Scientific Importance of Religious Beliefs: “ ऊँ ” का धार्मिक महत्व-हमारे देश में जब भी कोई विद्वान,पण्डित,कर्म-काण्डी मंत्र पाठ करते हैं,मंत्र पाठ करने से पहले,हर मंत्र से पहले ऊँ लगाकर बोलते हैं.अनादिकाल से ही हमारे ऋषि-मुनिगन इस पर अगाध श्रद्धा-विश्वास रखते हैं.गीता में भी भगवान कृष्ण ने केवल ऊँ अक्षर का वर्णन किया है.शास्त्रों के अनुसार यह ऊँ अक्षर जिसे एक ओंकार-सतनाम कहकर भी पुकारा,गुरूवाणी में दशम् गुरू श्रद्धा-भावना से एक ओंकार सतनाम कहते रहे.और सारे संसार भर में गुरूवाणी में श्रद्धा रखने वाला एक ओंकार के रूप में ही ऊँ को पूजता है.भगवान को एक रूप या एक शब्द में पुकारा जाए तो ओंकार ही है.तीन अक्षरों में ऊँ बनता है-जिसमें ब्रह्मा,विष्णु,महेश की शक्ति दिखी देती है.यही कारण है कि हर शुभ-कार्य करने से पहले ऊँ का उच्चारण किया जाता है.
वैज्ञानिक महत्व-वैज्ञानिकों का मानना है कि हमारे सिर की खोपड़ी में स्थित मस्तिष्क में कई अंग व दिमाग योगासन व व्यायाम द्वारा खिंचाव में नहीं लाए जा सकते,इसके लिए ऊँ का उच्चारण उपयोगी है.इससे दिमाग के दोनों अर्द्धगोल प्रभावित होते हैं जिससे कंपन और तरंग मस्तिष्क में पंहुच कैल्शियम कार्बोनेट का जमाव दूर करते हैं,इस प्रकार ऊँ के उच्चारण से दिमाग को स्वस्थ व शांत रखा जा सकता है.
शंख बजाने का धार्मिक महत्व
शास्त्रों के अनुसार शंखनाद को पवित्र माना गया है.इसीलिए बच्चा जन्म से लेकर,पूजा-पाठ,उत्सव,हवन,विवाह आदि शुभ कार्यों में शंख बजाना शुभ व अनिवार्य माना जाता है,गृहस्थ अपने घर में सुबह-शाम महिलाएँ शंख बजाते हैं.मन्दिरों में आरती के समय शंख बजाया जाता है.
वैज्ञानिक महत्व
वैज्ञानिक मानते हैं कि शंख फूंकने से उसकी ध्वनि जहां तक जाती है,वहां तक की अनेक बीमारियों के कीटाणु ध्वनि-स्पंदन से मूर्छित हो जाते हैं तथा नष्ट हो जाते हैं.यदि रोज शंख बजाया जाए,तो वातावरण कीटाणुओं से मुक्त हो सकता है.बर्लिन विश्वविद्यालय ने शंखध्वनि पर अनुसंधान कर यह पाया कि इसकी तंरगें वैक्टीरिया तथा अन्य रोगाणुओं को नष्ट करने के लिए उत्तम औषधि है.इसके अलावा शंख बजाने से फेफड़े मजबूत होते हैं जिससे श्वास संबंधी रोगों से बचाव होता है.शंख बजाने वालों का हार्ट ऑटेक जैसे वीमारी नहीं होता है.शंख बजाने से हकलाना कम हो जाता है.शंख से भरा जल छिड़कने से वातावरण पवित्र होता है.कारण शंख में केल्सयम,फास्फोरस और गन्धक की मात्रा होती है,इसलिए शंख में भरे जल छिड़कने से वस्तुएँ रोगाणु रहित हो जाता है.
तुलसी के पौधे को आंगन में लगाने का धार्मिक महत्व
तुलसी का पौधा हिन्दु परिवार की एक पहचान और साथ ही उसकी धार्मिकता एवं सात्विक भावना का परिचय है.हिन्दु महिलाएँ तुलसी पूजन अपने सौभाग्य,श्री,लक्ष्मी एवं वंशवृद्धि की कामना से करती है.तुलसी की पत्ता से श्री विष्णु पर,शालग्राम शिला पर चढ़ाय़ा जाता है.इस तरह तुलसी पौधे का अनेक धार्मिक महत्व है.
