Jaya Kishori Bhajan: कोरोना वायरस को लेकर देश में लॉकडाउन है. इस समय अधिकतर लोग यूट्यूब पर सॉग सुनकर और भजन गाकर अपना समय काट रहे है. इस दौरान कथावाचक जया किशोरी (Jaya Kishori) की भजन यूट्यूब पर इन दिनों खुब देखा और सुना जा रहा है. जया किशोरी ने बचपन से ही कृष्ण भक्ति में लीन हो गईं थीं. सिर्फ 09 साल की उम्र में जया किशोरी ने संस्कृत में लिंगाष्टकम्, शिव-तांडव स्तोत्रम्, रामाष्टकम् आदि कई स्तोत्रों को गाना शुरू कर दिया था. इन्होंने कई भक्ति एल्बम में अपनी आवाज दी है. जया किशोरी (Jaya Kishori) ‘नानी बाई का मायरा, नरसी का भात’ कार्यक्रम करती हैं. इन्हें शुरुआती शिक्षा देने वाले गुरु गोविंदराम मिश्र ने राधा नाम दिया. भगवान श्री कृष्ण के भक्तों की संख्या आपार है. इनकी मनमोहक छवि किसी को भी अपनी तरफ आकर्षित कर लेती है.
जया किशोरी ने एक भजन में बताया है कि पति-पत्नी के रिश्ते में बहुत प्यार होता है. उन्होंने ने इस भजन के माध्यम से अपने दर्शकों को पति-पत्नी के रिश्ते के बारे में समझाया है. जया किशोरी ने कहा कि पति-पत्नी के रिश्ते में जहां बेहद प्यार होता है, वहीं किसी न किसी बात को लेकर नोकझोंक भी होती रहती है. कई बार ये नोकझोंक इतनी बढ़ जाती है कि पति-पत्नी गुस्सें में गलत कदम उठा लेते है. क्योंकि क्रोध के वश में आकर मनुष्य को कोई सुध नहीं रहती और ज्यादातर वह उन्हीं कार्यों को करता है, जिसे करने के बाद उसे पछताना पड़ता है. इस पर कथा वाचक जया किशोरी माता सती और भगवान शिव की एक पौराणिक कथा का जिक्र करते हुए कहती हैं कि पति पत्नी को कभी भी झगड़े के समय घर छोड़ कर नहीं जाना चाहिए, क्योंकि क्रोध के कारण बुद्धि सही स्थिति में नहीं रह पाती है. जिससे प्रेम संबंधों में खटास और दूरी आने लगती है. अगर व्यक्ति को कितना भी गुस्सा क्यों न आए. झगड़े के समय घर छोड़कर कभी न जाए.
जया किशोरी ने बताया कि इसी तरह क्रोध वश माता सती अपने पति भगवान शिव का घर छोड़ अपने पिता के यहां चली गईं थीं. भोलेनाथ के समझाने के बाद भी उन्होंने उनकी एक नहीं सुनी और गुस्से में कैलाश छोड़ कर चली गई. तब भगवान शिव को समझ आ गया था कि अब सती वापस नहीं आयेगी. ये घटना उस समय की है, जब उनके पिता द्वारा एक यज्ञ का आयोजन किया गया था. जिसमें शामिल होने के लिए वो पहुंची थी. उस दौरान सभा के समय तीनों देवों के आसन रखना जरूरी होते थे. चाहे उन्हें बुलाया गया हो या नहीं. माता सती जब अपने पिता के यहां पहुंची तो उन्होंने देखा कि ब्रह्मा और विष्णु का तो वहां आसन लगा है, लेकिन शिव का आसन नहीं है. अपने पती के इतने बड़े अपमान को वह सह नहीं पाई और पिता से इस बात की चर्चा की तो उनका और उनके पति का और अपमान किया गया.