़ी रहीं और उन्हें डायन कह कर प्रताड़ित करने लगीं. बाहर आने-जाने और लोगों से बातचीत करने पर रोक लगा दिया गया. इससे अपने घर में ही जिंदगी कैद-सी हो गयी थी. दिव्यांग पति और 8 बच्चों के साथ जीवन गुजर-बसर करने वाली यासमीन निशा के चेहरे पर आज मुस्कान है. गरिमा परियोजना के तहत डायन कुप्रथा के खिलाफ नुक्कड़ नाटक टीम को उन्होंने इसकी जानकारी दी. इसके बाद सखी मंडल की विभिन्न योजनाओं से जुड़ने के बाद उनकी जिंदगी में बदलाव आने लगा.
डायन के नाम पर इतना प्रताड़ित किया गया कि नकली आंख तक लगानी पड़ी. ग्रामीणों ने डायन के नाम पर उनसे मारपीट की. इसमें आंख में चोट लगी और रोशनी तक चली गयी. इससे मानसिक स्थिति के साथ-साथ इनकी आर्थिक स्थिति भी खराब हो गयी. इस दोहरी परेशानी से बाहर निकालने में सखी मंडल की दीदियां वरदान साबित हुईं. आज अपने समाज में वह सम्मान से जी रही हैं. ये दर्द है सिमडेगा के अंबापानी की हेलेन लकड़ा का. वह कहती हैं कि गरिमा प्रोजेक्ट ने उन्हें नयी जिंदगी दी है.
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15 साल पहले पति गुजर गये. इसके साथ ही उन पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. गोतिया व घरवालों ने उन्हें डायन का आरोप लगाकर परेशान करना शुरू कर दिया. मारपीट करने लगे. सखी मंडल से जुड़ने के बाद उनके जीवन में गजब का परिवर्तन हुआ. आज वे अपने पैरों पर खड़ी हैं. ये कहते बोकारो जिले के हंसलता गांव की 43 वर्षीया गायत्री देवी का गला रुंध जाता है. कहती हैं कि गरिमा परियोजना ने उन्हें गरिमा प्रदान की है.
झारखंड में 2015 से अक्टूबर 2020 तक डायन बिसाही के आरोप में 211 महिलाओं की हत्या की गयी है. इनमें सर्वाधिक चाईबासा की 40, गुमला की 32, खूंटी की 29, सिमडेगा की 22 और रांची की 20 महिलाएं शामिल हैं. झारखंड पुलिस के रिकॉर्ड में वर्ष 2015 से अक्तूबर 2020 तक 4658 डायन अधिनियम से जुड़े मामले विभिन्न जिलों के थानों में दर्ज किये गये हैं. इनमें सबसे ज्यादा गढ़वा में 1278, पलामू में 446, हजारीबाग में 406, गिरिडीह में 387, देवघर में 316, गोड्डा में 236 मामले दर्ज किये गये हैं यानी हर वर्ष डायन बिसाही के आरोप में प्रताड़ना और हत्या के औसतन 931 मामले सामने आते हैं. इस सामाजिक कुरीति को खत्म करने के लिए ‘डायन प्रथा प्रतिरोध अधिनियम-2001’ लागू है, लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि कड़ाई से इसका पालन नहीं होता.
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डायन बिसाही के नाम पर महिलाओं को तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाता है. महिलाओं से मारपीट की जाती है. मल-मूत्र पिलाया जाता है. निर्वस्त्र कर उनके साथ दुराचार किया जाता है. उनकी हत्या तक कर दी जाती है. उनके परिवार के लोगों को प्रताड़ित कर सामाजिक तौर पर हुक्का-पानी बंद कर दिया जाता है. महिलाओं को जीना मुश्किल कर दिया जाता है. घर से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है. पुलिस को महिला अपराध के ऐसे मामलों में सख्ती बरतने की जरूरत है.