वैज्ञानिक महत्व
आयुर्वेद में,चरक-संहिता में तथा वैज्ञानिक भी मानते हैं,तुलसी की पत्तियों में संक्रामक रोगों को रोकने की अदभुत शक्ति निहित होती है.तुलसी एक दिव्य औषधि का वृक्ष है.इसके पत्ते उबालकर पीने से सर्दी,जुकाम,खाँसी एवम् मलेरिया से तुरन्त राहत मिलती है.तुलसी कैंसर जैसे भयानक रोग को भी ठीक करने में सहायक है.अनेक औषधीय गुण होने के कारण इसकी पूजा की जाती है.
पीपल की पूजा क्यों की जाती है धार्मिक मान्यता
पीपल वृक्ष समस्त वृक्षों में सबसे पवित्र इसलिए माना गया है क्योंकि हिन्दुओं के धार्मिक आस्था के अनुसार स्वयं भगवान श्री हरि विष्णुजी पीपल वृक्ष में निवास करते हैं.श्रीमद् भगवद् गीता में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अपने श्री मुख से उच्चारित किये हैं कि वृक्षों में मैं पीपल हूँ.स्कन्ध पुराण के अनुसार पीपल के मूल (जड़) में विष्णु,तने में केशव,शाखाओं में नारायण,पत्तों में भगवान हरि,और फलों में समस्त देवताओं से युक्त अच्युत भगवान सदैव निवास करते हैं.इसलिए ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि की साढ़े साती,शनि की ढैया या मारक ग्रह की दशा की दोष दूर करने के लिए पीपल वृक्ष की पूजा तथा पीपल वृक्ष के नीचे सरसो तेल की दिया जलाया जाता है.
वैज्ञानिक महत्व
पीपल ही एक मात्र ऐसा वृक्ष है जो चौबीसों घंटे (दिन-रात) ऑक्सिजन का उत्सर्जन (निकालता) है.जो जीवधारियों के लिए प्राण-वायु कही जाती है.प्रत्येक जीवधारी ऑक्सीजन लेता है और कार्बन डाईऑक्साइड छोड़ता है.वैज्ञानिक खोजों से यह तथ्य सिद्ध हो चुका है.पीपल की छाया सर्दि में ऊष्णता और गर्मी में शीतलता देती है.
सिर पर चोटी क्यों रखी जाती है(धार्मिक मान्यता)-
हिन्दु धर्म में ऋषि-मुनि सिर पर चुटिया रखते थे.आज भी कई लोग चोटी रखते हैं.पूजा-उपासना में अनुष्ठान करने के समय तथा किसी मंत्र जप करने के पहले प्राणायाम करने के समय सबसे पहले शिखा बन्धन किया जाता है.अर्थात् चोटी का स्पर्श किया जाता है.इससे साधक का अनुष्ठान सफल होता है.
वैज्ञानिक महत्व
जिस जगह पर चोटी रखी जाती है,उस जगह पर दिमाग पर दिमाग की सारी नसें आकर मिलती है.इससे दिमाग शीतल व स्थिर रहता है.
पूर्वाभिमुख होकर पूजा क्यों किया जाता है-(धार्मिक मान्यता)
सूर्य को हिन्दु धर्म का प्रधान देवता के रूप में मानते एवं पूजा करते हैं.सूर्य पूर्व दिशा में उदित होते हैं.शास्त्रों के अनुसार पूर्वाभिमुख होकर पूजा करने से देवी- देवता प्रसन्न होते हैं और अभिष्ट फल की प्राप्ति होती है.वेद भी पूर्वाभिमुख होकर पूजा-पाठ करने की आज्ञा देते हैं.
वैज्ञानिक महत्व
कहा गया है कि उगते सूर्य को सभी नमस्कार करते हैं.उगता हुआ सूर्य उन्नति और निरन्तर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है.ऊँचा उठने का सन्देश छिपा रहता है उगते सूर्य में.सूर्य की अलग-अलग रंग की किरणों से सात प्रकार की ऊर्जा प्राप्त होती है.सूर्य की किरणें सीधे छाती पर पड़ती रहे,तो उसके प्रभाव से व्यक्ति सदा निरोगी रहता है.इसीलिए प्रातः सूर्योदय के समय पूर्व की ओर मुख करके सूर्य नमस्कार,सूर्य उपासना,पूजा-पाठ,हवन आदि शुभ कार्य करना बहुत लाभदायक है.
रूद्राक्ष की माला क्यों धारण करते हैं-(धार्मिक मान्यता)
ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति रूद्राक्ष की माला से मंत्रजप करता है,उसे दसगुना फल प्राप्त होता है,अकालमृत्यु का भय भी नहीं रहता.108 दानों की माला धारण करने से अश्वमेध यज्ञ का फल और समस्त मनोकामनाओं में शफलता मिलती है.
