पितृपक्ष मेले में देश-विदेश से आनेवाले तीर्थयात्रियों के कारण जिले की अर्थव्यवस्था को बल मिलता है. इससे यहां के कई कारोबार काफी सबल होते हैं. जानकारी के अनुसार, एक तीर्थयात्री गयाजी आने के बाद पिंडदान, श्राद्धकर्म सहित अन्य सभी जरूरी क्षेत्र में कम से कम चार से पांच हजार रुपये खर्च करता है. गया जंक्शन पर ट्रेन से उतरने के बाद या फिर वाहनों से गया पहुंचने पर लोग सबसे पहले यातायात, भोजन, आवासन के मद में खर्च करते हैं. इसके बाद पिंडदान से जुड़ी सामग्रियाें के मद में खर्च किया जाता है.
पिंडदान का कर्मकांड पूरा होने पर पंडा जी को दक्षिणा, परिवारों के लिए खरीदारी में भी यात्री खर्च करते हैं. जानकारों के अनुसार गयाजी आनेवाले अधिकतर तीर्थयात्री बोधगया सहित आसपास के क्षेत्रों का भ्रमण व दर्शन भी करते हैं. इस मद में भी यात्रियों के रुपये खर्च होते हैं. पितृपक्ष मेले में रिक्शा, ऑटो, होटल, बर्तन, कपड़े, पूजा सामग्री, माला फूल सहित कई अन्य तरह के कारोबार काफी सफल होते हैं. वहीं तीर्थयात्रियों से मिलने वाले दक्षिणा से पंडा समाज के घरों की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होती है.
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वर्ष 2014 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने इस मेले को राजकीय मेले का दर्जा दिया था. पिंडदान के निमित्त यहां आनेवाले तीर्थयात्री पिंडदान व श्राद्धकर्म के कर्मकांड के लिए पूजन सामग्रियों, बर्तनों, धोती, साड़ी व गमछे सहित कई जरूरी और जरूरत के सामानों की खरीदारी करते हैं. इसके अलावा इन तीर्थयात्रियों के आने से होटलों के आवासन, भोजन व यातायात से जुड़े वाहनों का कारोबार भी फलता-फूलता रहा है. पिछले वर्ष करीब 12 लाख तीर्थयात्री यहां आये थे. इन तीर्थयात्रियों से करीब 200 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ था.
व्यस्त रहने व आने में असमर्थ तीर्थयात्रियों के लिए बिहार टूरिज्म डेवलपमेंट कारपोरेशन द्वारा वर्ष 2018 में इ-पिंडदान पैकेज लॉन्च किया गया. इस पैकेज के अधिकृत पंडा सुनील कुमार भैया ने बताया कि 2023 में 20 सितंबर तक नीदरलैंड के केवल एक यात्री द्वारा सुविधा ली गयी है. इ-पिंडदान स्थानीय स्तर पर एक प्रतिनिधि रखकर कराया जाता है. उन्होंने बताया कि पिंडदान से जुड़े सामान की खरीदारी, पिंडदान का कर्मकांड सहित अन्य सभी काम की वीडियोग्राफी करवा कर कॉरपोरेशन के माध्यम से तीर्थयात्रियों के पास भेज दी जाती है. इस कर्मकांड के लिए किसी को भी प्रतिनिधि बनाया जा सकता है.
पौराणिक कथा के अनुसार गया धाम में पिंडदान करने से 108 कुल व सात पीढ़ियों तक का उद्धार हो जाता है. पितृपक्ष के दौरान पिंडदान करने का अलग महत्व शास्त्रों में बताया गया है. पितृपक्ष प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अनंत चतुर्दशी के दिन से शुरू व आश्विन मास की आमावस्या तिथि को समाप्त होता है. वायुपुराण, अग्निपुराण व गरूड़ पुराण में गया तीर्थ का वर्णन है. सृष्टि रचयिता स्वयं भगवान ब्रह्मा ने फल्गु नदी व प्रेतशिला में पिंडदान किया था. श्रीराम ने भी अपने पिता पिंडदान किया था.
कहां से कहां तक एक यात्री रिजर्व
गया जंक्शन से टिल्हा धर्मशाला ~25 ~125
गया जंक्शन से चांदचौरा ~15 ~75
चांदचौरा से रामशिला ~22 ~110
चांदचौरा से प्रेतशिला ~45 ~180
दिग्घी तालाब से बोधगया ~30 ~120
चांदचौरा से टिल्हा धर्मशाला-बोधगया ~30 ~120
रेलवे स्टेशन से गया कॉलेज
खेल परिसर ~20 ~100
गया कॉलेज खेल परिसर से
बंगाली आश्रम ~25 ~125
हवाई अड्डा से विष्णुपद ~30 ~150
हवाई अड्डा से मंगला गौरी ~25 ~100
हवाई अड्डा से बोधगया ~25 ~125
हवाई अड्डा से गया जंक्शन ~35 ~110
चाकंद से प्रेतशिला ~30 ~150
कुजाप अंडरपास से प्रेतशिला ~20 ~100
गया जंक्शन से विष्णुपद ~30 ~120
गया जंक्शन से रामशिला ~15 ~60
वागेश्वरी से विष्णुपद ~40 ~160
टिल्हा धर्मशाला से रामशिला ~35 ~140
वागेश्वरी गुमटी से गांधी चौक टावर ~20 ~80
कहां से कहां तक एक यात्री रिजर्व
वागेश्वरी गुमटी से गेवाल बिगहा ~20 ~80
गया जंक्शन से वागेश्वरी गुमटी ~10 ~40
पंचायती अखाड़ा से गेवाल बिगहा ~25 ~100
पंचायती अखाड़ा से टावर चौक ~10 ~40
पंचायती अखाड़ा से गया कॉलेज
खेल परिसर ~30 ~120
गया जंक्शन से मेडिकल कॉलेज ~30 ~120
टावर चौक से एपी कॉलोनी ~25 ~100
टावर चौक से चंदौती मोड़ ~30 ~120
मुफस्सिल मोड़ से टावर चौक ~10 ~40
गया कॉलेज से सीताकुंड ~30 ~150
गया कॉलेज से प्रेत शिला ~70 ~350
गया कॉलेज खेल परिसर से रामशिला ~40 ~200
गया रेलवे स्टेशन से गांधी मैदान ~10 ~50
अगरैली अंडरपास से प्रेतशिला तक ~10 ~50
नोड वन से महाबोधि मुख्य मंदिर ~10 ~150