Bhishma Ashtami 2025: हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को एकोदिष्ट श्राद्ध के रूप मे मनाया जाता है.इस शुभ तिथि पर भीष्म अष्टमी मनाई जाती है. सनातन धर्म शास्त्रों में निहित है कि महाभारत के महान योद्धा भीष्म पितामह ने माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन ही अपने सात्विक शरीर का त्याग कर दिया था. इस शुभ अवसर पर भीष्म अष्टमी मनाई जाती है. ज्योतिषी शास्त्र के अनुसार भीष्म अष्टमी पर बड़े अच्छे और मंगलकारी योग बन रहे हैं.इन योग में जगत के पालनहार प्रभु श्री हरि की पूजा अर्चना करने से आपकी हर इच्छा पूर्ण होगी.वहीं आपको पितृ दोष से मोक्ष प्राप्त होगा साथ ही पितरों का तर्पण एवं पिंडदान किया जाता है.
भीष्म अष्टमी 2025 शुभ मुहूर्त
भीष्म अष्टमी तिथि: बुधवार, 05 फरवरी 2025
तिथि प्रारंभ: 05 फरवरी 2025, दोपहर 02:30 बजे
तिथि समाप्ति: 06 फरवरी 2025, दोपहर 12:35 बजे
पूजन का शुभ समय: 05 फरवरी 2025, प्रात: काल 11:26 बजे से दोपहर 01:38 बजे तक
बसंत पंचमी पर ऐसे करें मां सरस्वती का विसर्जन, इन मंत्रों का जाप जरूरी
भीष्म अष्टमी से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, महाभारत के युद्ध में बुरी तरह घायल होने के बाद भी भीष्म पितामह ने अपने इच्छामृत्यु के वरदान के कारण अपना सात्विक शरीर का त्याग नहीं किया था उन्होंने अपनी मृत्यु के लिए शुभ मुहूर्त का इंतजार था.हिंदू शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि सूर्यदेव साल में आधे समय दक्षिण दिशा की तरफ उपस्थित होते हैं, जिसे अशुभ समय माना जाता है.इस दौरान कोई भी मंगलकार्य नहीं किया जाता है.जब सूर्य उत्तर दिशा की तरफ बढ़ने लगते हैं, तो इसे उत्तरायण कहा जाता है, और यह मंगलकारी कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त होता है.भीष्म पितामह ने इसी शुभ काल को ध्यान में रखते हुए माघ शुक्ल अष्टमी के दिन शरीर का त्याग करने का संकल्प किया. इस दिन लोग उनकी आत्मा की शांति के लिए एकोदिष्ट श्राद्ध करते हैं और पितरों के उद्धार और मोक्ष के प्राप्ति का तर्पण करते हैं.
भीष्म पितामह की अंतिम शिक्षा क्या थी
भीष्म पितामह 18 दिनों तक बाणों की शय्या पर सोये रहे और मृत्यु से ठीक पहले धर्मराज युधिष्ठिर को जीवन के महत्वपूर्ण सिद्धांत की शिक्षा दी. उन्होंने धर्म, कर्तव्य, न्याय और नीतिशास्त्र के उपदेश की शिक्षा दिया था. जिन्हें आज भी “भीष्म नीति” के रूप में जाना जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार माघ शुक्ल अष्टमी के दिन, सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश करने के बाद , भीष्म पितामह ने अपने प्राण का त्याग कर दिया था.उनके महान बलिदान और अनुष्ठान को हम याद करते हुए हर वर्ष भीष्म अष्टमी का पर्व मनाते है.