पीड़िता विधवा है, तो ऐसे में उसकी संपत्ति हड़पने के लिए उसके नाते-रिश्तेदार व दबंग प्रवृत्ति के लोग उसे डायन घोषित कर देते हैं और उसे प्रताड़ित करते हैं या फिर दूसरे लोगों के जरिये प्रताड़ित करवाते हैं. नि:संतान दंपती के साथ भी संपत्ति हड़पने को लेकर ऐसा किया जाता है, ताकि सामाजिक छवि खराब कर उसकी संपत्ति पर कब्जा किया जा सके. पुलिस ऐसे मामलों में शिकायत के बाद गंभीरता बरते, तो पीड़ित महिलाओं को काफी राहत मिल सकती है.
पुलिस अधिकारियों की मानें, तो अधिकतर घटनाओं में यह बात सामने आती है कि किसी का बच्चा बीमार है. किसी का बच्चा या घर के लोग बीमारी की वजह से मर जाते हैं, तो अशिक्षित लोग अंधविश्वास में ओझा-गुणी के पास झाड़-फूंक के लिए चले जाते हैं. वहां ओझा गुणी गांव के किसी महिला या पुरुष का नाम बता देता है कि उसने जादू टोना किया है. गुस्से में लोग उस व्यक्ति या महिला को प्रताड़ित करने लगते हैं और उसकी हत्या तक कर देते हैं. अशिक्षा के कारण अंधविश्वास में डायन-बिसाही के शक में महिलाओं की जिंदगी नर्क बन जा रही है. ऐसे में कड़ी कानूनी कार्रवाई हो तो काफी हद तक इन मामलों पर रोक संभव है.
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गढ़वा 09 1278
पलामू 07 446
हजारीबाग 01 406
गिरिडीह 04 387
देवघर 01 316
चतरा 02 251
गोड्डा 00 236
जामताड़ा 01 159
बोकारो 01 126
साहिबगंज 01 120
लातेहार 03 112
गुमला 32 107
रांची 20 96
रामगढ़ 01 92
लोहरदगा 03 77
कोडरमा 00 76
चाईबासा 40 62
धनबाद 00 61
पाकुड़ 04 50
दुमका 07 49
जमशेदपुर 09 44
खूंटी 29 40
सिमडेगा 22 32
सरायकेला 08 35
झारखंड में डायन कुप्रथा उन्मूलन के लिए जेएसएलपीएस (झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी) द्वारा ‘गरिमा परियोजना’ चलायी जा रही है. झारखंड के 7 जिलों में इसके तहत पीड़ित महिलाओं को न सिर्फ चिन्हित किया जा रहा है, बल्कि इन्हें सखी मंडल से जोड़कर स्वावलंबी बनाकर मान-सम्मान बढ़ाया जा रहा है. परियोजना का लक्ष्य डायन कुप्रथा से प्रभावित क्षेत्रों की महिलाओं का आर्थिक एवं सामाजिक विकास कर गरिमामय जीवन देना है. डायन कुप्रथा की पीड़ित महिलाओं को काउंसेलिंग, कानूनी सहायता, मनोवैज्ञानिक काउंसेलिंग समेत अन्य सहायता के जरिए मुख्यधारा से जोड़ा जा रहा है.
झारखंड में अब तक करीब 933 डायन कुप्रथा से पीड़ित महिलाओं की पहचान कर ली गयी है. इनमें करीब 438 चिन्हित पीड़ित महिलाओं को सखी मंडल के जरिए आजीविका के विभिन्न साधनों से जोड़ा गया है. करीब 567 चिन्हित महिलाओं की मनोचिकित्सकीय काउंसेलिंग की गयी है.
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स्कूली बच्चों को बनाएं जागरूकता एंबेसडर: डॉ रवि रंजन, मुख्य न्यायाधीश
झारखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन कहते हैं कि 21वीं सदी में भी डायन कुप्रथा के जरिए महिलाओं से असमानता एवं भेदभाव किया जाना दुखद है. जागरूकता एवं शिक्षा की कमी ऐसी कुप्रथाओं को बढ़ावा देती हैं. स्कूली बच्चों को डायन कुप्रथा समाप्त करने के लिए ब्रांड एंबेसडर के रूप में तैयार करना चाहिए, ताकि वे गांव में जागरूकता एंबेसडर बन सकें. झालसा के जरिए राज्यभर में ऐसी सामाजिक कुप्रथाओं को जड़ से खत्म करने के लिए कार्य किया जा रहा है.
