Sonmer Temple: झारखंड की राजधानी रांची को झरनों का शहर कहा जाता है. इसके आस पास के इलाकों में कई पर्यटन स्थल है, जो पर्यटकों के लिए खास हैं. झरनों के अलावा यहां स्थित मंदिरों का इतिहास भी काफी रोचक है, चाहे वो तमाड़ का देउड़ी मंदिर हो या फिर रांची का पहाड़ी मंदिर. पिछले कुछ दिनों से रांची से सटे खूंटी के कर्रा प्रखंड में स्थित सोनमेर मंदिर की काफी चर्चा है. मान्यता है कि इस मंदिर में लोगों की मन्नत पूरी होती है, मन्नतें पूरी होने और माता का आशीर्वाद के प्राप्त होने के बाद भक्त पुनः हर्षित मन से मां की पूजा-अर्चना के लिए आते हैं. खूंटी स्थित सोनमेर माता का मंदिर, श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख स्थल है.
क्यों विशेष है सोनमेर मंदिर
सामान्यतः मंदिरों में माता दुर्गा की पूजा संस्कृत के श्लोकों के माध्यम से की जाती है, लेकिन कर्रा प्रखंड का ऐतिहासिक सोनमेर माता मंदिर संभवतः एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां माता दसभुजी की पूजा मुंडारी भाषा में की जाती है.इसके अलावा इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां पूजा-अर्चना का कार्य कोई पंडित नहीं करता, बल्कि यह जिम्मेदारी गांव के पाहन के द्वारा निभाई जाती है.पाहन को आदिवासी समाज का पुजारी माना जाता है.
पूरी होती है मनोकामना
अगर किसी की शादी में देर हो रही है, कोई किसी बीमारी से पीड़ित है, आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, नौकरी नहीं लग रही है तो इस मंदिर में भक्तों द्वारा माता के सामने फरियाद की जाती है. भक्तजन माता से अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करने और उनकी इच्छाओं के पूर्ण होने पर आभार व्यक्त करने माता के दरबार में आते हैं.
मंगलवार को होती है विशेष पूजा
खूंटी के कर्रा में स्थित सोनमेर माता का मंदिर लाखों आदिवासियों और गैर आदिवासियों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है.दस भुजाधारी सोनमेर माता, जो दुर्गा मां के रूप में पूजी जाती हैं, के दरबार में साल भर भक्तों की भीड़ लगी रहती है. विशेष रूप से प्रत्येक मंगलवार को दस भुजी माता की पूजा करने से विशेष आशीर्वाद की प्राप्ति होती है.
रांची से कैसे पहुंचें सोनमेर मंदिर
सोनमेर मंदिर तक पहुंचने के लिए रांची से लोधमा होते हुए कर्रा की दिशा में यात्रा करते हुए 45 किलोमीटर, बेड़ो से 32 किलोमीटर, खूंटी से 10 किलोमीटर और सिसई से 60 किलोमीटर की दूरी तय करनी होगी.
क्या है मान्यता
आदिकाल में क्षेत्र के निवासियों ने जरियागढ़ महाराज से माता के मंदिर की स्थापना हेतु प्रार्थना की थी. राजा के प्रयासों से 10 भुजी माता की मूर्ति की स्थापना की गई. कहा जाता है कि मां दुर्गा ने पूर्वजों को स्वप्न में बताया कि वह उनके गांव के टोंगरी में निवास करती हैं. इस स्वप्न के बाद, सुबह हड़िया पहान टोंगरी में जाकर देखते हैं कि एक शिला दशभुजी मां दुर्गा की आकृति में खड़ी है. पहान ने तुरंत स्नान करके कांसे के लोटे में जल लेकर जलार्पण किया. पहान द्वारा प्रतिदिन यह कार्य देखकर गांव के अन्य लोग भी पूजा करने लगे और मन्नतें मांगने लगे, जिससे लोगों को मां भगवती का आशीर्वाद मिलने लगा. धीरे-धीरे सोनमेर माता की महिमा की चर्चा पूरे प्रखंड में फैल गई. माता की महिमा को जानकर दूर-दूर के भक्त भी माता के दर्शन के लिए आने लगे.
झारखंड के अलावा इन राज्यों के लोगों का लगता है तांता
सोनमेर में माता का पिंड लगभग 200 वर्ष पुराना है. 1981 में धल परिवार के सहयोग से वर्तमान मंदिर की नींव रखी गई थी. वर्तमान में ओडिशा के कारीगरों द्वारा एक भव्य 51 फीट ऊंचा गुंबद तैयार किया गया है. मंदिर में पूजा का कार्य पाहन द्वारा किया जाता है. इस मंदिर में झारखंड, ओडिशा, बंगाल, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश से बड़ी संख्या में भक्त माता से अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आते हैं और जब उनकी मन्नत पूरी होती है, तो वे आभार व्यक्त करते हैं. सच्चे मन से मन्नत मांगने पर मां भक्तों की इच्छाओं को अवश्य पूरा करती हैं.