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मतंगेश्वर महादेव को यूनेस्को ने विश्व धरोहर में स्थान दिया है. इतिहास में यहां 85 मंदिरों के मौजूद होने का प्रमाण हैं लेकिन आज सिर्फ 25 मंदिर ही बचे हैं. ऐसा माना जाता है कि यह एकमात्र जीवित शिवलिंग है क्योंकि यह हर साल लगभग 1 इंच बढ़ता है और वर्तमान में जमीन से लगभग 9 फीट ऊंचा है. इस मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में हुआ था.
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पर्यटन विभाग और मंदिर के पुजारी हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर इसे नापते हैं और माना जाता है कि यह जमीन के ऊपर और नीचे सममित रूप से बढ़ता है.
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शिवलिंग के पीछे की कहानी- भगवान शिव (महादेव) के पास मार्कंड मणि थी जो उन्होंने युधिष्ठिर (पांडवों में से एक) को दी थी. उन्होंने इसे मतंग ऋषि को दे दिया था, जिन्होंने फिर हर्षवर्धन को दिया था.
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माना जाता है कि उसने उसे जमीन में गाड़ दिया, क्योंकि उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था और मणि के चारों ओर खुद-ब-खुद एक शिवलिंग विकसित होने लगा. मणि मतंग ऋषि के पास होने के कारण इसका नाम मतंगेश्वर नाम पड़ा.
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इस मणि की प्रचंड शक्ति के कारण, शिवलिंग हर साल एक जीवित मानव की तरह बढ़ता है और माना जाता है कि आज भी मणि विशाल शिवलिंग के नीचे स्थित है.
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मंदिर के पुजारी कहते हैं कि यह कलयुग का प्रतीक है, शीर्ष स्वर्ग-लोक की ओर बढ़ रहा है और नीचे पाताल-लोक की ओर, जब यह पाताल-लोक में पहुंचेगा तब कलयुग समाप्त हो जाएगा. माना जाता है कि इसी मंदिर में भोलेनाथ ने मां पार्वती से विवाह किया था.