झारखंड हाईकोर्ट के न्यायाधीश अपरेश सिंह ने कहते हैं कि डायन कुप्रथा को समाप्त करने के लिए शिक्षा एवं कानूनी जानकारी लोगों तक पहुंचाने की जरूरत है. डायन कुप्रथा को खत्म करने के लिए कई कानून बनाये गये हैं. झालसा लोगों को जागरूक करने का कार्य कर रही है.
डायन कुप्रथा पर सामाजिक कार्य के लिए पद्मश्री से सम्मानित छुटनी देवी कहती हैं कि एक वक्त था, जब डायन के रूप में गांव के लोगों ने उन्हें भी मारने की कोशिश की थी, लेकिन बुलंद हौसले से उन्होंने इसका सामना किया. आज करीब 145 डायन कुप्रथा से पीड़ित महिलाओं को मुख्यधारा में ला चुकी हैं. जिन्हें गांव में डायन कहकर प्रताड़ित किया जाता था. 2023 तक झारखंड को डायन कुप्रथा मुक्त बनाने की कोशिश की जायेगी.
झारखंड के ग्रामीण विकास सचिव डॉ मनीष रंजन कहते हैं कि गरिमा परियोजना एक शुरुआत है. उनका लक्ष्य झारखंड को डायन कुप्रथा मुक्त बनाना है. इसके लिए जल्द ही जेंडर मंच बनाया जायेगा और अंधविश्वास एवं भेदभाव को दूर कर लोगों को जागरूक किया जायेगा. सखी मंडल की बहनों द्वारा नुक्कड़ नाटक के जरिए प्रभावित गांवों में जागरूकता अभियान चलाया जाएगा. पीड़ितों को सुरक्षा व काउंसेलिंग की जायेगी. पुनर्वास पर भी काम किया जायेगा और आजीविका से जोड़ा जायेगा. इस तरह डायन कुप्रथा मुक्त पंचायत का निर्माण कर इसे जड़ से खत्म किया जायेगा. आने वाले दिनों में झारखंड की करीब 5000 डायन कुप्रथा से पीड़ित महिलाओं को लाभान्वित किया जायेगा.
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सीआईपी (केंद्रीय मन: चिकित्सा संस्थान, कांके) के निदेशक डॉ बासुदेव राम कहते हैं कि गरिमा परियोजना के अंतर्गत सीआईपी मानसिक स्वास्थ्य एवं मनोचिकित्सकीय सहयोग के लिए कार्य करेगा. पीड़ित महिलाओं को नया जीवन देने में मानसिक स्वास्थ्य की पहल की जायेगी. मानसिक स्वास्थ्य काउंसेलिंग के लिए साआईपी के 15 हेल्पलाइन नंबर 24 घंटे कार्य़ कर रहे हैं.
यूजीसी वीमेंस सेंटर की प्रमुख डॉ सुनीता रॉय ने का मानना है कि समाज को शिक्षित करने से ही डायन कुप्रथा का उन्मूलन संभव है. पीड़ित महिलाओं को प्रशिक्षित कर उन्हें सशक्त आजीविका से जोड़ना होगा. ग्रामीण इलाके से ओझा गुणी जैसे अंधविश्वास की जड़ों को खत्म करने के लिए शिक्षा बेहद जरूरी है. इसके लिए ग्रामीण महिलाओं को जागरूक करना अनिवार्य है. महिलाएं शिक्षित होंगी और आर्थिक रूप से सशक्त होंगी, तो यह कुप्रथा खत्म हो जायेगी. वे कहती हैं कि किन्नरों को भी इस जागरूकता अभियान से जोड़ने की जरूरत है ताकि उनकी आजीविका की भी व्यवस्था हो सके.
जेएसएलपीएस (झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी) की सीईओ नैंसी सहाय बताती हैं कि गरिमा परियोजना के जरिए राज्य में डायन कुप्रथा को जड़ से मिटाने के लिए कार्य किया जा रहा है. पीड़ित महिलाओं की पहचान करना और उन्हें सखी मंडल से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाना है. इतना ही नहीं, इसके जरिए उन्हें नयी जिंदगी देना है और इस दिशा में कार्य किया जा रहा है.
रिपोर्ट: गुरुस्वरूप मिश्रा