17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

शिव की आराधना से दांपत्य जीवन में आती हैं खुशियां, 16 श्रृंगार से भर जाएगा वैवाहिक जीवन, ऐस करें पूजा

वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाना हो और कलह से निजात पाना हो तो नित्य भगवान शिव की अर्चना करते रहें. चार युगों- सतयुग, त्रैता, द्वापर व कलियुग की परिकल्पना वैदिक ग्रंथों में है. हर युग में शिव की महिमा रही है.

भगवान शिव सर्व कालिक देव हैं. सृष्टि की संरचना के मूल में देवों के देव महादेव को नकारा नहीं जाता है. भारतीय वांग्मय में अर्द्धनारीश्वर की आराधना का उल्लेख है. जन्म काल हों या मोक्ष काल – देवाधिदेव त्रिनेत्रधारी महादेव की सता कायम रहती है. शिव के साथ जब शिवा की स्तुति की जाती है, तो अर्चक को अतीव सुखानुभूति होती है. मन के सारे क्लेश मिट जाते हैं. आपसी द्वंद्व का अवसान हो जाता है. विवाह रूपी बंधन की सीख शिव पार्वती के वैवाहिक जीवन से लोगों को मिलती है. देवलोक की परंपरा को इहलोक में अवतरण किये जाने का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में सदियों से प्रवाहित है.

वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाना हो तो…

कहा गया है कि वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाना हो और कलह से निजात पाना हो तो नित्य भगवान शिव की अर्चना करते रहें. चार युगों- सतयुग, त्रैता, द्वापर व कलियुग की परिकल्पना वैदिक ग्रंथों में है. हर युग में शिव की महिमा रही है. वर्तमान समय में दांपत्य जीवन में कलह की घटनाएं हो रही हैं. पौराणिक ऋषियों व मनीषियों ने की मानें तो भगवान शिव व माता पार्वती जगत के नियंता हैं. इनकी पूजा करने से दांपत्य जीवन के कलह का अवसान हो जाता है. जब इस वसुधा पर कुछ नहीं था, तो आदि शक्ति परम पिता परमेश्वर ने सृष्टि चक्र को कायम रखने के लिए वैवाहिक जीवन जीने के लिए मनुष्यों को समृद्ध किया.

जीवन में सोलह श्रृंगार प्रचलित

पौराणिक ग्रंथों के अवलोकन से स्पष्ट है जीवन में सोलह श्रृंगार प्रचलित हैं. इन सोलह श्रृंगारों में गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन,जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकरण, कर्णवेध, विद्यारंभ, उपनयन,वेदारंभ, समावर्त्तन, केशांत, विवाह और अंत्येष्टि है जिसमें विवाह पंद्रहवे संस्कार में आता है. विवाह में सात बार परिक्रमा का प्रावधान बताया गया है. जब वर वधू पहला फेरा लगाते हैं तो तीर्थयात्रा,उद्यापन, यज्ञ, दान आदि में भाग लेने का संकल्प लेता है. दूसरे फेरे में देवताओं के लिए हवन, पितरों के लिए श्राद्धकर्म, तीसरे फेरे में कुंटुम्ब की रक्षा,भरण पोषण, पशुपालन में सहमति, चौथे फेरे में धनधान्य की आय-व्यय,गृहकार्य आदि में सहमति, पांचवां फेरा में मंदिर, बगीचा,तालाब, कुआं आदि परोपकार कार्य में सहभागिता, छठा फेरा में देश के बाहर या नगर में किसी कार्य के लिए पूछ कर जाना तथा सातवां फेरा पर स्त्री को सम्मान से देखने का संकल्प होता है. इन सारे संकल्पों को अग्निदेव को साक्षी मान कर लगाते हैं. इस परमविद्या के जनक देवाधिदेव हैं, तभी तो आज भी पूजनीय हैं.

शिव की पूजा हम कैसे कर सकते हैं?

हर लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि शिव की पूजा कैसे की जाय और किस रूप में उनका वरदान मिले. जगत के पितामह ब्रह्मा ने ऋषियों को कथा के प्रसंग में पूजन की विधि बतलाई है. प्रात: ब्रह्म मुर्हूत में जगें और जगदंबरा पार्वती सहित भगवान शिव का नित्य स्मरण करें. कोई बाधा विध्न नहीं होगा. पूजा की साधना विधि कांवर यात्रा आख्यायित है.जलाभिषेक से शिवलिंग प्रक्षालन आदि का उल्लेख मिलता है.

कैलासशिखरस्थं च पार्वतीपतिमुत्तम्।

यथोकक्तरूपिणं शंभु निर्गुणं गुणरूपिणम।।

पूजन के पूर्व स्नान ध्यान करने की विधि बतलाई गयी है.

अर्ध्य मंत्र -रूपं देहि यशो देहि भोगं देहि च शंकर।

भुक्ति मुक्तिफलं देहि गृहित्वाध्र्यं नमोस्तुते।।

शिव हर जगह व्याप्त हैं

आस्था के आईने में शिव हर जगह व्याप्त हैं. शिवम सत्यम सुंदरम की अपारंपार महिमा को कतई नकारा नहीं जा सकता है. कठिन तप करने के बाद पार्वती को शिव की प्राप्ति हुई थी. पौराणिक कथाओं से दंपति को सीख लेने की समय की मांग है. जय शिव जय शिव मईया पार्वती के नाम जाप से कलह का अवसान हो जाता है.

Also Read: देवघर के पंडे अगर ये सब सवाल करें तो घबराइए मत, बाबाधाम में है आपके पूरे पूर्वजों की वंशावली

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें