Mahakumbh 2025: प्रयागराज, जिसे पूर्व में इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, उत्तर प्रदेश राज्य में गंगा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित एक भारतीय नगर है. यह शहर भारत के विभिन्न समुदायों के लिए एक धार्मिक स्थल के रूप में महत्वपूर्ण है. हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए, यहां अनेक मंदिर, त्रिवेणी संगम और अक्षयवत जैसे स्थल आस्था और दिव्यता के प्रतीक माने जाते हैं. अगर आप प्रयागराज में आयोजित होने जा रहे महाकुंभ का हिस्सा बनने जा रहे हैं, तो इन जगहों पर जाकर दर्शन जरूर करें
लेटे हुए श्री हनुमान जी का मंदिर
दारागंज मोहल्ले में गंगा जी के किनारे लेटे हुए श्री हनुमान जी का मंदिर है. ऐसी मान्यता है कि संत समर्थ गुरु रामदास जी ने यहां भगवान हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की थी. शिव-पार्वती, गणेश, भैरव, दुर्गा, काली एवं नवग्रह की मूर्तियां भी मंदिर परिसर में स्थापित हैं. पास में ही श्री राम जानकी मंदिर एवं हरित माधव मंदिर भी स्थित है.
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श्री अलोप शंकरी मंदिर
श्री अलोपशंकरी देवी का मंदिर संगम और अक्षयवट से लगभग तीन किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में अलोपिबाग क्षेत्र में स्थित है. यह प्रयागराज का एक ऐसा शक्तिपीठ, जहां देवी के मूर्ति की नहीं, उनके ‘पालने’ की पूजा होती है. इस मंदिर का पुराणों में भी वर्णन मिलता है. ऐसी मान्यता है कि मां सती के दाहिने हाथ का पंजा यहां गिरने के बाद विलुप्त हो गया था, जिसके कारण मंदिर का नाम अलोप शंकरी पड़ा. लोग इसे अलोपीदेवी के नाम से भी जानते हैं.
अक्षयवट
अक्षयवट ‘अविनाशी वटवृक्ष‘ हिंदू पौराणिक कथाओं और हिंदू ग्रंथों में वर्णित एक पवित्र बरगद का पेड़ है. बौद्ध तीर्थयात्री ह्वेनसांग और पुरातत्त्वविद अलेक्जेंडर, कनिंघम जैसे इतिहासकारों व यात्रियों ने अक्षयवट वृक्ष का बहुत विस्तार से अपने वृत्तांतों उल्लेख किया है. यह वृक्ष धार्मिक रूप से काफी महत्त्वपूर्ण है. ऐसी मान्यता है कि यहीं पर रामायण के नायक प्रभु राम, लक्ष्मण और सीता ने अयोध्या से अपने वनवास के दौरान विश्राम किया था.
पातालपुरी मंदिर
पातालपुरी मंदिर भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है, जिसका इतिहास वैदिक काल से जुड़ा हुआ है. यह खूबसूरती से सजा हुआ भूमिगत मंदिर इलाहाबाद किले के भीतर अमर वृक्ष अक्षयवट के पास बना है. यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है और प्रयागराज के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक माना जाता है. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, पातालपुरी मंदिर वह स्थान माना जाता है, जहां पूज्य ऋषि मार्कंडेय ने घोर तपस्या की थी और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त किया था. यह वह स्थान भी माना जाता है, जहां पवित्र नदी गंगा पहली बार धरती पर उभरी थी.
सरस्वती कूप
सरस्वती कूप एक पवित्र कुआं है, जो त्रिवेणी संगम स्थित किले के अंदर है. महाकुंभ मेला 2025 के लिए सरस्वती कूप का जीर्णोद्धार एक महत्वपूर्ण पहल है, जिसका उद्देश्य इस पवित्र कुएं के आध्यात्मिक महत्व को बहाल करना है. वहीं, वर्ष 2025 के कुंभ के पहले भी भारतीय सेना ने इसका जीर्णोद्धार कराया गया था. यहां पर सरस्वती की एक मूर्ति भी है. जहां ये भूमिगत जलधारा है, उसे ‘सरस्वती कूप’ का नाम दिया गया. मान्यता है कि सरस्वती भूलोक में गंगा और यमुना के संगम से भी मिलती है. विशेषज्ञों की मानें, तो सरस्वती कूप को त्रिवेणी की गुप्त धारा मानी जाती है.
