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बीबी जैनब : सब्र का दूसरा नाम

कर्बला की रानी और कर्बला की जंग की सबसे मजबूत महिला कही जाने वालीं बीबी जैनब बातिल के खिलाफ जंग में अपने भाई इमाम हुसैन (अ) के साथ हर पल खड़ी रहीं.

नेहा यास्मीन :

खुदा ने इंसान को महिला और पुरुष के दो शक्लों में बनाया है. महिला को सिंफे नाज़ुक यानी कोमल प्रवृत्तियों से नवाजा गया है. वो मां, बहन, बेटी, पत्नी जैसी अलग-अलग भूमिकाएं अदा करते हुए अपनी ममता, प्रेम और करुणा से मानव जीवन को परिपूर्ण करती है. इंसानी जिंदगी की हर दास्तान नारी के बिना अधूरी ही रहती है. इसी तरह कर्बला की जंग की दास्तान भी हजरत बीबी जैनब (रजि) के ज़िक्र के बगैर अधूरी है.

बीबी जैनब हजरत अली (रजि) और बीबी फातिमा (रजि) की बेटी और इमाम हुसैन (अ) की बहन थीं, जो कर्बला की जंग में अपने भाई के साथ न सिर्फ हुसैनी खेमे में मौजूद थीं, बल्कि इमाम हुसैन और साथियों की शहादत की पूरी दास्तान को दुनिया के सामने लाने का श्रेय भी बीबी ज़ैनब को ही जाता है. कर्बला की रानी और कर्बला की जंग की सबसे मजबूत महिला कही जाने वालीं बीबी जैनब बातिल के खिलाफ जंग में अपने भाई इमाम हुसैन (अ) के साथ हर पल खड़ी रहीं.

कर्बला के मैदान में लाशें गिरती रहीं, खुदा के नेक बंदे सच्चाई की खातिर शहीद होते गये. इमाम हुसैन का कुनबा उजड़ता रहा, लेकिन इमाम हुसैन के क़दम नहीं डगमगाए. बीबी जैनब अपने जान से प्यारे भाई को हर गम, हर सितम के बीच हौसला देती रहीं. जालिम के आगे सर न झुकाने का हौसला, असत्य और अन्याय के खिलाफ हर हद से गुजर जाने का हौसला. ज़रा सोचिए, उस नारी मन के भीतर तब क्या चल रहा होगा जिसका कुनबा उजड़ता जा रहा हो, जिसके सामने उसके कुनबे की लाशों पर लाशें गिरती जा रही हों, पर बीबी जैनब तो बीबी जैनब थीं.

वो हजरत अली(रजि.) की बेटी थीं, वो पैगंबर हजरत मुहम्मद (स) की नवासी थीं, वो टूट सकती नहीं थीं और टूटी भी नहीं. यहां तक कि जब हजरत इमाम हुसैन की भी शहादत हो गयी और यजीदी लश्कर इमाम हुसैन का सर लेकर यजीद के दरबार में पहुंची, तो बीबी जैनब को भी वहां लाया गया. सामने भाई के कटे सर को देख कर भी अली की बेटी डगमगाई नहीं, बल्कि सत्ता के अहंकार में डूबे यजीद को उसी के दरबार में बुलंद आवाज में अपमानित किया.

खुदा का फरमान सुनाया कि अल्लाह गुनहगारों को छूट देता है ताकि वे अपने गुनाहों में वृद्धि कर लें लेकिन अंततः उनके लिए बेहद कष्टकारी सजा है. बीबी जैनब की ये बात कुछ ही अरसे बाद पूरी तरह साबित भी हो गयी. इतिहासकार बताते हैं कि हुसैनी लश्कर के लिए नहरे फरात का पानी बंद करने वाला और हुसैनी लश्कर को प्यासे शहीद करवाने वाला यजीद एक ऐसे बेहद कष्टकारी रोग का शिकार हुआ कि उसे बेहद प्यास लगती थी पर पानी पीते ही उसकी तकलीफ असहनीय हद तक बढ़ जाती थी. बेशक, खुदा सबसे बेहतर इंसाफ करने वाला है.

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