Kundli yog: अगर व्यक्ति के कुंडली में राहु शनि और सूर्य की अशुभ दृष्टि पड़ने पर उसका दांपत्य जीवन बहुत ही अधिक कष्ट में गुजरता है. किसी व्यक्ति के जन्मपत्रिका में दाम्पत्य-सुख का विचार सप्तम भाव व सप्तमेश से किया जाता है. इसके अतिरिक्त शुक्र भी दाम्पत्य-सुख का प्रबल कारक होता है, क्योंकि शुक्र भोग-विलास व शैय्या सुख का प्रतिनिधि है.
पुरुष की जन्मपत्रिका में शुक्र पत्नी का एवं स्त्री की जन्मपत्रिका में गुरु पति का कारक माना गया है. जन्मपत्रिका का द्वादश भाव शैय्या सुख का भाव होता है. अत: इन दाम्पत्य सुख प्रदाता कारकों पर यदि पाप ग्रहों, क्रूर ग्रहों व अलगाववादी ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति आजीवन दाम्पत्य सुख को तरसता रहता है. सूर्य, शनि, राहु अलगाववादी स्वभाव वाले ग्रह हैं. वहीं मंगल व केतु मारणात्मक स्वभाव वाले ग्रह है. ये सभी दाम्पत्य-सुख के लिए हानिकारक होते हैं. आइये जानते हैं कि किन योगों के कारण व्यक्ति इससे वंचित होता है.
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यदि सप्तम भाव पर राहु, शनि व सूर्य की दृष्टि हो एवं सप्तमेश अशुभ स्थानों में हो और शुक्र पीड़ित व निर्बल हो तो व्यक्ति को दाम्पत्य-सुख नहीं मिलता.
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यदि सूर्य-शुक्र की युति हो व सप्तमेश निर्बल व पीड़ित हो एवं सप्तम भाव पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति को दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होता.
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यदि सप्तमेश निर्बल व पीड़ित हो एवं सप्तम भाव पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो व्यक्ति को दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होता.
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यदि लग्न में शनि स्थित हो और सप्तमेश अस्त, निर्बल या अशुभ स्थानों में हो तो जातक का विवाह विलम्ब से होता है व जीवनसाथी से उसका मतभेद रहता है.
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यदि सप्तम भाव में राहु स्थित हो और सप्तमेश पाप ग्रहों के साथ छ्ठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो तो जातक के तलाक की सम्भावना होती है.
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यदि किसी स्त्री की जन्मपत्रिका में गुरु पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो, सप्तमेश पाप ग्रहों से युत हो एवं सप्तम भाव पर सूर्य, शनि व राहु की दृष्टि हो तो ऐसी स्त्री को दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होता.
संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ
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