Guru Purnima 2024 : ‘गुरु पूर्णिमा’ वह दिन है, जिस दिन शिष्य अपनी ‘संपूर्णता’ की सजगता में गुरु और ज्ञान के प्रति कृतज्ञता से भरा हुआ होता है, लेकिन उसकी कृतज्ञता ‘द्वैत’ की नहीं होती, वह कृतज्ञता ‘अद्वैत’ के प्रति होती है. ऐसी ही एक कहानी है.
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
एक गुरु जी के पास बहुत से लोग कुछ-न-कुछ समस्या लेकर आते रहते थे. एक बार कोई व्यक्ति उनके पास आया और कहा कि ‘मैं परीक्षा में असफल हो गया, इसलिए बहुत दुखी हूं.’ गुरु जी ने उससे कहा- ‘अरे तुम बड़े भाग्यशाली हो, जो तुम्हारे साथ ऐसा हुआ, अब तुम और अच्छे से पढ़ाई करोगे. फिर एक और व्यक्ति आये. उन्होंने कहा कि मेरी पत्नी मुझे छोड़कर चली गयी है, गुरु जी ने उसे भी वही उत्तर दिया कि ‘तुम बड़े भाग्यशाली हो, कम से कम अब तुम्हें इस बात का ज्ञान होगा कि स्त्रियों से कैसा व्यवहार करना चाहिए.’ सबसे बाद में एक शिष्य आया और कहा कि “गुरुदेव ‘मैं बहुत भाग्यशाली हूं, क्योंकि ‘आप’ मेरे जीवन में हैं”. गुरु जी ने उससे कुछ कहा नहीं, बल्कि जोर से एक थप्पड़ लगाया, वह शिष्य आनंद से नाचने लगा. दरअसल, उस शिष्य को गुरु के थप्पड़ से यह अनुभूति हुई कि ‘वह’ और ‘गुरु’ अलग नहीं हैं. वहां कोई ‘द्वैत’ नहीं है. जैसे एक नदी एक स्थान से दूसरे स्थान तक बहती है, लेकिन समुंदर अपने भीतर ही बहता रहता है, वैसे ही शिष्य के लिए गुरु पूर्णिमा का दिन अपनी संपूर्णता के प्रति कृतज्ञता का दिन है.
शिक्षा नहीं, दीक्षा देते हैं गुरु
एक शिक्षक शिक्षा देते हैं, लेकिन ‘गुरु’ दीक्षा देते हैं. गुरु आपको जानकारियों से नहीं भरते, बल्कि वे आपके भीतर जीवनी शक्ति जागृत करते हैं. गुरु की उपस्थिति में आपके शरीर का कण-कण जीवंत हो जाता है, उसी को दीक्षा कहते हैं. दीक्षा का अर्थ केवल जानकारी देना नहीं है, इसका अर्थ है ‘बुद्धिमत्ता का शिखर’ प्रदान करना. जब तक जीवन में विवेक नहीं उतरता, सहजता नहीं पनपती और प्रेम नहीं बहता, तब तक हमारा जीवन अधूरा रहता है. हमारे जीवन में विवेक, प्रज्ञा, सहजता और प्रेम तभी आता है, जब जीवन में ज्ञान हो, हम अंतर्मुखी हों और हमारा मन शांत हो, वही ‘गुरु तत्त्व’ है.
हमारा जीवन ही है गुरु तत्व
अपने जीवन पर प्रकाश डालिए. आपने जो भी सही या गलत किया है, उन अनुभवों से जीवन ने आपको बहुत कुछ सिखाया है. यदि आप अपने जीवन से नहीं सीखेंगे, तो इसका अर्थ है कि आपके जीवन में गुरु नहीं हैं. इसीलिए अपने जीवन को देखिए और जो ज्ञान जीवन ने आपको दिया है, उसका आदर कीजिए. हमारा जीवन ही गुरु तत्व है.
हमारा मन चंद्रमा से जुड़ा हुआ है, जब मन ज्ञान से परिपूर्ण होता है तब गुरु पूर्णिमा होती है. लेकिन जब हमारा मन, ज्ञान का आदर करना छोड़ देता है तब हमारे जीवन में अज्ञानता और अंधकार छाता है. तब पूर्णिमा नहीं रहती, अमावस्या आ जाती है.
जीवन से जो मिला है, उसका आदर करें
कई बार हम ही पूर्णता से अपना मुंह फेर लेते हैं, इच्छाओं की दौड़ में दौड़ने लगते हैं और ज्ञान का अनादर करने लगते हैं. देने वाला तो आपको दे ही रहा है, उसने आपको बहुत कुछ दिया है. आपको बहुत सारे आशीर्वाद दिये हैं. जब आप उन सभी का उपयोग करेंगे, तो आपको और अधिक आशीर्वाद दिया जायेगा. यदि आपको बोलना आता है, तो अपनी वाणी का उपयोग आरोप लगाने में या शिकायत करने में न करें, उसका ‘सदुपयोग’ करें. यदि आप शरीर से हृष्ट-पुष्ट हैं, तो सेवा कीजिए. इस तरह से आपको जो कुछ भी मिला है, उसका उपयोग समाजसेवा के लिए करें. ईश्वर संसार में ही रहते हैं, तो संसार की सेवा करना ही ईश्वर की पूजा करना है. ज्ञान का सम्मान करने से आपके जीवन में उन्नति आती है. जब आप इसके प्रति सजग हो जाते हैं, तो सहज ही आपमें कृतज्ञता भक्ति और प्रेम का भाव जागृत होने लगता है.
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जाग के देखिए, हमारे जीवन में कितनी मधुरता, निष्ठा और प्रेम है. हमारे भीतर जो होता है, हम उसी को अपने चारों ओर भी पाने लगते हैं और फिर वह हमसे अन्य दूसरे लोगों को मिलने लग जाता है. इस धरती पर जितने संत-महात्मा, पीर-पैगंबर हुए हैं, हो रहे हैं और आगे होने वाले हैं और उसके साथ ही आपके अपने भीतर जो ज्ञानी और जो बुद्ध, जो गुरु बैठे हैं, उन सभी के साथ अपने अभेद्य संबंध को जानना ही गुरु पूर्णिमा का संदेश है.