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Mahashivratri 2024: शिवलिंग पर क्यों चढ़ाया जाता है बेलपत्र, जानें धार्मिक मान्यता और महत्व

Mahashivratri 2024: महाशिवरात्रि का पर्व शिव और शक्ति के मिलन का भी प्रतीक है. शिव और शक्ति के मिलन के उत्सव के तौर पर महाशिवरात्रि के दिन भक्त पूजन और व्रत करके इस उत्सव को मनाते हैं.

डॉ मौसम ठाकुर

Mahashivratri 2024: महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था, और यह त्योहार उनके दिव्य मिलन का जश्न मनाने के लिए हर साल मनाया जाता है. महाशिवरात्रि का पर्व शिव और शक्ति के मिलन का भी प्रतीक है. शिव और शक्ति के मिलन के उत्सव के तौर पर महाशिवरात्रि के दिन भक्त पूजन और व्रत करके इस उत्सव को मनाते हैं. गरुड़ पुराण के अनुसार आबू पर्वत पर निषादों का राजा सुन्दर सेनक (बहेलिया) था, जो एक दिन अपने कुत्ते के साथ शिकार करने वन गया. संयोग वश उस दिन वह कोई शिकार न पाया, भूख-प्यास से व्याकुल गहन वन में तालाब के किनारे रात्रि भर जागता रहा. वन में बिल्ब (बेल) के पेड़ के नीचे एक शिवलिंग था, अपने शरीर को आराम देने के लिए उसने अनजाने में शिवलिंग पर गिरी बिल्व पत्तियां नीचे उतार ली और अपने पैरों की धूल साफ करने के लिए उसने तालाब से जल लेकर छिड़का और ऐसा करने से जल की बूंदें शिवलिंग पर गिरीं, उसका एक तीर भी उसके हाथ से शिवलिंग पर गिरा और उसे उठाने में उसे शिवलिंग के समक्ष झुकना पड़ा इस प्रकार उसने अनजाने में ही शिवलिंग को नहलाया, स्पर्श और उसकी पूजा की और रात्रि भर जागता रहा.

भगवान शिव की अराधना…

दूसरे दिन वह अपने घर लौट आया और पत्नी द्वारा दिया गया भोजन किया. आगे चलकर जब वह मरा और यमदूतों ने उसे पकड़ा तो शिव के सेवकों ने उनसे युद्ध किया और उसे उनसे छीन ले गया वह पापरहित हो गया और कुत्ते के साथ शिव का सेवक बना, इस प्रकार उसने अज्ञान में ही सही शिवलिंग पर जल और बिल्वपत्र चढ़ा कर पूजा की और शिव को प्रसन्न कर लिया. कोई भी सांसारिक जीव इस दिन यदि भगवान शिव की अराधना करें तो उसे भी अक्षय पुण्यफल प्राप्त होता है. स्कन्द पुराण के अनुसार चण्ड नामक एक दुष्ट किरात था. वह जाल से मछलियां पकड़ता था और अनेक पशुओं और पक्षियों को मारता था.उसकी पत्नी भी बड़ी निर्मम थी. कई बर्षो बाद एक दिन वह पात्र में जल लेकर एक बिल्व पेड़ पर चढ़ गया और एक बनैले शूकर को मारने की इच्छा से रात्रि भर जागता रहा और नीचे बहुत सी बिल्व पत्र फेकता रहा. उसने अपने जल पात्र के जल से अपना मुख भी धोया जिससे नीचे के शिवलिंग पर जल गिर पड़ा.

अनजाने में हो सकती है भगवान शिव की पूजा

अनजाने में ही उससे विधिपूर्वक शिव की पूजा हो गई. स्नापन कराया (नहलाया), बिल्व पत्र चढ़ायीं, रात्रि भर जागता रहा और उस दिन भूखा भी रहा. वह उस रात्रि घर नहीं जा सका था, अत: उसकी पत्नी बिना अन्न-जल के पड़ी रही और चिन्ताग्रस्त रही. प्रात:काल वह भोजन लेकर पहुंची तो अपने पति को एक नदी के तट पर देख, भोजन को तट पर ही रख कर नदी को पार करने लगी. दोनों ने स्नान किया, किन्तु इसके पूर्व कि किरात भोजन के पास पहुंचे, एक कुत्ते ने भोजन चट कर लिया. पत्नी ने कुत्ते को मारना चाहा किन्तु पति ने ऐसा नहीं करने दिया, क्योंकि अब उसका हृदय तबतक परिवर्तित हो चुका था और उस समय (अमावस्या का) मध्याह्न हो चुका था. शिव के दूत पति-पत्नी को लेने आ गए, क्योंकि किरात ने अनजाने में शिव की पूजा कर ली थी और दोनों ने चतुर्दशी पर उपवास भी कर लिया था फलतः दोनों को शिवलोक मिला.

शिवरात्रि बोधोत्सव है…

शिवरात्रि बोधोत्सव है. ऐसा महोत्सव, जिसमें अपना बोध होता है कि हम भी शिव के अंश हैं, उनके संरक्षण में हैं. माना जाता है कि सृष्टि की शुरुआत में इसी दिन आधी रात में भगवान शिव का निराकार से साकार रूप में (ब्रह्म से रुद्र के रूप में) अवतरण हुआ था. ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात आदि देव भगवान श्रीशिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा वाले लिंगरूप में प्रकट हुए. शिवरात्रि शब्द का अर्थ भगवान शिव की रात से है, इस दिन हमारे शरीर में ऊर्जा आलौकिक (कुदरती) रूप से ऊपर की ओर जाती है. इस अवसर का लाभ उठाने के लिए योग में एक खास साधना होती है. मूल रूप से, चाहे वह एक मानव शरीर हो या वृहत ब्रह्मांडीय निकाय, मुख्य रूप से वे पंच भूत या पांच तत्वों यानी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से ही बने हैं, जिसे हम ‘मैं’ कहते हैं, वह सिर्फ इन पांच तत्वों की शरारत है. जिसे हम एक तंत्र मानते हैं , मनुष्य कहते हैं, कि पूरी क्षमता को साकार करना चाहते हैं, या हम इसके परे जाकर विशाल ब्रह्मांडीय तंत्र के साथ एक होना चाहते हैं – चाहे हमें आकांक्षा सिर्फ अपने सीमित व्यक्तित्व के लिए हो या सर्वव्यापी तत्व की.

