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Astrology: कुंडली में मौजूद केन्द्राधिपति दोष करियर को कर देता है बर्बाद, जानें लक्षण और अशुभ संकेत

Astrology: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब किसी ग्रह को एक केन्द्र एवं एक मारक भाव का स्वामित्व प्राप्त हो तो उस ग्रह को केन्द्राधिपति दोष लगता है, जिसके विचारणीय पहलू निम्नवत है.

Astrology: वैदिक ज्योतिष के अनुसार किसी व्यक्ति के कुंडली में ग्रहों कि स्थिति और कुंडली में मौजूद दोष जानने के लिए नाम, जन्मतिथि, जन्म का समय एवं जन्म स्थान के माध्यम से आंकलन किया जाता है. कुंडली में कोई भी दोष होना अच्छा नहीं माना जाता है. कहा जाता है कि जब कुंडली में ग्रह दोष लगता है तो व्यक्ति की जीवन नरकीय हो जाता है. जिन लोगों की कुंडली में ग्रह दोष रहता है, ऐसे लोग विभिन्न प्रकार की समास्याओं का सामना करते है. जन्म कुंडली में कुल 12 भाव होते हैं, जो उस व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं. जब कुंडली के भावों में शनि, राहु और मंगल स्थित होते हैं तो वे जातक की कुंडली को नुकसान पहुंचाते हैं. वहीं कुंडली में मौजूद शुभ ग्रहों के कारण बनने वाले दोष को केन्द्राधिपति दोष कहा जाता है. आइए जानते हैं कि यह दोष हमारी जन्म कुंडली को किस प्रकार प्रभावित करता है…

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब किसी ग्रह को एक केन्द्र एवं एक मारक भाव का स्वामित्व प्राप्त हो तो उस ग्रह को केन्द्राधिपति दोष लगता है, जिसके विचारणीय पहलू निम्नवत है. केन्द्राधिपति दोष नैसर्गिक शुभ ग्रहों को लगता है, जिसमे सबसे अधिक दोष गुरु को, गुरु से कम शुक्र को, शुक्र से कम दोष बुध को बुध से कम दोष चन्द्रमा को लगता है. किसी जातक की कुंडली में इस दोष का निर्माण तब होता है जब बृहस्पति, शुक्र, बुध तथा शुक्ल पक्ष चंद्रमा जैसे लाभकारी ग्रह केंद्र भाव के स्वामी बन जाते हैं. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक केंद्र भावों (पहले, चौथे, सातवें और दसवें भाव) के स्वामी तथा त्रिकोण भावों (पहले, पांचवें और नौवें भाव) के स्वामी हमेशा शुभ परिणाम देते हैं, लेकिन इस दोष के प्रभाव में केंद्रों के स्वामी नकारात्मक परिणाम देने लगते हैं.

कुंडली में अशुभ होता है केन्द्राधिपति दोष

देव गुरु बृहस्पति: कुंडली में जब केंद्र भाव यानी कि पहले, चौथे, सातवें और दसवें भाव में बृहस्पति स्थित होते है तो केन्द्राधिपति दोष का निर्माण होता है. मिथुन और कन्या राशि पर बृहस्पति की स्थिति का प्रभाव अधिक होता है. मिथुन लग्न में गुरु को सप्तम एवं दशम का स्वामित्व के कारण केन्द्राधिपति दोष लगता है.

बुध: कुंडली के पहले, चौथे, सातवें और दसवें भाव में जब बुध स्थित होते हैं, तो केन्द्राधिपति दोष लगता है. लेकिन पहला भाव केंद्र और त्रिकोण दोनों होता है, इसलिए यह दोष पहले भाव में नहीं होगा. लेकिन जब बुध, लग्न धनु राशि के चौथे भाव में हो तो शिक्षा में बाधाएं उत्पन्न होती है. वहीं यदि बुध की महादशा चल रही हो और बुध सातवें भाव में स्थित है तो यह संबंधों को प्रभावित करेंगे. इसी प्रकार किसी जातक की कुंडली में बुध दसवें भाव में स्थित है, तो यह करियर में समस्याएं खड़ी करेंगे.

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शुक्र: किसी जातक की कुंडली में शुक्र पहले, चौथे, सातवें और दसवें भाव में स्थित है तो केन्द्राधिपति दोष लगता है. मेष, कर्क और वृश्चिक लग्न के लोग इस दोष से अधिक प्रभावित होते हैं. यदि किसी व्यक्ति पर शुक्र की महादशा चल रही है और उसका लग्न मेष हो और उसकी कुंडली में सातवें भाव में शुक्र बैठा हो तो उसे व्यवसाय और उनके संबंधों में दिक्कतें होती हैं.

क्या होता है केन्द्राधिपति दोष

  • मेष लग्न मे शुक्र को द्वितीय एवं सप्तम भाव का स्वामी होने से केन्द्राधिपति दोष लगता है.
  • कन्या लग्न मे गुरु को चतुर्थ एवं सप्तम भाव का स्वामी होने से केन्द्राधिपति दोष लगता है.
  • तुला लग्न में मंगल को द्वितीय एवं सप्तम का स्वामित्व प्राप्त है. इसलिए नैसर्गिक पाप ग्रह होने के कारण मंगल को केन्द्राधिपति दोष नहीं लगता है.
  • वृश्चिक लग्न में शुक्र को सप्तमेश होने के कारण केन्द्राधपति दोष लगता है.
  • धनु लग्न में बुध को सप्तम एवं दशम का स्वामित्व होने के कारण केन्द्राधपति दोष लगता है.
  • मकर लग्न मे चन्द्रमा को सप्तम एवं केंद्रेश होने के कारण केन्द्राधपति दोष लग सकता है.
  • मीन लग्न मे बुध चतुर्थ एवं सप्तम भाव के स्वामी होने से केन्द्राधपति दोष लगता है. परंतु बुध पाप प्रभावित नहीं होना चाहिए.

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