हिंदू पंचांग का चौथा महीना आषाढ़ शनिवार, 22 जून से प्रारंभ हो चुका है. इस मास का नाम पूर्वाषाढ़ और उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के ऊपर रखा गया है, इसलिए इस महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा इन्हीं दो नक्षत्र में रहते हैं. शनिवार प्रातः आठ बजे सूर्य का आर्द्रा नक्षत्र से सम्मिलन के बाद मौसम करवट लेने लगा है. देश के ज्यादातर हिस्से में मॉनसून ने दस्तक दे दी है. दरअसल, तपती धरती को आषाढ़ माह ही शीतलता की बौछारों से तृप्त करता है.
सलिल पांडेय, मिर्जापुर
पूरे एक वर्ष में छह ऋतुएं होती हैं. इन ऋतुओं के रूप-रंग तथा स्वभाव पर गहरायी से नजर डाली जाये तो ये सभी ऋतुएं षट्चक्र बनाती उसी तरह दिखती हैं जैसे मनुष्य की प्रवृतियां देशकाल और परिस्थिति के चलते अपने जीवन की राह बनाती हैं. मनुष्य के समकक्ष यदि ऋतुओं को खड़ा किया जाये, तो धर्मग्रंथों में भी उल्लेखित है कि इन्हीं ऋतुओं के बीच प्रतिदिन दिन-रात का चक्र चलता रहता है. इस तरह का उल्लेख महाभारत ग्रंथ के अनुशासन पर्व में भी किया गया है.
मनुष्य के कर्मों का सबसे प्रामाणिक लेखा-जोखा ऋतुओं और उनके अधीन रहने वाले दिन-रात के समय के पास रहता है. ऐसी स्थिति में इन छह ऋतुओं के चाल-चरित्र का चित्र बनाया जाये, तो सनातन संस्कृति के नये सौर वर्ष का चैत्र-वैशाख तथा शरद ऋतु का आश्विन तथा कार्तिक माह का रूप रंग बड़ा सुहावना रहता है. इसमें वसंत ऋतु के चैत्र शुक्ल नवमी को भारत के रग-रग में समाये मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जन्म लेते हैं, जबकि शरद ऋतु में वे अपने युग के खलनायक रावण का वध करते हैं. स्वाभाविक है कि यह दोनों सुहावनी उपलब्धियां हैं. लेकिन सांसारिक चक्र में विपरीत परिस्थितियों से जूझने के लिए कठोर निर्णय लेने पड़ते हैं.
द्वापरयुग में वंशी वाले कृष्ण को भी महाभारत के मैदान में कठोर ही निर्णय नहीं, बल्कि उग्र स्वभाव का बनना पड़ा. यही उग्रता ग्रीष्म ऋतु के हाथों में समाहित है. लुभावने वाला सूर्य अपना रूप बदलता है और उसकी किरणें अत्यधिक ज्यादा क्रियाशील होकर यह संदेश देती हैं कि जीवन में ऊष्मता भी होनी चाहिए. यानी मनुष्य युवावस्था में अत्यधिक क्रियाशील रहेगा तभी ‘वीर भोग्या वसुंधरा’ उसके हाथ लग सकेगी. ग्रीष्म ऋतु के इन दो महीने ज्येष्ठ तथा आषाढ़ महीने को यदि श्रीराम एवं लक्ष्मण का दर्जा मान लिया जाये, तो दोनों भाइयों ने इसी ऊर्जा के बल रावण को परास्त किया था. सूर्यवंशी राम-लक्ष्मण किसी उद्देश्य से निकलेंगे तो प्रकृति उनका साथ देने के लिए पलक-पावड़े तो बिछायेगी ही.
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ज्येष्ठ महीने का ही समय था जब ब्रह्मा अपनी पुत्री पर आसक्त हुए थे तो पुत्री मृगी बन गयी, तो ब्रह्मा मृग बन गये. इससे क्षुब्ध होकर महादेव ने ब्रह्मा बने मृग का सिर काटने के लिए शस्त्र चलाया. यही मृगशिरा नक्षत्र है. ज्येष्ठ महीने और कभी-कभी आषाढ़ माह में मृगशिरा नक्षत्र लगता है.अनुचित कामाग्नि के खिलाफ महादेव के इस क्रोध का असर ही है कि ऋतु का मिजाज गर्म होने लगता है. दयालु महादेव तपते-झुलसते जीव-जंतुओं एवं प्रकृति पर दया कर आर्द्र होते हैं. उनके आर्द्र होते आर्द्रा नक्षत्र प्रकट होता है और फिर संवेदनशील होकर वर्षा ऋतु झमाझम पानी लेकर दौड़ पड़ती है. इसका उल्लेख ‘शिव महिम्न स्तोत्र’ में किया गया है.
आषाढ़ ब्रह्मचर्यदंड को भी कहते हैं. यही कारण है कि इस महीने की विविध तिथियों में आराधना साधना ऋषि-मुनि प्रारंभ कर देते हैं. ऋतुओं में शिशिर ऋतु थोड़ा विश्राम लेता है. दिन छोटा होने लगता है, लेकिन आगे हेमंत ऋतु पुनः समन्वयवादी स्वरूप लेकर उपस्थित होता है.
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वर्तमान समय में 22 जून को ज्येष्ठ की विदाई के साथ आषाढ़ मास की शुरुआत हो चुकी है. शनिवार को प्रातः आठ बजे सूर्य का आर्द्रा नक्षत्र से सम्मिलन हो चुका है. यद्यपि 22 को ज्येष्ठ पूर्णिमा है, लेकिन प्रातः 6:20 से आषाढ़ की प्रतिपदा शुरू होने के साथ मौसम करवट लेने लगा है. तपती धरती को आषाढ़ ही शीतलता की बौछारों के आगमन का अवसर देना शुरू करता है. बहरहाल प्रकृति के साथ छेड़छाड़ से व्यतिक्रम तो उत्पन्न हो ही रहा है. मनुष्य का प्रथम दायित्व प्रकृति संरक्षण का है, लेकिन जब उसकी ओर से नकारात्मक रवैया अपनाया जा रहा है तब प्रकृति भी एहसास करा रही है कि ‘हम भी कम नहीं हैं’ और ‘जैसा बोया जायेगा, वैसा ही काटने को मिलेगा’.