मनकामेश्वर मंदिर
त्रिवेणी संगम किले के पश्चिम यमुना तट पर मिंटो पार्क के निकट मनकामेश्वर मंदिर स्थित है. यहां काले पत्थर की भगवान शिव का एक लिंग और गणेश एवं नंदी की मूर्तियां हैं. यहां हनुमान जी की भी एक बड़ी मूर्ति स्थापित है. मंदिर के पास ही एक प्राचीन पीपल का पेड़ है. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में मांगी गयी मुराद अवश्य पूरी होती है.
महर्षि भारद्वाज आश्रम
मुनि भारद्वाज से संबद्ध यह एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है. मुनि भारद्वाज के समय यह एक प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र था. कहा जाता है कि भगवान राम अपने वनवास के प्रारंभ पर चित्रकूट जाते समय सीता जी एवं लक्ष्मण जी के साथ इस स्थान पर आये थे. वर्तमान में वहां भारद्वाजेश्वर महादेव, मुनि भारद्वाज, तीर्थराज प्रयाग और मां काली के मंदिर हैं. वहीं, पास में ही सुंदर भारद्वाज पार्क एवं आनंद भवन है.
शंकर विमानमंडपम
दक्षिण भारतीय शैली का यह मंदिर चार स्तंभों पर निर्मित है, जिसमें कुमारिल भट्ट, जगतगुरु आदि शंकराचार्य, कामाक्षी देवी (चारों ओर 51 शक्ति की मूर्तियां के साथ), तिरूपति बाला जी (चारों ओर 108 विष्णु भगवान की मूर्तियों के साथ) और योगशास्त्र सहस्त्रयोग लिंग (108 शिवलिंग) स्थापित है.
श्री वेणी माधव
प्रयागराज के 12 माधव मंदिरों में सर्वप्रसिद्ध श्री वेणी माधव जी का मंदिर दारागंज के निराला मार्ग पर स्थित है. मंदिर में शालिग्राम शिला निर्मित श्याम रंग की माधव प्रतिमा गर्भगृह में स्थापित है. श्री वेणी माधव को ही प्रयागराज का प्रधान देवता भी माना जाता है. यहां वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. श्री वेणी माधव के दर्शन के बिना प्रयागराज की यात्रा एवं यहां होने वाली पंचकोसी परिक्रमा को पूर्ण नहीं माना जाता है. चैतन्य महाप्रभु जी स्वयं अपने प्रयागराज प्रवास के समय यहां रह कर भजन-कीर्तन किया करते थे.
तक्षकेश्वर नाथ मंदिर
तक्षकेश्वर भगवान शंकर का मंदिर है, जो प्रयागराज की दक्षिण दिशा में स्थित दरियाबाद मोहल्ले में यमुना तट पर है. इससे थोड़ी दूर पर यमुना में तक्षकेश्वर कुंड है. ऐसी मान्यता है कि तक्षक नाग ने भगवान कृष्ण द्वारा मथुरा से भगाये जाने के बाद यहीं शरण ली थी.
दशाश्वमेघ मंदिर
दशाश्वमेघ मंदिर दारागंज में गंगा नदी के किनारे स्थित है. कहा जाता है कि भगवान बह्मा जी ने यहां अश्वमेघ यज्ञ किया था. दशाश्वमेघेश्वर महादेव-शिवलिंग, नंदी, शेषनाग की मूर्तियां एवं एक बड़ा त्रिशूल इस मंदिर में स्थापित हैं. चैतन्य महाप्रभु की स्मृति में उनके पदचिह्नों की विम्ब धारित करती हुई एक संगमरमर की पट्टी भी यहां लगी हुई है. इस मंदिर के निकट में ही देवी अन्नपूर्णा भगवान हनुमान एवं भगवान गणेश के मंदिर हैं.
श्री अखिलेश्वर महादेव
चिन्मय मिशन के अधीन प्रयागराज में रसूलाबाद घाट के पास 500 वर्ग फिट के लगभग एक क्षेत्र में श्री अखिलेश्वर महादेव संकुल फैला हुआ है. इसकी आधारशिला 30 अक्तूबर, 2004 को चिन्मय मिशन के परमपूज्य स्वामी तेजोमयनंद जी एवं पूज्य स्वामी सुबोधानंद जी के द्वारा रखी गयी थी. आधार तल से ऊपर राजस्थान से गुलाबी पत्थर मंगा कर कटाई कर श्री अखिलेश्वर महादेव ध्यान मंडपम को आकार प्रदान करने के लिए लगाये गये हैं. आधार पर लगभग 300 लोगों की क्षमता वाली एक सत्संग भवन हेतु निर्मित किया गया है.