वैज्ञानिक महत्व
रूद्राक्ष की माला धारण करने से मस्तिष्क और हृदय को बल मिलता है.रक्तचाप संतुलित होता है,मानसिक शांति मिलती है,शीत-पित्त रोग से राहत मिलती है.
क्यों जरूरी है कान छिदवाने की परम्परा- (धार्मिक मान्यता)
भारत के लगभग सभी धर्मों में कान छिदवाने की परंपरा है,इसे ही कर्णवेध संस्कार कहते हैं,जो विधि-विधान से किया जाता है.इस संस्कार में दोनों कानों को छेदकर उसकी नस को ठीक रखने के लिए उसमें सोने का कुंडल पहनाया जाता है.
वैज्ञानिक महत्व
दर्शनशास्त्री मानते हैं कि इससे सोचने की शक्ति बढ़ती है.जबकि डॉक्टरों का मानना है कि इससे आवाज मधुर होती है और कानों से होकर दिमाग तक जानेवाली नस का रक्तसंचार नियंत्रित रहता है.कर्णवेध से अंडवृद्धि(हार्णिया) से बचाव होता है,क्योंकि कान की नस का अंडकोष की नस से सीधा संबंध है.
प्रातःकाल सूर्य को जल (अर्घ्य) क्यों दिया जाता है-(धार्मिक मान्यता)
धर्मोंग्रथों में कहा गया है आरोग्यं भास्करादिच्छेत् अर्थात् यदि निरोगता की इच्छा है,तो सूर्य की शरण में जाओ,इसीलिए प्राचीन ऋषि-मुनियों ने सूर्योंपासना व सूर्य को जल (अर्घ्य) देने आदि की विधि प्रचलित की,इसीलिए ताँबे की लोटे (कलश) में जल,चंदन,अक्षत,फूल आदि रखकर सूर्य की ओर मुख कर कलश को छाती के समक्ष बीचोंबीच लाकर सूर्य मंत्र,गायत्री मंत्र का जाप करते हुए जल की धारा धीरे-धीरे प्रवाहित कर भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर पुष्पांजलि अर्पित की जाती है.
व्रत-उपवास क्यों रखा जाता है (धार्मिक मान्यता)
धर्म-शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए व्रत-उपवास किया जाता है.मान्यता है कि इससे देवी-देवता प्रसन्न होकर भक्त को मनोवांछित फल प्रदान करते हैं.
वैज्ञानिक महत्व
व्रत करने से पाचन क्रिया अच्छी रहती है. और फलाहार लेने से शरीर का डिटॉक्सीफिकेशन होता है.शरीर में से खराब तत्व बाहर निकलते हैं.शोधकर्ताओं के अनुसार,व्रत करने से कैंसर का खतरा कम होता है.हार्ट डिसीज,डायबिटीज जैसी बीमारियां भी जल्द नहीं होती,अतः सेहत की दृष्टि से हफ्ते या महीने में एक दिन व्रत करना बहुत ही आवश्यक है.
सुहागन स्त्रियां मंगलसूत्र क्यों पहनती है(धार्मिक मान्यता)
शास्त्रों के अनुसार मंगलसूत्र को सुहाग का प्रतीक माना गया है.मंगलसूत्र गले में धारण करने से सुहाग की रक्षा होती है.पति-पत्नी का सम्बन्ध मजबूत रहता है.इसलिए सभी सुहागन महिलाएँ मंगलसूत्र पहनती है.
वैज्ञानिक महत्व
मंगलसूत्र सोने से निर्मित होता है.सोना शरीर में बल व ओज बढ़ानेवाली धातु है,इसलिए ये शारीरिक ऊर्जा का क्षय होने से रोकती है.
दक्षिण की तरफ पैर करके सोना मना क्यों है (धार्मिक मान्यता)
हमें यशस्वी बनाने वाले पितरों का संबंध दक्षिण दिशा से है,इसलिए दक्षिण की तरफ पैर करके नहीं सोना चाहिए.इससे उनका अपमान होता है,जिससे यश-कीर्ति बढ़ने में बाधा आती है.
वैज्ञानिक महत्व
जब हम उत्तर की तरफ सिर करके सोते हैं,तब हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तंरगों की सीध में आ जाता है,शरीर में मौजूद आयरन दिमाग की ओर संचारित होने लगता है.इससे अल्जाइमर व दिमाग संबंधी बीमारियां व ब्लड प्रेशर होने की संभावना बढ़ जाती है.इसका वैज्ञानिक आधार यह भी है कि आप अपने पूर्वजों,पितरों व बड़ों को मान-सम्मान दें.