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हर शिवरात्रि को ध्यानलिंग में होती है पंच भूत की आराधना

जब तक हमें जाने-अनजाने, चेतन या अचेतन रूप में इन पांच तत्वों पर एक निश्चित मात्रा में महारत नहीं होगी, तब तक हम न तो स्वयं के सुख को जान सकते हैं, न ब्रह्मांडीय प्राणी के आनंद को. भगवान शिव का एक नाम भूतेश्वर भी है. यानी भूतों के स्वामी. पंच भूत आराधना जो हर शिवरात्रि को ध्यानलिंग में होती है, वह ध्यानलिंग में कृपा के उस आयाम तक पहुंचने के लिए है. पंच भूत आराधना एक शक्तिशाली संभावना पैदा करती है, जहां आप अपनी प्रणाली को एकीकृत कर सकते हैं और अपने शरीर में पंचतत्वों के अधिक बेहतर तरीके से जुड़ने के लिए उचित स्थिति पैदा कर सकते हैं. एक शरीर से दूसरे में, ये पांच तत्व सघनता से जुड़े हुए हैं, यह उस व्यक्ति के बारे में करीब-करीब सब कुछ तय करता है. अगर इस शरीर को एक अधिक बड़ी संभावना के लिए सोपान बनना है, तो यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हमारी प्रणाली ठीक से एकीकृत हो. जिस हवा में हम आप सांस लेते हैं, जो पानी पीते हैं, जो खाना खाते हैं, जिस धरती पर चलते हैं और जीवनी शक्ति के रूप में जीवन की अग्नि, इन सभी तत्वों से आपका शरीर बना है . अगर आप इन्हें नियंत्रित, जीवंत और केंद्रित रखते हैं तो दुनिया में सेहत, खुशहाली और सफलता मिलनी ही है. हमारी कोशिश यह रहे कि तरह-तरह के साधन बनाए जाएं, जो लोगों के लिए इसे इस तरह संभव बनाए कि आपके मौजूद होने का तरीका ही पंच भूत आराधना हो.

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्
धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥

जब युगों युगों के बाद कभी सत्य का ज्ञान होता है और हम अपने शिव की पहचान करके शिवनेत्र को खोलने में कामयाब हो जाते हो तब जीवात्मा अपनी उर्जा यानी अपने शिव में अंगीकार होकर अपने जिस रोष का इजहार करती है उसे ही ताण्डव कहा गया. फाल्गुन के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी की रात्रि में अंत:करण अपनी सबसे कमजोर स्थिति में होता है. यह रात्रि जीवात्मा के परिचय के लिए स्वयं से साक्षात्कार के लिये सर्वश्रेष्ठ होती है, इस रात्रि में स्व-जागरण सहज हो जाता है. इसी त्रयोदशी को शिवरात्रि कहते हैं. महाशिवरात्रि पर्व भाग्य बदलने का काल होता है. आध्यात्मिक मान्यताएं पर्व पर दिवस की जगह रात्रि को महत्वपूर्ण मानती हैं. अलग अलग मान्यताएं इसके भिन्न भिन्न तर्क देती हैं, पर सबके मूल में दिवस के कोलाहल से दूर रात्रि के पहर को आंतरिक और आत्मिक तरंगों के प्रसार के लिए उत्तम माना गया है.

भगवान शिव हर जगह व्याप्त हैं . हमारी आत्मा में और शिव में कोई अंतर नहीं है. इसीलिए हम यह गाते हैं भजते हैं – “शिवोहम शिवोहम…” मैं शिव स्वरुप हूँ. शिव सत्य के, सौंदर्य के और अनंतता के प्रतीक हैं. हमारी आत्मा का सार हैं- शिव. जब हम भगवान शिव की पूजा करते हैं तो उस समय हम, हमारे भीतर उपस्थित दिव्य गुणों को सम्मान कर रहे होते हैं.
महाशिवरात्रि, शिव तत्त्व का उत्सव मनाने का दिन है. इस दिन सभी साधक और भक्त मिलकर उत्सव मनाते है. शिव तत्व यानी वह सिद्धांत या सत्य जो हमारी आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है। यह वही परम सत्य है जिसकी हम खोज कर रहे हैं . मान्यता है कि महाशिवरात्रि साधना, शरीर, मन और अहंकार के लिए गहन विश्राम का समय है। जो भक्त को परम ज्ञान के प्रति जागृत करता है.
शिवपुराण की ईशान संहिता के अनुसार
तत्रोपवासं कुर्वाण: प्रसादयति मां ध्रुवम्।
न स्नानेन न वस्त्रेण न धूपेन न चार्चया।
तुष्यामि न तथा पुष्पैर्यथा तत्रोपवासत:।।

देवाधिदेव महादेव स्वयं कहते हैं-
महाशिवरात्रि के दिन जो उपवास करता है वह निश्चय ही मुझे संतुष्ट करता है. उस दिन उपवास करने से मैं जो प्रसन्न होता हूं वैसा स्नान, वस्त्र, धुप और पुष्प अर्पण करने से भी नहीं होता है.

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