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Pitru Paksha 2023: गया में इस दिन से पितृपक्ष मेला शुरू, जानें तिथिवार वेदी स्थलों पर पिंडदान करने का विधान

Pitru Paksha 2023: पितृपक्ष मेला शुरू होने के करीब तीन महीना पहले से ही पंडा समाज व उनके यजमान का एक-दूसरे के बीच संपर्क व संवाद शुरू हो जाता है. इस बार भी पंडा द्वारा अपने यजमानों से संपर्क शुरू किया गया है.

Pitru Paksha 2023: भगवान विष्णु की पावन नगरी गयाजी यानी मोक्षधाम में पितरों को पिंडदान की परंपरा आदि काल से चली आ रही है. जहां पर देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मा की शांति व मोक्ष प्राप्ति की कामना को लेकर पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण का कर्मकांड संपन्न कर रहे हैं. नारद पुराण, वायु पुराण सहित कई अन्य हिंदू धार्मिक ग्रंथों में इसका उल्लेख भी वर्णित है. वैसे तो यहां सालों भर पिंडदान के लिए देश-विदेश के लोग आते रहे हैं. लेकिन, विशेषकर आश्विन मास में 17 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पितृपक्ष मेले का आयोजन सालों से होता आ रहा है.

प्राचीन समय में 360 वेदियों पर पिंडदान करने का था विधान

हाल के कुछ वर्षों में इस मेले में देश-विदेश से 10 से 15 लाख तक तीर्थयात्री आते हैं. गया दर्पण पुस्तक की माने तो प्राचीन समय में चंद्रमा की वार्षिक 360 कलाओं को आधार बनाकर 360 वेदियों पर पिंडदान करने का नियम था. शास्त्रीय रूप से गया का विस्तार पांच कोस यानी 15 किलोमीटर में माना गया है. इसके विभिन्न भागों में ये 360 वेदियां स्थित थीं. वर्तमान में इनकी संख्या सिमट कर केवल 54 रह गयी है. इनमें भी कई वेदियां जीर्णोद्धार को तरस रही हैं.

तीर्थयात्रियों से तीन माह पहले से पंडा समाज के लोग करते हैं संपर्क

पितृपक्ष मेला शुरू होने के करीब तीन महीना पहले से ही पंडा समाज व उनके यजमान का एक-दूसरे के बीच संपर्क व संवाद शुरू हो जाता है. इस बार भी पंडा द्वारा अपने यजमानों से संपर्क शुरू किया गया है. पंडा समाज के लोगों की माने तो इस वर्ष पितृपक्ष मेले में 15 लाख तक तीर्थयात्री पहुंच सकते हैं. तीर्थ वृति सुधारणी सभा के महामंत्री मणिलाल बारीक ने बताया कि गयाजी डैम, सीता पुल के बन जाने से बीते वर्ष 2022 में इस मेले में 12 लाख से अधिक पिंडदानी यहां आकर अपने पितरों के मोक्ष प्राप्ति की कामना के उद्देश्य से पिंडदान व श्राद्धकर्म का कांड कर्मकांड संपन्न कर चुके हैं.

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28 सितंबर से शुरू हो रहा मेला

17 दिवसीय पितृपक्ष मेला इस बार 28 सितंबर से शुरू हो रहा है. इस मेले का समापन 15 अक्तूबर को होगा. अलग-अलग तिथियों को अलग-अलग वेदी स्थलों पर पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण का विधान है. पिंडदान का कर्मकांड करा रहे पंडित भानु कुमार शास्त्री के अनुसार गयाश्राद्ध में मुंडनकर्म का निषेध माना गया है. उन्होंने कहा कि वायु पुराण में यह वर्णित भी है.

तिथिवार इन वेदी स्थलों पर पिंडदान का है विधान

28 सितंबर (भाद्रपद चतुर्दशी)- पुनपुन पांवपूजा या गोदावरी श्राद्ध.

29 सितंबर (भाद्रपद पूर्णिमा)- फल्गु स्नान श्राद्ध एवं पूजा खीर का पिंड.

30 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तिथि)- प्रेतशिला, ब्रह्मकुंड, रामकुंड, रामशिला व कागबली.

01 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष द्वितीया तिथि)- उत्तर मानस, उदीची, कनखल, दक्षिण मानस, जिव्हालोल व गदाधर जी का पंचामृत स्नान.

02 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष तृतीया तिथि)- बोधगया के सरस्वती स्नान व पंचरत्न दान, तर्पण, धर्मारण्य, मातंगवापी, व बौद्ध दर्शन.

03 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि)- ब्रह्मसरोवर श्राद्ध, काकबलि श्राद्ध, तारक ब्रह्म का दर्शन व आम्रसिंचन.

04 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष पंचमी तिथि)- विष्णुपद स्थित 16 वेदी में रूद्र पद, ब्रह्म पद, विष्णुपद श्राद्ध व पांव पूजा.

05 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष षष्ठी तिथि)- 16 वेदी में कार्तिक पद, दक्षिणाग्निपद, गाहर्पत्यागनी पद व आहवनयाग्नि पद.

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06 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष सप्तमी तिथि)- 16 वेदी में सूर्यपद, चंद्र पद, गणेश पद, संध्याग्नि पद, आवसंध्याग्नि पद व दघिची पद.

07 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि)- 16 वेदी में मतंग पद, क्रौंच पद, इंद्र पद अगस्त्य पद कश्यप पद, गजकर्ण पद, दूध तर्पण व अन्नदान.

08 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष नवमी तिथि)- राम गया श्राद्ध, सीताकुंड (बालू का पिंड) सौभाग्य दान व पांव पूजा.

09 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष दशमी तिथि)- गया सिर, गया कूप (त्रिपिंडी श्राद्ध), पितृ व प्रेत दोष निवारण श्राद्ध.

10 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि)- मुंड पृष्ठ श्राद्ध (आदि गया) धौतपद श्राद्ध व चांदी दान.

11 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष द्वादशी तिथि)– भीम गया, गौ प्रचार व गदा लोल श्राद्ध.

12 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि)- विष्णु भगवान का पंचामृत स्नान, पूजन, फल्गु में दूध तर्पण व दीपदान.

13 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि)– वैतरणी श्राद्ध, तर्पण व गोदान.

14 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि)- अक्षयवट श्राद्ध (खीर का पिंड) शैय्या दान, सुफल व पितृ विसर्जन.

15 अक्तूबर (आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि)– गायत्री घाट पर दही चावल का पिंड, आचार्य को दक्षिणा व पितृ विदाई.

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