Guru Grah Upay: जन्मकुंडली में गुरु को मजबूत होना बहुत जरुरी होता है गुरु अनुकूल नहीं होने पर व्यक्ति के जीवन में कई तरह से परेशानी बन जाता है.गुरु को वृहस्पति के नाम से जाना जाता है नवग्रह में गुरु को देवगुरु की प्रधानता दिया गया है.देवगुरु होने के कारण विद्वता प्रतिभा ,एवं ज्ञान प्राप्त होता है.
वृहस्पति कुंडली में में शुभ स्थान पर विराजमान होने पर व्यक्ति महान,तेजवान, बुद्धिमान तथा परम गुणवान एवम जगत के प्रसिद्ध होते है गुरु पुरुष प्रधान ग्रह है. इनको पिला रंग बहुत प्रिय है ज्ञान के क्षेत्र में इनकी तुलना किसी भी ग्रह से नहीं की जा सकती है.
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वृहस्पति का वाहन हाथी है हाथी वैभव तथा समृद्धि के सूचक होते है गुरु का स्वभाव मौन एवं शांत तरीके से रहना पसंद करते है.वृहस्पति इनको दो तत्व मिला हुआ है यह जल तत्व तथा अग्नि तत्व के होते है वृहस्पति उतर पूर्व कोण के स्वामी होते है.यह एक राशि में 13 महिना विराजमान होते है.
सौर मंडल में सबसे बड़ा ग्रह वृहस्पति ही है यह धनु राशि तथा मीन राशि के स्वामी है यह वृहस्पति सूर्य और चन्द्र, मंगल मित्र राशि है.बुध और शुक्र शत्रु राशि है और शनि -राहु -केतु इनके लिए बराबरी का ग्रह है जन्मकुंडली में नवम भाव का स्वामी होते है.
कमजोर गुरु के लक्षण
व्यक्ति के जन्मकुंडली में वृहस्पति कमजोर होने पर कई तरह से परेशानी बन जाता है अगर जन्मकुंडली में गुरु अनुकूल स्थिति में नहीं होने पर भाग्य साथ नहीं देता है.लक्ष्मी की प्राप्ति में कमी होता है.गुरु भाग्य के कारक ग्रह माना जाता है गुरु कमजोर होने पर कार्य में सफलता नहीं मिलती है विवाह होने में विलंब होता,पुत्र प्राप्ति में देर होता है,नौकरी होने में देर होता है अगर नौकरी लग जाती है उसमें स्थिरता नही हो पाता है कई बार बदलाव की स्थिति बनती है.पेट सम्बंधित समस्या जैसे गैस,अपच यह कमजोर गुरु के लक्षण होता है.शिक्षा में बाधा होता है,जन्मकुंडली में जिस भाव में वृहस्पति विराजमान होते है उस भाव का फल नष्ट कर देते है तथा जन्मकुंडली के जिसे भाव पर उनका दृष्टी बनता है उस भाव से सम्बंधित फल अनुकुल देते हैं.
जन्मकुंडली में वृहस्पति अनुकूल नहीं रहने पर व्यक्ति के शरीर के बनावट ठीक -ठाक नहीं होता है जैसे स्वास्थ्य नहीं होता है, कई तरह से परेशानी से ग्रस्त होते है जन्मकुंडली में गुरु दुसरे भाव में बैठा हो और लगन 06 ,09 ,10 भाव राशि की हो अर्थात पहला चौथा तीसरा या द्वादश भाव के होकर दुसरे भाव में बैठे है इस अवस्था में गुरु अनिष्टकारी होता है .
गुरु के अशुभ प्रभाव से कारण व्यक्ति के उपर प्रभावशील व्यक्ति का अभाव होता है, सहयोग नहीं मिल पाता है,सात्विकता की कमी होता है ,जुआ लॉटरी जैसे गलत गतिविधि में संगलन करवाता है.भौतिक सुख की कमी, महसूस होता है,हमेशा पैसा की समस्या बनी रहती है ,दांत सम्बन्धी समस्या बनता है,मुख से दुर्गंध आता हैं.
उपाय
जन्मकुंडली में गुरु के कमजोर होने पर गुरु ग्रह के प्रसन्न करने के दिए इनका शुभ रत्न पुखराज 5 कैरेट का सोना धातु में बनवाकर उसे शुद्ध करके गुरुवार के दिन धारण करें. जिसे आपके कुंडली में कमजोर वृहस्पति अनुकुल प्रभाव देगें.
प्रत्येक गुरुवार को भगवन विष्णु का पूजन करे तथा चनादाल या मुनक्का का प्रसाद में भोग लगाएं.
गुरु के मंत्र का जाप करें.
ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः इस मंत्र को प्रतिदिन सुबह में 108 बार जाप करें.
गुरुवार को पिला वस्त्र धारण करे, पिला चंदन मस्तक पर तिलक करे,हल्दी तथा पिला चावल ब्राह्मण को दान करे.
जन्मकुंडली, वास्तु, तथा व्रत त्यौहार से सम्बंधित किसी भी तरह से जानकारी प्राप्त करने हेतु दिए गए नंबर पर फोन करके जानकारी प्राप्त कर सकते है .
ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
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