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Ekadashi Vrat Puja Aarti: विजया एकादशी व्रत पूजा के समय जरूर करें ये आरती, ॐ जय जगदीश हरे…

Vishnu Ji Ki Aarti: फाल्गुन मास की एकादाशी व्रत श्रीहरि विष्णुजी की पूजा-उपासना के लिए समर्पित है. विजया एकादशी का व्रत रखने से सभी कार्यों में विजय प्राप्त होती है. एकादशी व्रत पूजा के समय श्रीहरि विष्णुजी की आरती जरूर करनी चाहिए.

Ekadashi Vrat Puja Aarti: आज फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि है, इस एकादशी तिथि को विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है. यह शुभ दिन श्रीहरि विष्णुजी की पूजा-उपासना के लिए समर्पित है. धार्मिक मान्यता है कि विजया एकादशी का व्रत रखने से सभी कार्यों में विजय प्राप्त होती है और सुख-सौभाग्य का वरदान देते हैं. विजया एकादशी व्रत पूजा के समय भगवान विष्णु की आरती करने का विधान है. धार्मिक मान्यता है कि बिना आरती के एकादशी व्रत पूजा अधूरी मानी जाती है. भगवान विष्णु जी की आरती इस प्रकार से है-

एकादशी व्रत पूजा सामग्री लिस्ट

विजया एकादशी के दिन विष्णुजी की पूजा के लिए छोटी चौकी, अक्षत, पंच मेवा, फल, फूल, मिष्ठान, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा, मौली, चंदन, आम का पत्ता, पीले वस्त्र, धूप,दीप और कपूर समेत पूजा की सभी सामग्री एकत्रित कर लें.

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भगवान विष्णु जी की आरती

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।
स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥
ॐ जय जगदीश हरे।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।
स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥
ॐ जय जगदीश हरे।

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।
स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥
ॐ जय जगदीश हरे।

दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठा‌ओ, द्वार पड़ा तेरे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
विषय-विकार मिटा‌ओ, पाप हरो देवा।
स्वमी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ा‌ओ, सन्तन की सेवा॥
ॐ जय जगदीश हरे।
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।
स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥
ॐ जय जगदीश हरे।

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